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पंकज चतुर्वेदी की दस सामयिक कविताएं

1

जिस दिन नेता कहते हैं
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जिस दिन नेता कहते हैं :
कमज़ोरों का उत्थान होगा

उसके बाद ही कहीं
कोई कमज़ोर
पिटता है

उसे ज़लील करते हुए
कहा जाता है :
अब यह नया
राष्ट्र बन गया है
इसकी जय बोल !

2

जनमत
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धन, विद्वेष
और आतंक से
जुटाया गया जनमत
बचाने नहीं आता

उससे बचने के
उपाय करने पड़ते हैं

3

भले लोग
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भले लोग अधिकतर
उसके साथ हो लिये
जो भला नहीं था

बीचबीच में
कहते ज़रूर जाते थे :
राजनीति अब
भले लोगों के
वश की नहीं रही

हँसते जाते थे उस पर
जो हार रहा था
भला था

4

शालीनता का अभिनय
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अशालीन भाषा बोलते हुए
चुनाव जीत जाना
और जीतने के बाद
शालीनता का अभिनय

इससे तो वही
अशालीनता अच्छी थी
उसमें तुम्हारा
सच था

5

ईवीएम
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मशीन में कोई
कमी नहीं थी
मनुष्य में थी

6

और ही देश
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जब गाँधी की हत्या
देशभक्ति है
तो यह कोई
और ही देश है
जिसमें हमें
ले आया गया है

आप जान पाये हों
तो लाने वालों का
क्या क़सूर !

7

एकजुट
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सभाभवन में विजयी
राजनेता कहता है :
अमीर जब और अमीर होगा
तभी ग़रीब
कम ग़रीब होगा

नया भारत है
तो अर्थशास्त्र भी नया है

बाहर सम्पन्न घरों के नवयुवक
नारा लगाते हैं :
हमें नहीं अधिकार चाहिए
यह नेता बारम्बार चाहिए

ऊपर से जो विजय का
उल्लास जान पड़ता है
अंदर वह ग़रीब को
उसका हक़
मिलने देने की
ख़ुशी है

यह विजय सचमुच तर्कसंगत है
नेता और समर्थक
एकदूसरे का मक़सद
समझते हुए एकजुट हैं

8

हार पर
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एक छोटे मक़सद में
उन्होंने
अपना सारा जीवन
लगा दिया है
वे ज़्यादा
और संगठित हैं

दूसरी ओर
मक़सद बड़ा है
पर समर्पित लोग
कम हैं
और
बिखरे हुए भी हैं

विद्वानों को हार पर
विस्मय है
मगर बात बहुत सीधी है :
विचार
जो जिया नहीं जाता
जयी नहीं होता

9

स्वाधीन भारत में 
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सत्तर बरस के
स्वाधीन भारत में 
मैं अपनी नागरिकता
बदलना नहीं चाहता

किसी का दरवाज़ा
खटखटाते डरता हूँ
कि वह खोले और कहे :
हिंदू राष्ट्र में
आपका स्वागत है !

10

हे राम!
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वैसे यह प्रमाणित नहीं है
पर उसके काफ़ी क़रीब है 
कि अपनी हत्या के वक़्त
गाँधी दो ही शब्द कह सके :
हे राम !

आज सबसे बड़ा प्रश्न यह है
कि तुम किस भाषा में
अपनी प्रार्थना और शोक
व्यक्त करोगे
जबकि तुम्हें मालूम हो
उसी भाषा में तुम पर
होंगे अत्याचार

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