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राफेल और युद्धरत समाजों का संकट

अगर देश की सुरक्षा को कुचल कर अमन को रंग चढ़ेगा/ कि वीरता बस सरहदों पर मरकर परवान चढ़ेगी/ कला का फूल बस राजा की खिड़की में ही खिलेगा/ अक्ल बस रहट की तरह ही धरती सींचेगी/ तो हमें देश की सुरक्षा से ख़तरा है। शहीद अवतार सिंह पाश की उपरोक्त कविता

“अंधराष्ट्रवाद का रहस्य भेदती उसी पंजाब की बेटी कारगिल में अपने कैप्टन पिता को मात्र दो साल में गवां चुकी गुरमेहर कौर आज अपने को असली शान्ति के अभियान में लगी सैनिक बताती है तो कथित देशभक्त भाजपा संगठन के कार्यकर्ता उसे बलात्कार की धमकी देते हैं। क्या ये धमकी अमेरिकी युद्ध उद्योग से आयातित थी? फ्रांस रूस इस्राइल से ? प्रस्तुत लेख जून 2०15 में आस्पेक्ट्स ऑफ़ इंडिया शीर्षक से इकोनॉमी में प्रकाशित राहुल बर्मन के लेख पर आधारित है।

जिस देश मे ढाई लाख किसान आत्महत्या कर चुके हैं, हर चौथे दिन विश्व गुरु पिता और भारत माता के लाल टट्टी के नर्क कुण्ड सीवर में उतर कर आत्महत्या करने पर मजबूर किये जाएं और प्रधानमंत्री साढ़े चार सालों से गिराई गई हरी पत्तियों पर झाड़ू अभियान में फोटोशूट कराने में व्यस्त हैं। कुपोषण जहां सबसे बड़ी समस्या हो। बेरोजगारी महंगी शिक्षा दिनों दिन सुरसा के मुंह की तरह बढ़ रही हो। ऐसे में दुनिया के सबसे बड़े हथियार आयातक देश बनने पर किसी का सवाल उठाना गलत है। लेकिन गुरमेहर कौर ने इसको उठाया और भक्त गण उनके पीछे पड़ गए।

हाल में (2015 में) किसी ने रक्षा मंत्री को रक्षा खरीद मंत्री कहा था। दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी सेना के साथ भारत का 2015-16 में रक्षा बजट 3.1 लाख करोड़ था। यानि कुल बजट का 1/6 भाग। पुलिस आदि मिलाकर 1/5 भाग। विश्व गुरु भारत का शिक्षा बजट मात्र 1/55 का हिस्सेदार है तथा स्वास्थ्य को बजट का 1/25 वां हिस्सा मिलता है।

भारत में 41 ऑर्डिनेंस फैक्टरी एवं 8 रक्षा पीएसयू हैं तथा 52 डीआरडीओ हैं। जिनमें 500 वैज्ञानिक तथा 25 हज़ार कर्मचारी काम करते हैं। मात्र कुछ उपलब्धि छोड़ दें तो कमोबेश ये सफ़ेद हाथी ही साबित हुए हैं। जैसे 1980 से मिग-21 की जगह एक लाइट कॉम्बेट एयरक्राफ्ट चाहिए था पर 17000 करोड़ खर्च के बावजूद वो विकसित नहीं हो सका है। 2022 तक उसके मिलने की संभावना है। तब तक खर्च 55 हजार पहुंचेगा (इसमें भी 40% हिस्सा विदेश का होगा)।

इसके इंजन कावेरी पर 2800 करोड़ ख़र्च के बाद अब जाकर अमेरिका से दो इंजनों की फरमाइश की गई है। विवेकानंद इंटरनेशनल फाउंडेशन (आरएसएस से जुड़ा शक्तिशाली थिंकटैंक जिसके सदस्य मोदी के सुरक्षा सलाहकार हैं।) ने तेजस के फेल होने का कारण लगातार बदले जा रहे स्पेसिफिकेशन को बताया है। फाउंडेशन ने एचएएल प्रमुख को उद्धृत करते हुए कहा है कि, ”भारत मे एक शक्तिशाली आयात लॉबी सक्रिय है जिसे रक्षा हलकों और विदेशी एरो स्पेस का समर्थन प्राप्त है ये लगातार एचएएल को बरबाद करने, आयात पर निर्भरता बढ़ाने में लगी रहती हैं।”

हाल में एसोचेम, सीआईआई, बोस्टन ग्रुप आदि दर्जन भर समूहों में से एक मैक्क़ेंस रिपोर्ट कहती है कि ये सारे भारत जैसे देश के उभरते रक्षा बाज़ार को झपट लेने को तैयार हैं। हाल में सरकार ने टाटा, एल एंड टी, महिन्द्रा, रिलायंस आदि के 17 निर्माण प्रस्ताव स्वीकार किए हैं। 2013 में यूपीए के सार्वजनिक उड्डयन मंत्री ने पीएम एवं रक्षा मंत्री को कड़ा पत्र लिखा कि,” क्यों डिफेंस पीएसयू  को 56 एयरक्राफ्ट की टेंडर प्रक्रिया से बाहर रखा जा रहा है? लगता है इनका सरकारी होना ही इनकी सबसे बड़ी अयोग्यता है।” थोड़ा पीछे चलें तो बोफोर्स या फिर एक नेवी प्रमुख को रिश्वत देने का मामला ध्यान में आता है।

तहलका केस के 31 आरोपियों में आरएसएस के ट्रस्टी श्री दीपक गुप्ता जी भी एक थे। बीजेपी के एक अहिंसक एवं दलित अध्यक्ष ने इस मामले में अपना बलिदान दिया। पूर्व नेवी प्रमुख एसएम नंदा रिटायरमेंट के बाद कुख्यात क्राउन कॉर्पोरेशन में गये। जहां उनके सुपुत्र प्रमुख थे। जनरल वीके सिंह द्वारा टाट्रा ट्रकों के अधोमानक होने के कारण उनको रिश्वत पेश करने पर कंपनी को ब्लैक लिस्ट किया गया। पर आज मोदी सरकार द्वारा कम्पनी को कलंक मुक्त करने की प्रक्रिया चल रही है।

पूर्व नोसेना प्रमुख अरुण प्रकाश ने कहा था कि हर हार्डवेयर, स्पेयर कंपोनेंट आदि का अर्थ भारत का दाता देश पर लंबे समय हेतु निर्भर हो जाना होता है। एक उदाहरण ही ले लें। विदेशी पिलेट्स कम्पनी ने 2012 में 515 करोड़ रुपए मेंटिनेन्स, रिपेयर के लिए लिया। पर बाद में सेवा देने से साफ़ मुकर गई। एचएएल ने दावा किया कि “वो इससे सस्ते औऱ बेहतर ट्रेनर एयरक्राफ्ट बना सकती है। पर एयर फ़ोर्स पिलेट्स से ही सेवा लेने में रूचि ले रही है”।

रक्षा टेक्नोलॉजी के निर्यात में एक बहुत बड़ी बाधा बेहद कठोर अन्तरराष्ट्रीय कानून हैं। ये ऑटो एरियाज से भी ज़्यादा कठोर हैं। इन्हीं कानूनों के बल से सुज़ुकी जैसी मज़दूरों की दुश्मन कंपनी अथाह कमाई कर रही है। विकीलीक्स के मुताबिक इमरजेंसी में राजीव गांधी का नाम एक स्वीडिश विमान के सौदे में आया था। पीएसयू बीईएमएल के अधिकारियों पर 750 करोड़ के घपले का आरोप लगा। दर्जनों घोटालों में एचडीडब्ल्यू पनडुब्बी (1981), बराक (2000) भी शामिल हैं।

आखिर में अगर आधार ठेका हथियाने वाली विदेशी कंपनी मोंगो डीबी (पूर्व नाम 10 gen) का ज़िक्र न हो तो बात अधूरी लगेगी। इस कंपनी को कुख्यात अमेरिकी गुप्तचर ऐजेंसी सीआईए वित्त पोषित करती है। आज हम करोडों रुपए ख़र्च कर अमेरिका, फ़्रांस आदि को अपनी तीन तीन पीढ़ियों का निजी डाटा दे चुके हैं। मुबारक हो!

2016 में कथित देशविरोधी जेएनयू के समर्थन में आए (देशद्रोही) एडमिरल भागवत कहते हैं कि ” किसी राष्ट्र को बर्बाद करने का सबसे बेहतरीन तरीका है हथियारों का व्यापार। भारत में तीनों रक्षा मुख्यालयों में ही नहीं रक्षा मंत्री के चयन में भी विदेशी कंपनियों का राज़ चलता है।” मोदी जी के मेक इन इंडिया के पक्षधर गोदी मीडिया द्वारा चैनलों पर प्रकट एक तथाकथित रक्षा विशेषज्ञ भारत कर्नाड तो 50 डिफेंस पीएसयू को टाटा एवं एल एंड टी के सुयोग्य हाथों में देने की वकालत करते हैं।

दूसरे विश्व युद्ध से जारी अमेरिका का युद्ध उद्योग पूरी दुनिया की तबाही में शामिल है। कोरिया युद्ध, वियतनाम तबाही, बेक़सूर इराकी जनता का लाखों में संहार कर ये प्रक्रिया सीरिया में भी जारी है। रुस, इस्राइल, फ़्रांस दूसरे हिस्सेदार हैं। 100 वर्षों पहले साहित्यकार अनातोल फ्रांस ने कहा था कि,” लगातार युद्धरत समाज रोज़ी, रोटी, शिक्षा, स्वास्थ्य आदि के सवाल उठाना बंद कर देता है।”

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