क्या भाजपा अपने सहयोगी दलों की सहायता से सरकार चला रही है? मुझे नहीं लगता! रामविलास पासवान जैसे मौसम वैज्ञानिक, चंद्रबाबू नायडू के विशेष राज्य, ओम प्रकाश राजभर के मुर्गा-दारू पक्का वोट, नितीश कुमार की अंतरात्मा और शिवसेना का सामना करने के लिए भाजपा ने गठबंधन के पहले ही अपने वफादार सहयोगी चुन लिए थे। उन्हीं सहयोगियों की सहायता से भाजपा सरकार चल रही है। गठबंधन के सहयोगियों पर भाजपा को विश्वास नहीं है। वे अविश्वास प्रस्ताव के दौरान साथ छोड़ सकते हैं।
भाजपा, उसके आनुषंगिक संगठनों और समर्थकों की सरकार चार वाक्य चला रहे हैं। वे चारो वाक्य इतनी बार बोले गए हैं कि तकिया कलाम बन गए हैं। ‘बोले गए हैं’ और ‘तकिया कलाम’ कहने से भाजपा की आस्था को ठेस लग सकती है। भूल सुधार किया जाए- इतनी बार जपे गए हैं कि भगवान बन गए हैं। ‘जै श्रीराम’ पीछे छूट गए, भगवान कोई और बन गया!
चार वाक्यों के अतिरिक्त भी भाजपा के कई भगवान हैं। कांग्रेस के कर्म सत्तारूढ़ होने के बाद से ही भाजपा के भगवान बने हुए हैं। लालू यादव के जेल चले जाने के बाद जवाहर लाल नेहरू भगवान बने हुए हैं। चारा घोटाले के सजायाफ्ता लालू यादव भी भगवान थे। जेल जाने के बाद भी ‘आवश्यकतानुसार’ हैं। विडम्बना है, भ्रष्टाचार मिटाने आई भाजपा का भगवान एक सजायाफ्ता! लालू यादव भाजपा के भगवान क्यों हैं?
बिहार विधानसभा चुनाव-2015 के दौरान लालू यादव ने कहा- वे भाजपा वालों के भगवान हैं। भाजपाई सुबह-शाम उनका नाम लेते हैं। लालू यादव से चूक हो गई। लालू यादव भाजपा के मुख्य भगवान नहीं हैं। वे सहायक भगवान हैं। संघ के हिंदुत्व और भाजपा के राष्ट्रवाद के मुख्य भगवान मुसलमान हैं! हिंदुत्ववादी और राष्ट्रवादी सुबह-शाम ही नहीं, चैबीस घंटे में कई बार मुसलमानों का नाम लेते हैं। ब्रेकफास्ट, लंच और डिनर भी मुसलमानों का नाम लेकर करते हैं। ब्रेकफास्ट, लंच और डिनर में मुसलमानों को खाते भी हैं- आज चबा-चबा कर खत्म कर दूँगा इनको। चबाकर खत्म करने के चक्कर में अधिक खा लेते हैं। पेट में गैस बनने लगती है। पेट की गैस का असर दिमाग पर होता है, तो अंट-शंट बोलने लगते हैं।
मजबूत सरकार की मजबूरी है, जो मुसलमानों को भगवान बनाना पड़ा। सीबीआई के साथ अन्य जाँच एजेंसियाँ भी भगवान की भूमिका निभा रही हैं- प्रभु! भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस की लाज आप ही रख सकते हैं। अमुक के घर छापे के रूप में अवतार लीजिए। छापे के दौरान भले ही कुछ न मिले, हम आपकी लाज बचा लेंगे। प्रभु! आतंकवाद पर जीरो टॉलरेंस की लाज बचा लीजिए। अमुक के घर जाँच के रूप में अवतार लीजिए। उसने प्रेम विवाह नहीं, लव जेहाद किया है। आपकी लाज हम बचा लेंगे। सभी भगवान मिलकर भाजपा सरकार की गाड़ी को चला रहे हैं। उन्होंने नरेंद्र मोदी के रूप में गद्दी पर अपनी खडाऊँ रख दी है।
मजबूत सरकार को राज्यसभा में अपनी मजबूती दिखाने के लिए भाजपा को नरेश अग्रवाल को भी गले लगाना पड़ा। जिन्होंने राज्यसभा में व्हिस्की, रम, जिन और ठर्रे का स्मरण किया था। स्मरण के बाद राज्यसभा में अरुण जेटली और बाहर मंत्रियों, सांसदों और प्रवक्ताओं ने नरेश अग्रवाल पर राष्ट्रद्रोही, हिंदुत्व विरोधी, पाकिस्तानी होने की गर्जना की बौछार कर दी। आरएसएस के एक ‘विचारक’ ने एनआईए और रॉ से उन्हें देशद्रोही साबित करने को कह दिया था। राज्यसभा में मजबूती के लिए नरेश अग्रवाल को गले लगाने के बाद उनकी गर्जना का रंग बदल गया। केंद्रीय मानव संसाधन विकास राज्यमंत्री सत्यपाल सिंह ने कहा था- डार्विन गलत थे। किसी ने बंदर को इंसान में बदलते नहीं देखा था। राज्यमंत्री का कहना सही था, क्योंकि रामायण धारावाहिक में हनुमान ने कभी आदम का रूप नहीं धरा था। बंदर को इंसान में बदलते भले ही किसी ने न देखा हो, पर मैंने देखा है- आदमी को गिरगिट में बदलते हुए। फिराक गोरखपुरी की तर्ज पर- आने वाली नस्लें तुम पर फ़ख़्र करेंगी हम-असरों, जब भी उनको ध्यान आएगा तुमने आदमी को गिरगिट बनते देखा है।
मजबूत सरकार चार वाक्यों के पाए पर टिकी है: 1- ये जनादेश का अपमान है। 2- साठ वर्ष में कुछ नहीं हुआ। 3- ये राष्ट्रद्रोह है। 4- पाकिस्तान चले जाओ। ये चारों वाक्य बहुत बोलते हैं। इनको सुनते-सुनते ऐसा लगने लगा है कि ये चारो वाक्य नहीं, प्रधानमंत्री, वित्तमंत्री, पार्टी अध्यक्ष और मंत्री या सांसद हैं। ये चारों जब गर्जना करते हैं, तब विपक्ष की बोलती बंद हो जाती है।
राज्यसभा में ईवीएम की विश्वसनीयता पर विपक्ष द्वारा उठाये गए सवालों का जवाब देते हुए मुख्तार अब्बास नकवी ने कहा- ये जनादेश का अपमान है। विपक्ष की घिग्घी बँध गई। गनीमत है, मुख्तार अब्बास नकवी ने ये नहीं कहा कि ये राष्ट्रद्रोह है। मुख्तार अब्बास नकवी का कहना पूरी तरह जायज है, क्योंकि न्यू इंडिया छाप भाजपा के लोकतंत्र में सवाल पूछना जनादेश का अपमान है। सवाल पूछने से जिनका अपमान होता है, वो अपने अपमान का बदला देश भर में विभिन्न तरीकों से ले रहे हैं।
एक एक्सप्रेस ट्रेन दुर्घटनाग्रस्त हुई। जाँच के बाद उसमें आतंकवादियों का हाथ पाया गया। उसके बाद जितनी भी रेल दुर्घटनाएँ हो रही हैं, सभी में आतंकियों का हाथ होने की सम्भावना जताई जा रही है।
रेल दुर्घटना के बाद विपक्ष याद दिला रहा होता है- अमुक दुर्घटना के बाद अमुक रेल मंत्री ने इस्तीफा दे दिया था। तब तक खबर प्रसारित होने लगती है, प्राइम टाइम में विमर्श होने लगता है- रेल दुर्घटना के पीछे आतंकवादियों का हाथ हो सकता है। जाँच एटीएस को सौंप दी गई है। आतंकवादियों का हाथ हो सकता है… तो विपक्ष इस्तीफे की याद दिलाना बंद कर देता है। एटीएस जाँच करती है। बताती है, इस रेल दुर्घटना में आतंकवादियों का हाथ नहीं है। ये खबर प्राइम टाइम में विमर्श का विषय नहीं बनती। एक कॉलम के रूप में किसी कोने में फिलर के रूप में पड़ी होती है।
इस्तीफे की याद दिलाने वाला विपक्ष सरकार से ये नहीं पूछ पाता- प्रचंड बहुमत की मजबूत सरकार इतनी कमजोर है कि आतंकी दिल्ली, मुम्बई, कश्मीर छोड़ देश भर में फैली रेलवे लाइंस पर चहलकदमी करने लगे हैं? कैसे पूछे, राष्ट्रवाद और हिंदुत्व के बहुमत के अनुसार आतंकी अर्थात मुसलमान। मुसलमान अर्थात पाकिस्तानी। विपक्ष ने अगर सवाल पूछा, तो ‘तुम राष्ट्रदोही हो’ और ‘पाकिस्तान चले जाओ’ अपनी गर्जना से विपक्ष की बोलती बंद करा देंगे।
एक के बाद एक रेल दुर्घटनाओं का सिलसिला थमने के बाद एक के बाद एक ट्रेनों की लेट-लतीफी शुरू हुई। सूचनाओं के अनुसार लगभग सत्तर प्रतिशत ट्रेनें देर से चल रही हैं। लेट-लतीफी के बचाव में अपने वैज्ञानिक दृष्टिकोण से विपक्ष की घिग्घी बाँध देने वाला जवाब भाजपा प्रवक्ताओं के पास है-
विपक्ष का प्रश्न- ठंडी में ट्रेन लेट होती है तो कोहरा कारण होता है। गर्मी में ट्रेन लेट होने का क्या कारण है?
सत्ता पक्ष के प्रवक्ता का जवाब (अवैज्ञानिकता को बढ़ावा देने का भी)- गर्मी के कारण धातुओं में फैलाव होता है। फैलाव गोपनीय होता है, जिसे विपक्ष की आँख नहीं देख सकती। रेल की पटरी लौह धातु की बनी होती है। लौह धातु भी गर्मी के कारण फैलती है जिससे रेल मार्ग से बनारस से नई दिल्ली के बीच की न्यूनतम दूरी 755 किलोमीटर में भी फैलाव होता है। लौह धातु की रेल पटरी में फैलाव के कारण बनारस से दिल्ली के बीच की न्यूनतम दूरी हजार किलोमीटर से अधिक हो जाती है। दूरी तीन-चार सौ किलोमीटर बढ़ जाने से ही ट्रेन गर्मी में भी लेट हो रही है। लम्बी दूरी तय करने में वक्त तो लगता ही है।
विपक्ष- अवाक। सिट्टी-पिट्टी गुम। घिग्घी बँध गई।
देश, शब्दों के आतंकियों के हमले की चपेट में है। मजबूत सरकार अपनी जीरो टॉलरेंस की नीति अपनाकर उनके खात्मे की कार्रवाई कर रही है- अस्सी प्रतिशत गौरक्षक गोरखधंधे में लिप्त है। मुझे मार लो लेकिन मेरे दलित भाइयों को मत मारो।
प्रचंड बहुमत की ऐसी सरकार पहली बार देख रहा हूँ, जिसे किसी भी ऐरे-गैरे को अपना भगवान बनाना पड़ रहा है। ऐसी मजबूत सरकार जो पार्टी को चंदा देने वाले छुटभैयों के आगे लाचार है। क्या ये मजबूत सरकार है? मुझे नहीं लगता। मुझे तो ये स्वेटर सरकार लगती है।
सही जगह से एक धागा पकड़कर खींचने से पूरा स्वेटर उधड़ जाता है। प्रधानमंत्री, मंत्रिमंडल, पार्टी अध्यक्ष, मीडिया समर्थक पिछले चार वर्ष से स्वेटर की फिर-फिर-फिर बुनाई करने में व्यस्त हैं। गर्मी, बारिश में काम चल जाएगा। अगर कहीं स्वेटर की बुनाई पूरी होने के पहले विकास आ गया तो ठंड में कैसे बचेगा? ये गरीबों का विकास नहीं है, जो किटकिटाती ठंड में भी बिना स्वेटर पुक्की मार ‘सर्वाइव’ कर जाता है। सरकार अब तक स्वेटर नहीं बुन पाई, इसलिए कई विकास नाराज हो गए। स्वेटर पहनने दूसरे देश चले गए। इधर सरकार कहती है- हम उन्हें वापस लाएंगे। उधर से वे कहते हैं- पहले स्वेटर बुन लो। फिर हम आएंगे। वादे के अनुसार 2022 तक उनके लिए स्वेटर बुन लिया जाएगा।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का भी एक वादा है। वादा है या जुमला, फिर भी- तेरे वादे पे ऐतबार किया।
संघ का वादा है- 2025 तक हिंदू राष्ट्र। ये वादा पूरा होने के बाद संसद का दृश्य बड़ा मनोरम होगा। अभी संसद और विधानसभाओं में बैठने वाले पूँजीपतियों के मैनेजर नेता कट पहनते हैं। डिजायनर कपड़े पहनते हैं। हिंदू राष्ट्र का सपना पूरा होने के बाद मैनेजरों को पहनावा बदल जाएगा। वे अपने असली रूप में आ जाएंगे। पेन की जगह लाठी रखेंगे। कइयों ने अभ्यास भी शुरू कर दिया है।
जनादेश का अपमान करने वाली भीड़ हिंसक शक्ति प्रदर्शनों के माध्यम से कितना भी अपनी मजबूती का प्रदर्शन कर ले, संघ प्रत्यक्ष रूप से हिंदू राष्ट्र का निर्माण सद्भावना से करना चाहता है। सद्भावना का निर्माण करने के लिए संघ का आनुषंगिक संगठन मुस्लिम राष्ट्रीय मंच ‘मेकिंग सद्भावना बिटवीन हिंदू एंड मुस्लिम’ अभियान चला रहा है। ये अभियान ‘मेक इन इंडिया’ के तहत बनाया गया है। नतीजे मन-मुताबिक आए तो सबसे अधिक मुनाफा भी देगा। जैसे एक लीटर मिनरल वाटर या कोल्ड ड्रिंक बनाने के लिए सैकड़ों लीटर पानी को जहर में बदलने वाले पूँजीपति ‘सेव दी वाटर’ कैम्पेन पर करोड़ों रुपये खर्च करते हैं। इस सद्भावना के सहारे जहर फैला कर भी अरबों रुपये कमा लेते हैं।
मैं भी सुबह-शाम मजबूत सरकार का नाम लेता हूँ। इस तरह वो मेरी भगवान हुई। फिर भी, पता नहीं क्यों संघ और भाजपा वाले मुझे अपना विरोधी समझते हैं?