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जनादेश 2 / पूर्वांचल: बसपा का वोटबैंक मानी जाने वाली शबरी की संतानें श्रीराम के पास कैसे चली गईं?

आम चुनावों में भारतीय जनता पार्टी की चौंकाने वाली शानदार जीत में उत्‍तर प्रदेश के वनवासी मुसहरों का बड़ा योगदान है। जौनपुरवाराणसी की मछलीशहर लोकसभा सीट हो या सोनभद्रचंदौली की राबर्ट्सगंज लोकसभा सीट, इस पूरे इलाके में करीब एक लाख की संख्या में फैले वनवासी मुसहर या महादलित हमेशा से राजनीतिक रूप से हाशिए पर रहे हैं। राजनीतिक विश्लेषक इन मुसहरों को आम तौर से बहुजन समाज पार्टी का वोटबैंक मानते हैं। बसपा की रैलियों में इनको ट्रकों में भर कर लाया जाता रहा है लेकिन रैली के बाद इनकी मूलभूत मांगों को हमेशा अनसुना छोड़ दिया जाता रहा है।

मोदी की प्रचंड जीत में इन्‍हीं मुसहरों पर बीजेपी के चुनाव शिल्पियों की नजर थी। विपक्ष जहां मोदी के प्रचार के जवाब में प्रचार कर रहा था, उधर बीजेपी के नेता कार्यकर्ता जमीनी स्तर पर इनके बीच काम कर रहे थे। सामान्‍य तौर से देखा जाए तो यूपी में ही पिछले पांच वर्षों में स्कूलों मे क्विज कंपिटिशन करवाने की बात रही हो या फिर 18 साल नए मतदाताओं को पहली बार मतदान करने के लिए प्रेरित करने की योजना, बीजेपी कार्यकर्ताओं की तीसरीचौथी पंक्ति की टीम लगातार काम कर रही थी और उसके प्रवक्ता टीवी चैनलों पर इसका प्रचार कर रहे थे। बीजेपी का आईटी सेल सोशल मीडिया पर माहौल बना रहा था जबकि विपक्ष केवल उसकी काट ढूंढ रहा था।

जौनपुर, गाजीपुर, चंदौली, मिर्जापुर, भदोही और वाराणसी सहित पूर्वांचल की नौ सीटो पर चुनाव से ठीक पहले 16 मई की सुबह 10 बजे की बात है। महागठबंधन के नेता मायावती, अखिलेश यादव और चौधरी अजित सिंह वाराणसी के सीर गोवर्धनपुर स्थित संत रविदास समागम स्थल पर एक ओर महारैली कर रहे थे, ठीक उसी वक्त वाराणसी के सांस्कृतिक संकुल, चौकाघाट पर बीजेपी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वनवासी संवाद कार्यक्रम में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ वनवासियों को उनकी सरकार में मिले लाभ गिनवा रहे थे। वे वनवासी महादलितों की समस्याएं सुन रहे थे।

योगी जब अपनी सरकार में वनमाफिया के खिलाफ कार्रवाई की बात करते हैं तो वनवासी समाज में उसका सकारात्मक संदेश जाता है। इससे पहले भी योगी आदित्यनाथ वनवासी कार्यक्रम में बजरंग बली को दलित बता कर वनवासी समाज को पार्टी से जोड़ने की लाइन पर दस कदम आगे चल चुके थे।

बनारसमिर्जापुर के मुसहरों से बात करने पर एक बात जो सामने आई वो यह कि ढाई लाख रुपये के सरकारी मकान वाली योजना ने उन्‍हें अकेले बीजेपी का एकतरफा वोटर बना दिया। मुसहरों के बीच बरसों से काम कर रहे बनारस के सामाजिक कार्यकर्ता डॉ। लेनिन कहते हैं, ‘’यह योजना आयोग की पहली ऐसी योजना थी जिसमें सारा खर्च सरकार का था। मोदी ने योजना आयोग को भंग कर दिया लेकिन इस योजना को अपनी योजना के रूप में प्रचारित कर के वोट जुटा लिए।‘’

पूर्वांचल के मुसहर बेल्‍ट के मुसहरों ने बीजेपी को इस बार एकतरफा वोट दिया है। उसकी एक वजह तो यह है कि ये मुसहर जिनके ईंटभट्ठों में बंधुआ मजदूरी करते हैं वे दबंग मालिकान मोटे तौर पर बीजेपी के वोटर हैं। इसकी दूसरी वजह हालांकि बीजेपी का ज़मीनी काम भी है, इसमें कोई शक नहीं। 2019 के चुनाव में बीजेपी को मिली सीटों का भले कुछ भी आकलन होता रहे लेकिन जमीनी स्तर पर योजनाओं के कार्यान्‍वयन और लाभार्थियों से संवाद की जो योजना बीजेपी के पास है, वह विपक्ष में नदारद है।

जातिगत गणित और मोदी सरकार के कुछ सख्त कार्यक्रमों (जीएसटी नोटबंदी) के खिलाफ आक्रोश को ठंडा किए जाने और उसे वापस बीजेपी की ओर मोड़े जाने के रहस्‍य को समझने के लिए यह जानना जरूरी है कि ईसाई मिशनरी और बसपा के कोर वोटरों को लुभाने में बीजेपी कैसे इतनी सफल रही है।

बीजेपी के नेता शशांक शेखर बताते हैं कि संघ के पूर्वी क्षेत्र प्रचारक अनिलजी के निर्देश पर पिछले पांच महीनों से वे 200 महादलित बस्तियों में संपर्क कर रहे थे। वे बताते हैं, ‘’तमाम गतिरोधों के बावजूद हम इन बस्तियों में योगी सरकार की योजनाओं का लाभ समझाने में सफल हुए’’

शशांक पूरे आत्मविश्वास से कहते हैं, “माता शबरी की संतानें अपने श्रीराम से कब तक दूर रह सकती हैं? उन्हें मुख्यधारा में वापस लाना हमारा धर्म और कर्तव्य दोनों है

जाहिर तौर पर बीजेपी और संघ के नेता अपनी इन कोशिशों में सफल रहे हैं। वाराणसी दक्षिणी के विधायक और राज्यमंत्री डॉ। नीलकंठ तिवारी, एमएलसी लक्ष्मण आचार्य और संघ प्रचारक राजेंद्र प्रताप पांडेय ने 16 मई के संवाद कार्यक्रम की रूपरेखा तैयार की थी। पांच हजार से ज्यादा महादलितों के मुख्यमंत्री के संवाद कार्यक्रम में लाकर इन्‍होंने पूर्वांचल में बीजेपी की जीत की बुनियाद रख दी। जौनपुर और वाराणसी से लगे मछलीशहर सुरक्षित सीट से बीजेपी की 180 मतों से विजय इसी सफलता की कहानी कह रही है।

गौरतलब है कि 16 मई से एक दिन पहले 15 मई की शाम कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी के रोड शो में बंपर भीड़ देखने को मिली थी, लेकिन कांग्रेस और महागठबंधन से कोई ये पूछे कि उनकी पार्टी के कार्यकर्ता जनता को अपनी विचारधारा से जोड़ने के लिए किस संपर्क अभियान पर थे, तो उनके पास सिर्फ चुनाव प्रचार की दलीलें होंगी। हकीकत यह है कि चुनाव सिर्फ प्रचार से नहीं, जनसंपर्क से जीते जाते हैं। संवाद से जीते जाते हैं।

एक ऐसे चुनाव में आप कांग्रेस की कामयाबी का मुग़ालता कैसे पाल सकते हैं जहां अध्‍यक्ष राहुल गांधी अपनी जनसभाओं में स्‍थानीय प्रत्‍याशी का जनता से परिचय तक नहीं करवाते और आदिवासी बहुत छत्‍तीसगढ़ के पिछड़े क्षेत्र बस्‍तर में जाकर राफेल सौदे का घोटाला गिनवाते हैं?

(मीडियाविजिल से साभार)

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