चुनाव के समय हर चीज का महत्व बढ़ जाता है। मेरी टांग की भी कीमत बढ़ी। मुझे यह मुगालता है कि मेरी टांग में फ्रेक्चर हो गया था। यह खबर सारे विश्व में फ़ैल चुकी है। मुझे यह सुखद भ्रम नहीं होता तो मेरी टांग इतनी जल्दी ठीक नहीं होती। यश की खुशफहमी का प्लास्टर ऊपर से चढ़ा लिया था मैंने।
चुनाव–प्रचार जब गर्मी पर था, तब मैं सहारे से लंगड़ाकर चलने लगा था। मैं दुखी था कि टूटी टांग के कारण मैं जनतंत्र को भावी रूप नहीं दे पा रहा हूं। पर एक दिन दो–तीन राजनीति के लोग मेरे पास आए। वे जनता पार्टी के थे। पहले उन्होंने बड़ी चिंता से मेरी तबियत का हाल पूछा। मैंने बताया, तब उन्होंने कहा, ‘जरा चार कदम चल कर बताएंगे।’
मैंने लंगड़ाते हुए चलकर बताया। उन लोगों ने एक–दूसरे की तरफ देखा। एक ने कहा, ‘वेरी गुड, इतने में काम चल जाएगा।’ दूसरे ने कहा, ‘लेकिन टांग के बाहर कुछ चोट के निशान भी दिखने चाहिए।’ तीसरे ने कहा, ‘कोई मुश्किल नहीं है। हम हल्के से कुछ घाव बना देंगे। परसाईजी को तकलीफ भी नहीं होगी ऊपर से पट्टी बांध देंगे।’
मैंने कहा, ‘आप लोगों की बात मेरे समझ नहीं आ रही।’ उन्होंने कहा, ‘हम आपसे एक प्रार्थना करने आए हैं। आप जानते हैं कि यह एक ऐतिहासिक चुनाव है। तानाशाही और जनतंत्र में संघर्ष है। इस सरकार ने नागरिक अधिकार छीन लिए हैं। वाणी की स्वतंत्रता छीन ली है। हजारों नागरिकों को बेकसूर जेल में रखा। न्यायपालिका के अधिकार नष्ट किए। जनता पार्टी इस तानाशाही को खत्म करके जनतंत्र की पुन: स्थापना करने के लिए चुनाव लड़ रही है। इस पवित्र कार्य में आपका सहयोग चाहिए।’
मैंने पूछा, ‘मैं क्या सहयोग कर सकता हूं? वे बोले, ‘हमारा मतलब है आपकी टांग का सहयोग चाहिए।’ मैंने आश्चर्य से कहा, ‘मेरी टांग? अरे भाई, मैं हूं तो मेरी टांग है।’ उन्होंने कहा, ‘नहीं, टांग टूटने से उसका अलग व्यक्तित्व हो गया है। बल्कि टूटी टांग ने राष्ट्रीय जीवन में आपको महत्वपूर्ण बना दिया है। हमें अनुमति दीजिए कि हम प्रचार कर दें कि कांग्रेसियों ने आपकी टांग तोड़ दी। इससे सारे देश में कांग्रेस के प्रति वातावरण बनेगा।’
मैंने जवाब दिया, ‘मैं यहां झूठा प्रचार नहीं करना चाहता।’ एक ने कहा, ‘जरा सोचिए– देश के लिए, जनतंत्र के लिए।’ दूसरे ने कहा, ‘मानव अधिकारों के हेतु। मानव–गरिमा के लिए। आखिर आप समाज–चेता लेखक हैं।’ मैंने उनकी बातें नहीं मानी। मुझे मेरी टांग की चिंता थी। मैं किसी को शब्द से भी टांग छूने नहीं देना चाहता था।
शाम को कांग्रेस के दो–तीन लोग आ गए। उन्होंने भी मेरी टांग की जांच की और कहा, ‘इससे अपना काम बन जाएगा।’ मैंने पूछा, ‘बात क्या है?’ उन्होंने कहा, ‘आपको क्या समझाना! आप स्वयं प्रबुद्ध हैं। इस समय देश का भविष्य संकट में है। यदि जनता पार्टी जीत गई तो देश खंड–खंड हो जाएगा। विकास–कार्य रुक जाएंगे। जनता पार्टी में शामिल दल घोर दक्षिणपंथी प्रतिक्रियावादी हैं। वे सार्वजनिक क्षेत्र खत्म कर देंगे। इस देश को अमेरिका के पास गिरवी रख देंगे।
मैंने पूछा, ‘तो मैं क्या करूं?’ उन्होंने कहा, ‘आपको कुछ नहीं करना है। करना हमें ही है। कांग्रेस खुद ही सब करती है। तीस सालों से, यहां तक हम हारते भी हैं तो दूसरे से नहीं– कांग्रेस ही कांग्रेस को हराती है। आप हमें इतना छूट दे दें कि हम प्रचार कर सकें कि जनता पार्टी के लोगों ने आपकी टांग तोड़ दी है। इससे जनता इस पार्टी के खिलाफ हो जाएगी।’ मैंने उनसे भी कहा, ‘मैं अपनी टांग के बारे में यह झूठा प्रचार नहीं होने दूंगा।’ एक ने कहा, ‘इस देश के लिए।’ दूसरे ने कहा, ‘सशक्त केन्द्र के लिए।’ तीसरे ने कहा, ‘प्रगतिशील नीतियों के लिए।’ मैं राजी नहीं हुआ।
दूसरे दिन जनता पार्टी वाले फिर आ गए। उन्होंने छुटते ही पूछा, ‘आखिर आपका ‘रेट’ क्या है?’ मैंने क्रोध से कहा, ‘मैं क्या रंडी हूं कि मेरा रेट होगा।’ उन्होंने कहा, ‘हमारा मतलब है कि अपनी टूटी हुई टांग के उपयोग के लिए आप क्या लेंगे? पांच सौ काफी होंगे?’ मैंने उन्हें डांटा। वे जाते–जाते कहते गए, ‘आपको हमसे असहयोग का फल भोगना पड़ेगा। आपको इस सरकार ने इलाज के लिए रुपए दिए थे। हमारी सरकार बनने पर हम इसकी जांच करवाएंगे और सारा पैसा आपसे वसूल किया जाएगा।’
थोड़ी देर बाद कांग्रेसी फिर आ गए। कहने लगे बड़े शर्म की बात है। आप प्रगतिशील बनते हैं मगर पांच सौ रुपए में अपने को प्रतिक्रियावादियों को बेच दिया। पैसे ही चाहिए तो हमसे हजार ले लीजिए। अभी हमारी सरकार ने आपको काफी रुपए इलाज के लिए दिए। मगर आप इतने अहसान–फरामोश हैं कि हमारे ही खिलाफ हो गए!’ मैंने कहा, ‘मैं नहीं बिका। मैंने जनता पार्टी की बात नहीं मानी। मैं आपकी बात भी नहीं मानूंगा। मेरी टांग किसी का चुनावी पोस्टर नहीं बन सकती।’ इतने में जनता पार्टी वाले भी फिर आ गए। उन्हें देख कांग्रेसी चिल्लाए, ‘आ गए आप लोग परसाई जी को पांच सौ रुपए में खरीदने के लिए।’ जनता वालों ने कहा, ‘पांच सौ? इस दो कौड़ी के लेखक को हम पांच सौ देंगे। तुम्ही उसे हजार में खरीदने आए हो।’ कांग्रेसियों ने कहा, ‘अरे हजार रुपए हम इस कूड़ा लेखक के देंगे।’ अब दोनों पार्टी वालों में लड़ाई शुरू हो गई।
पहले वे एक–दूसरे के ‘साले’बने। इस रिश्ते के कायम होने से मुझे विश्वास हो गया कि देश में मिली–जुली स्थिर सरकार बन जाएगी। फिर कुछ ‘मादर’ वगैरह हुआ। इससे लैंगिक नैतिकता का एक मानदंड स्थापित हुआ। फिर मार–पीट हुई। मैंने कहा, ‘आप दोनों का काम बिना पैसे खर्च किए हो गया। अब मेरी टांग की जरूरत आपको नहीं है। आपके अपने सर फूटे हुए हैं और नाक से खून बह रहा है। अब प्रचार कीजिए जनतंत्र के लिए, देश के लिए। मैं गवाह बनने को तैयार हूं।’