जनता की भावनाओं को स्वर देने का एक आसान लेकिन मारक माध्यम व्यंग्य है। हरिशंकर परसाई हिंदी के सर्वकालिक महानतम व्यंग्यकारों में हैं जिन्होंने सरल शब्दों में जनता के दुख-दर्द को रखा है। बरसों पहले लिखे गए ये लघु व्यंग्य आज के वक्त हमारे समाज की विडम्बनाओं को सामने लाने का काम करते हैं।
संस्कृति
भूखा आदमी सड़क किनारे कराह रहा था। एक दयालु आदमी रोटी लेकर उसके पास पहुंचा और उसे दे ही रहा था कि एक दूसरे आदमी ने उसको खींच लिया। वह आदमी बड़ा रंगीन था।
पहले आदमी ने पूछा, ‘ क्यों भाई, भूखे को भोजन क्यों नहीं देते?’
रंगीन आदमी बोला ? ‘ ठहरो, तुम इस प्रकार उसका हित नहीं कर सकते। तुम केवल उसके तन की भूख समझ पाते हो, मैं उसकी आत्मा की भूख जानता हूं। देखते नहीं हो, मनुष्य-शरीर में पेट नीचे है और हृदय ऊपर। हृदय की अधिक महत्ता है। ‘
पहला आदमी बोला, ‘ लेकिन उसका हृदय पेट पर ही टिका हुआ है। अगर पेट में भोजन नहीं गया तो हृदय की टिक-टिक बंद नहीं ही जाएगी। ‘
रंगीन आदमी हंसा, फिर बोला, ‘ देखो, मैं बतलाता हूं कि उसकी भूख कैसे बुझेगी। ‘
यह कहकर वह उस भूखे के सामने बांसुरी बजाने लगा। दूसरे ने पूछा, ‘ यह तुम क्या कर रहे हो, इससे क्या होगा?’
रंगीन आदमी बोला, ‘ मैं उसे संस्कृति का राग सुना रहा हूं। तुम्हारी रोटी से तो एक दिन के लिए ही उसकी भूख भागेगी, संस्कृति’ के राग से उसकी जनम-जनम की भूख भागेगी। ‘
वह फिर बांसुरी बजाने लगा।
और तब वह भूखा उठा और बांसुरी झपटकर पास की नाली में फेंक दी।
चंदे का डर
एक छोटी-सी समिति की बैठक बुलाने की योजना चल रही थी। एक सज्जन थे जो समिति के सदस्य थे, पर काम कुछ करते नहीं गड़बड़ पैदा करते थे और कोरी वाहवाही चाहते । वे लंबा भाषण देते थे।
वे समिति की बैठक में नहीं आवें ऐसा कुछ लोग करना चाहते थे, पर वे तो बिना बुलाए पहुंचने वाले थे। फिर यहां तो उनको निमंत्रण भेजा ही जाता, क्योंकि वे सदस्य थे।
एक व्यक्ति बोला, ‘ एक तरकीब है। सांप मरे न लाठी टूटे। समिति की बैठक की सूचना ‘ नीचे यह लिख दिया जाए कि बैठक में बाढ़-पीड़ितों के लिए धन-संग्रह भी किया जाएगा। वे इतने उच्चकोटि के कंजूस हैं कि जहां चंदे वगैरह की आशंका होती है, वे नहीं पहुंचते। ‘
वात्सल्य
एक मोटर से 7-8 साल का एक बच्चा टकरा गया। सिर में चोट आ गई। वह रोने लगा।
आसपास के लोग सिमट आए। सब क्रोधित। मां-बाप भी आ गए। ‘ पकड़ लो ड्राइवर को। ‘ भागने न पाए। ‘ पुकार लगने लगी। लोग मारने पर उतारू। भागता है तो पिटता है। लोगों की आंखों में खून आ गया है।
उसे कुछ सूझा। वह बढ़ा और लहू में सने बच्चे को उठाकर छाती से चिपका लिया। उसे थपथपाकर बोला – ‘ बेटा! बेटा!’
इधर लोगों का क्रोध गायब हो गया था
मां-बाप कहने लगे. ‘ कितना भला आदमी है।? और होता तो भाग जाता। ”
अपना-पराया
आप किस स्कूल में शिक्षक है, ‘
मैं लोकहितकारी विद्यालय में हूं। क्यों कुछ काम है क्या? ”
हाँ ‘ मेरे लड़के को स्कूल में भरती करना है।”
‘ तो हमारे स्कूल में ही भरती करा दीचिए। ‘
‘ पढाई-वढाई कैसी है?
‘नंबर वन। बहुत अच्छे शिक्षक हैं. बहुत अच्छा वातावरण है. बहुत अच्छा स्कूल है।’
‘तो आपका बच्चा भी वहीं पढ़ता होगा।’
‘जी, नहीं, मेरा बच्चा तो आदर्श विद्यालय में पढ़ता है’
नयी धारा
उस दिन एक कहानीकार मिले। कहने ‘ लगे, ‘ बिल्कुल नयी कहानी लिखी है, बिल्कुल नयी शैली, नया विचार, नयी धारा। ‘ हमने कहा ‘ क्या शीर्षक है? ”
वे बोले, ‘ चांद सितारे अजगर सांप बिच्छू झील। ‘
दानी
बाढ़ पीड़ितों के लिए चंदा हो रहा था।
कुछ जनसेवकों ने एक संगीत समारोह का आयोजन किया, जिसमें धन एकत्र करने की योजना बनाई। वे पहुंचे एक बडे सेठ साहब के पास। उनसे कहा, ‘ देश पर इस समय संकट आया है। लाखों भाई बहन बेघर बार हैं उनके लिए अन्न वस्त्र जुटाने के लिए आपको एक बड़ी रकम देनी चाहिए। आप समारोह में आइएगा। वे बोले – ‘ भगवान की इच्छा में कौन बाधा डाल सकता है। जब हरि की इच्छा ही है तो हम किसी की क्या सहायता कर सकते हैं?
फिर भैया रोज दो चार तरह का चंदा तो हम देते हैं और व्यापार में दम नहीं है।’
एक जनसेवी ने कहा, ‘समारोह में खाद्यमंत्री भी आने वाले हैं ओर वे स्वयं धन एकत्र करेंगे।”
सेठजी के चेहरे पर -चमक आयी’ जैसे भक्त के मुख पर भगवान का स्मरण होने पर आती है। । वे ‘बोले हां, बेचारे तकलीफ में हैं। क्या किया जाए ‘ हमसे तो जहां तक हो सकता है, मदद करते ही हैं। आखिर हम भी ‘ देशवासी हैं। आप आए हो तो खाली थोड़े जाने दूंगा। एक हजार दे दूंगा। मंत्रीजी ही लेंगे न? वे ही अपील करेंगे न? उनके ही हाथ में देना होगा न’ ‘
वे बोले, ‘ जी हां, मंत्रीजी ही रकम लेंगे।
सेठजी बोले, ‘ बस-बस, तो ठीक है। मैं ठीक वक्त पर आ जाऊंगा। ‘
समारोह में सेठजी एक हजार रुपए लेकर पहुंचे, पर संयोगवश मंत्रीजी जरा पहले उठकर जरूरी काम से चले गए। वे अपील नहीं कर पाए, चंदा नहीं ले पाए।
संयोजकों ने अपील की। पैसा आने लगा।
सेठजी के पास पहुंचे।
सेठजी बोले. ‘ हमीं को बुद्धू बनाते हो!
तुमने तो कहा था ? मंत्री खुद लेंगे और वे तो चल दिए। ‘
सुधार
एक जनहित की संस्था में कुछ सदस्यों ने आवाज उठायी, ‘संस्था का काम असंतोषजनक चल रहा है। इसमें बहुत सुधार होना चाहिए।
संस्था बरबाद हो रही है। इसे डूबने से बचाना चाहिए। इसको या तो सुधारना चाहिए या भंग कर देना चाहिए। ‘
संस्था के अध्यक्ष ने पूछा कि किन-किन सदस्यों को असंतोष है।
10 सदस्यों ने असंतोष व्यक्त किया।
अध्यक्ष ने कहा ‘हमें सब लोगों का सहयोग चाहिए। सबको संतोष हो, इसी तरह हम काम करना चाहते हैं। आप 10 सज्जन क्या सुधार चाहते हैं, कृपा कर बतलावें। ‘
और उन दस सदस्यों ने आपस में विचार कर जो सुधार सुझाए, वे ये थे
‘संस्था में 4 सभापति 1 उप सभापति और ३ मंत्री और होने चाहिए. 10 सदस्यों की संस्था के काम से बड़ा असंतोष था।