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उड़ीसा में सामूहिक बलात्कार की शिकार लड़़की द्वारा आत्महत्या?

22 जनवरी को उड़ीसा के कोरापुट जिले में एक नाबालिग दलित लड़की ने आत्महत्या कर ली। 10 अक्टूबर, 2017 को उसे सामूहिक बलात्कार का शिकार बनाया गया था। उसने सुरक्षाबलों के चार जवानों के विरुद्ध सामूहिक बलात्कार करने की शिकायत की थी। सुरक्षाबलों के जवानों के विरुद्ध शिकायत करने के बावजूद उड़ीसा की पुलिस न सिर्फ निष्क्रिय बनी रही बल्कि पीड़ित नाबालिग लड़की पर शिकायत वापस लेने के लिए लगातार दबाव डालती रही। उक्त नाबालिग लड़की अपनी आगे पढ़ाई जारी रखना चाहती थी लेकिन लगातार मीडिया में चर्चित काण्ड होने और विवादों में घिरे रहने की वजह से वह पढ़ाई जारी नहीं रख सकी। यह जानी हुई बात है कि जब आरोपी पुलिस और सुरक्षा बल के जवान होते हैं तो न सिर्फ आरोपियों को बचाने के लिए सरकारें कोशिश करती हैं बल्कि खुद पीड़ित को ही मुकदमा वापस लेने के लिए दबाव बनाती हैं, उसे ही तंग-परेशान और उत्पीड़ित करती हैं। इस मामले में भी पीड़िता के साथ ऐसा ही हुआ। उड़ीसा की राज्य सरकार और प्रशासन ने वस्तुतः पीड़ित नाबालिग बच्ची को आत्महत्या करने के लिए विवश किया है।

‘‘यौन हिंसा और राज्य दमन के विरुद्ध महिलायें’ (WSS) ने घटनाचक्र का ब्यौरा इस प्रकार दिया हैः
‘‘7 नवम्बर को सरकार के मानव अधिकार सेल ने उसके पास मौजूद मेडिकल रिपोर्ट के आधार पर साक्ष्य के अभाव के कारण सामूहिक बलात्कार की संभावना से इंकार किया। घटना के 17 दिनों बाद उसे (पीड़िता को) जिला बाल कल्याण कमेटी की सुपुर्दगी में रखा गया।
लड़की ने पत्रकारों और अस्पताल में उसके पास जाने वाले अन्य व्यक्तियों से बार-बार अपनी यह परेशानी बतायी कि उस पर विश्वास नहीं किया जा रहा है।

होना तो यह चाहिए था कि अपराधियों के बारे में उसके द्वारा दिये गये विवरण या यह तथ्य कि अभियुक्त वर्दीधारी हैं, की पहचान करने की कार्रवाई होती। इसके बजाय, पुलिस ने पूछताछ के लिए उसी गांव के चार लड़कों को पकड़ लिया और उनको पीटा भी। पुलिस उनमें से एक को झूठ पकड़ने के टेस्ट के लिए भुवनेश्वर में किसी अज्ञात स्थान पर भी ले गयी।

राज्य के पुलिस महानिदेशक ने मामले को रेड फ्लैग कैटेगरी के अंतर्गत सूचीबद्ध कर लिया और पुलिस के शुरुआती बयानों में यहां तक कि माओवादियों पर आरोप लगाये गये।

स्थानीय संगठनों और प्रभावित समुदाय द्वारा सुरक्षा बलों को वहां से हटाने की मांग को पूर्णतया अनसुना किया गया।

पूरी जांच के अभाव में पुलिस और प्रशासन द्वारा सामूहिक बलात्कार से इंकार करने और लम्बे समय तक देरी करने के साथ-साथ लगातार मीडिया में चल रहे प्रचार ने परिवार और समुदाय की पीड़ा और बेचैनी को अत्यधिक बढ़ा दिया। कोई भी कल्पना कर सकता है कि इससे युवा लड़की पर क्या बीती होगी?

लड़की ने 18 नवम्बर, 2017 को आत्महत्या करने का पहला प्रयास उस समय किया जब उसने आयरन की गोलियां भारी मात्रा में निगल ली थीं। तब उसे तुरंत कटक के एस.सी.बी. मेडिकल कालेज अस्पताल में ले जाया गया। उसकी मां ने जबरन नजरबंदी की शिकायत की थी और तब 27 नवम्बर को अंततः उसे अस्पताल से मुक्त किया गया। यदि सामूहिक बलात्कार नहीं हुआ होता तो पुलिस और प्रशासन को भारी सुरक्षा के अंतर्गत उसे अस्पताल में रखने की बिल्कुल जरूरत नहीं होती।

मुख्यमंत्री ने 8 नवम्बर को एक जिला जज द्वारा जांच का आदेश दिया। 6 जनवरी को न्यायिक आयोग का गठन किया गया। जांच चल रही थी।
दिसम्बर के अंत में एक बार फिर कहा कि उसे अपना मुकदमा वापस लेने के लिए वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों द्वारा घूस दी जा रही है। शायद यह उसका आखिरी सार्वजनिक बयान था। मीडिया के अनुसार, उसका आत्महत्या के बारे में नोट पुलिस के पास है।”

डब्ल्यूएसएस ने अपने बयान के अंत में यह सवाल उठाया है कि इस आत्महत्या के लिए जिम्मेदार कौन है?
इस घटना ने इसे एक बार फिर से उजागर कर दिया है कि राज्य की पुलिस और किसी भी इलाके में तैनात सुरक्षा बल महिलाओं के साथ बलात्कार सहित जो तरह-तरह के उत्पीड़न करते हैं, उन पर कोई कार्यवाही आम तौर पर नहीं होती। खासकर, जब वे समाज के दबे-कुचले तबके की महिलाओं के साथ ऐसा करते हैं तो वे निद्र्वन्द होकर करते हैं। यही बलात्कार यदि समाज के कमजोर, गरीब, दलित-आदिवासी लड़की के साथ नहीं होता बल्कि किसी खाते-पीते तबके या पूंजीवादी राजनीति में दखल रखने वाले घर से सम्बन्ध रखने वाली महिला के साथ होता तो समूचे समाज में ऐसे बलात्कारियों को सजा देने की मांग जोर-शोर से उठ रही होती। वह मांग जायज होती। लेकिन जब ऐसी ही घटनायें समाज के कमजोर, गरीब, दलित-उत्पीड़ित या अल्पसंख्यक समुदायों में घटित होती हैं, तो उस पर समाज के मध्यम वर्ग या ऊपरी हिस्से का गुस्सा या विरोध उतना नहीं दिखाई देता।

इस 16 वर्षीय दलित लड़की की आत्महत्या वस्तुतः शासक वर्ग द्वारा की गयी हत्या है। ऐसी हत्‍याएं शासक वर्ग देश भर में हजारों तरीकों से कर रहा है। सामूहिक बलात्कार के बाद हत्याओं से समाचार भरे रहते हैं।

शासक वर्ग के प्रतिनिधि इन पर घड़ियाली आंसू बहाते रहते हैं, न्याय का नाटक करते हैं, पर स्थितियों में कोई परिवर्तन नहीं होता है। यह परिवर्तन सिर्फ क्षणिक गुस्से में बलात्कारी को फांसी देने की मांग से नहीं होगा बल्कि अन्याय, उत्पीड़न, शोषण पर टिकी समाज व्यवस्था के विरुद्ध सामूहिक लड़ाई से होगा। पितृसत्ता के विरुद्ध लड़ाई इस व्यापक लड़ाई का हिस्सा होगी।
(साभार: नागरिक)

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