skip to Main Content

शरद जोशी के दो व्‍यंग्‍य

नेतृत्‍व की ताकत

नेता शब्द दो अक्षरों से बना है- ‘ने’ और ‘ता’। इनमें एक भी अक्षर कम हो तो कोई नेता नहीं बन सकता । मगर हमारे शहर के एक नेता के साथ एक अजीब ट्रेजेडी हुई। वे बड़ी भागदौड़ में रहते थे। दिन गेस्ट हाउस में गुजारते रातें डाक बंगलों में। लंच अफसरों के सात लेते डिनर सेठों के साथ। इस बीच तो वक्त मिलता उसमें भाषण देते। कार्यकर्ताओं को संबोधित करते। कभी कभी खुद संबोधित हो जाते। मतलब यह कि बड़े व्यस्त। ‘ने’ औॅर ‘ता’ दो अक्षरों से मिलकर तो बने थे एक दिन यह हुआ कि उनका ‘ता’ खो गया सिर्फ ‘ने’ रह गया।

इतने बड़े नेता और ‘ता’ गायब। शुरू में तो उन्हें पता ही नहीं चला बाद में सेक्रेट्री ने बताया कि आपका ‘ता’ नहीं मिल रहा है। आप सिर्फ ‘ने’ से काम चला रहे हैं।

नेता बड़े परेशान। नेता का मतलब होता है नेतृत्व करने की ताकत। ताकत चली गई सिर्फ नेतृत्व रह गया। ‘ता’ के साथ ताकत गई। तालियाँ खत्म हो गईं जो ‘ता’ के कारण बजती थीं। ताजगी नहीं रही। नेता बहुत चीखे। मेरे खिलाफ यह हरकत विरोधी दलों ने की है। इसमें विदेशी शक्तियों का हाथ है। यह मेरी छवि धूमिल करने का प्रयत्न है। पर जिसका ‘ता’ चला जाए उस नेता की सुनता कौन है। सी आई डी लगाई गई। सी बी आई ने जाँच की। रौ की मदद ली गई। ‘ता’ नहीं मिला।

नेता ने एक सेठ जी से कहा- यार हमारा ‘ता’ गायब है। अपने ताले में से ‘ता’ हमें दे दो।

सेठ कुछ देर सोचता रहा फिर बोला- यह सच है कि ले की मुझे जरूरत रहती है क्यों कि दे का तो काम नहीं पड़ता मगर ताले का ‘ता’ चला जाए तो लेकर रखेंगे कहाँ। सब इनकमटैक्स वाले ले जाएँगे। तू नेता रहे कि न रहे मैं ताले का ‘ता’ तो तुझे नहीं दूँगा। ‘ता’ मेरे लिये बहुत जरूरी है। कभी तालाबंदी करनी पड़े तो ऐसे वक्त तू तो मजदूरों का साथ देगा मुझे ‘ता’ थोड़े देगा।

सेठ जी को नेता ने बहुत समझाया। जब तक नेता रहूँगा मेरा ‘ता’ आपके ताले का समर्थन और रक्षा करेगा। आप ‘ता’ मुझे दे दें। और फिर ले आपका। लेते रहिये मैं कुछ नहीं कहूँगा। सेठ जी नहीं माने। नेता क्रोध से उठकर चले आए।

विरोधी मजाक बनाने लगे। अखबारों में खबर उछली कि कई दिनों से नेता का ‘ता’ नहीं रहा। अगर ने भी चला गया तो यह कहीं का नहीं रहेगा। खुद नेता के दल के लोगों ने दिल्ली जाकर शिकायत की। आपने एक ऐसा नेता हमारे सिर पर थोप रखा है जिसके पास ‘ता’ नहीं है।

नेता दुखी था पर उसमें इतनी हिम्मत नहीं थी कि वह जनता में जाए और कबूल करे कि उसमें ‘ता’ नहीं है। यदि वह ऐसा करता तो जनता शायद अपना ‘ता’ उसे दे देती। पर उसे डर था कि जनता के सामने उसकी पोल खुल गई तो क्या होगा।

एक दिन उसने अजीब काम किया। कमरा बंद कर जूते में से ‘ता’ निकाला और ‘ने’ से चिपकाकर फिर नेता बन गया। यद्यपि उसके व्यक्तित्व से दुर्गंध आ रही थी मगर वह खुश था कि चलो नेता तो हूँ। केन्द्र ने भी उसका समर्थन किया। पार्टी ने भी कहा- जो भी नेता है ठीक है। हम फिलहाल परिवर्तन के पक्ष में नहीं हैं।

समस्या सिर्फ यह रह गई कि लोगों को इस बात का पता चल गया। आज स्थिति यह है कि लोग नेता को देखते हैं और अपना जूता हाथ में उठा लेते हैं। उन्हें डर है कि कहीं वो इनके जूतों में से ‘ता’ न चुरा ले।

पत्रकार अक्सर प्रश्न पूछते हैं- सुना आपका ‘ता’ गायब हो गया था पिछले दिनों। वे धीरे से कहते हैं। गायब नहीं हो गया था वो बात यह थी कि माता जी को चाहिये था तो मैंने उन्हें दे दिया था। आप तो जानते हैं मैं उन्हें कितना मानता हूँ। आज मैं जो भी कुछ हूँ उनके ही कारण हूँ। वे ‘ता’ क्या मेरा ‘ने’ भी ले लें तो मैं इन्कार नहीं करूँगा।

ऐसे समय में नेता की नम्रता देखते ही बनती थी। लेकिन मेरा विश्वास है मित्रों जब भी संकट आएगा नेता का ‘ता’ नहीं रहेगा। लोग निश्चित ही जूता हाथ में ले बढ़ेंगे और प्रजातंत्र की प्रगति में अपना योग देंगे।

एक भूतपूर्व मंत्री से मुलाकात

मंत्री थे तब उनके दरवाज़े कार बँधी रहती थी। आजकल क्वार्टर में रहते हैं और दरवाज़े भैंस बँधी रहती है। मैं जब उनके यहाँ पहुँचा वे अपने लड़के को दूध दुहना सिखा रहे थे और अफ़सोस कर रहे थे कि कैसी नई पीढ़ी आ गई है जिसे भैंसें दुहना भी नहीं आता।
मुझे देखा तो बोले – ‘जले पर नमक छिड़कने आए हो!’

‘नमक इतना सस्ता नहीं है कि नष्ट किया जाए। कांग्रेस राज में नमक भी सस्ता नहीं रहा।’

‘कांग्रेस को क्यों दोष देते हो! हमने तो नमक–आंदोलन चलाया।’ – फिर बड़बड़ाने लगे, ‘जो आता है कांग्रेस को दोष देता है। आप भी क्या विरोधी दल के हैं?’

‘आजकल तो कांग्रेस ही विरोधी दल है।’

वे चुप रहे। फिर बोले, ‘कांग्रेस विरोधी दल हो ही नहीं सकती। वह तो राज करेगी। अंग्रेज़ हमें राज सौंप गए हैं। बीस साल से चला रहे हैं और सारे गुर जानते हैं। विरोधियों को क्या आता है, फ़ाइलें भी तो नहीं जमा सकते ठीक से। हम थे तो अफ़सरों को डाँट लगाते थे, जैसा चाहते थे करवा लेते थे। हिम्मत से काम लेते थे। रिश्तेदारों को नौकरियाँ दिलवाईं और अपनेवालों को ठेके दिलवाए। अफ़सरों की एक नहीं चलने दी। करके दिखाए विरोधी दल! एक ज़माना था अफ़सर खुद रिश्वत लेते थे और खा जाते थे। हमने सवाल खड़ा किया कि हमारा क्या होगा, पार्टी का क्या होगा?’

‘हमने अफ़सरों को रिश्वत लेने से रोका और खुद ली। कांग्रेस को चंदा दिलवाया, हमारी बराबरी ये क्या करेंगे?’

‘पर आपकी नीतियाँ ग़लत थीं और इसलिए जनता आपके ख़िलाफ़ हो गई!’

‘कांग्रेस से यह शिकायत कर ही नहीं सकते आप। हमने जो भी नीतियाँ बनाईं उनके ख़िलाफ़ काम किया है। फिर किस बात की शिकायत? जो उस नीति को पसंद करते थे, वे हमारे समर्थक थे, और जो उस नीति के ख़िलाफ़ थे वे भी हमारे समर्थक थे, क्यों कि हम उस नीति पर चलते ही नहीं थे।’
मैं निरुत्तर हो गया।

‘आपको उम्मीद है कि कांग्रेस फिर इस राज्य में विजयी होगी?’

‘क्यों नहीं? उम्मीद पर तो हर पार्टी कायम है। जब विरोधी दल असफल होंगे और बेकार साबित होंगे, जब दो ग़लत और असफल दलों में से ही चुनाव करना होगा, तो कांग्रेस क्या बुरी? बस तब हम फिर ‘पावर’ में आ जाएँगे। ये विरोधी दल उसी रास्ते पर जा रहे हैं जिस पर हम चले थे और इनका निश्चित पतन होगा।’

‘जैसे आपका हुआ।’

‘बिल्कुल।’

‘जब से मंत्री पद छोड़ा आपके क्या हाल हैं?’

‘उसी तरह मस्त हैं, जैसे पहले थे। हम पर कोई फ़र्क नहीं पड़ा। हमने पहले से ही सिलसिला जमा लिया था। मकान, ज़मीन, बंगला सब कर लिया। किराया आता है। लड़के को भैस दुहना आ जाए, तो डेरी खोलेंगे और दूध बेचेंगे, राजनीति में भी रहेंगे और बिज़नेस भी करेंगे। हम तो नेहरू–गांधी के चेले हैं।’

‘नेहरू जी की तरह ठाठ से भी रह सकते हैं और गांधी जी की तरह झोंपड़ी में भी रह सकते हैं। ख़ैर, झोंपड़ी का तो सवाल ही नहीं उठता। देश के भविष्य की सोचते थे, तो क्या अपने भविष्य की नहीं सोचते! छोटे भाई को ट्रक दिलवा दिया था। ट्रक का नाम रखा है देश–सेवक। परिवहन की समस्या हल करेगा।’

‘कृषि–मंत्री था, तब जो खुद का फ़ार्म बनाया था, अब अच्छी फसल देता है। जब तक मंत्री रहा, एक मिनट खाली नहीं बैठा, परिश्रम किया, इसी कारण आज सुखी और संतुष्ट हूँ। हम तो कर्म में विश्वास करते हैं। धंधा कभी नहीं छोड़ा, मंत्री थे तब भी किया।’

‘आप अगला चुनाव लड़ेंगे?’

‘क्यों नहीं लड़ेंगे। हमेशा लड़ते हैं, अब भी लड़ेंगे। कांग्रेस टिकट नहीं देगी तो स्वतंत्र लड़ेंगे।’

‘पर यह तो कांग्रेस के ख़िलाफ़ होगा।’

‘हम कांग्रेस के हैं और कांग्रेस हमारी है। कांग्रेस ने हमें मंत्री बनने को कहा तो बने। सेवा की है। हमें टिकट देना पड़ेगा। नहीं देंगे तो इसका मतलब है कांग्रेस हमें अपना नहीं मानती। न माने। पहले प्रेम, अहिंसा से काम लेंगे, नहीं चला तो असहयोग आंदोलन चलाएँगे। दूसरी पार्टी से खड़े हो जाएँगे।’

‘जब आप मंत्री थे, जाति–रिश्तेवालों को बड़ा फ़ायदा पहुँचाया आपने।’

‘उसका भी भैया इतिहास है। जब हम कांग्रेस में आए और हमारे बारे में उड़ गई कि हम हरिजनों के साथ उठते–बैठते और थाली में खाना खाते हैं, जातिवालों ने हमें अलग कर दिया और हमसे संबंध नहीं रखे। हम भी जातिवाद के ख़िलाफ़ रहे और जब मंत्री बने, तो शुरू–शुरू में हमने जातिवाद को कसकर गालियाँ दीं।’

‘दरअसल हमने अपने पहलेवाले मंत्रिमंडल को जातिवाद के नाम से उखाड़ा था। सो शुरू में तो हम जातिवाद के ख़िलाफ़ रहे। पर बाद में जब जातिवालों को अपनी ग़लती पता लगी तो वे हमारे बंगले के चक्कर काटने लगे। जाति की सभा हुई और हमको मानपत्र दिया गया और हमको जाति – कुलभूषण की उपाधि दी। हमने सोचा कि चलो सुबह का भूला शाम को घर आया। जब जाति के लोग हमसे प्रेम करते हैं, तो कुछ हमारा भी फर्ज़ हो जाता है। हम भी जाति के लड़कों को नौकरियाँ दिलवाने, तबादले रुकवाने, लोन दिलवाने में मदद करते और इस तरह जाति की उन्नति और विकास में योग देते। आज हमारी जाति के लोग बड़े–बड़े पदों पर बैठे हैं और हमारे आभारी हैं कि हमने उन्हें देश की सेवा का अवसर दिया। मैंने लड़कों से कह दिया कि एम.ए. करके आओ चाहे थर्ड डिवीजन में सही, सबको लैक्चरर बना दूँगा। अपनी जाति बुद्धिमान व्यक्तियों की जाति होनी चाहिए। और भैया अपने चुनाव–क्षेत्र में जाति के घर सबसे ज़्यादा हैं। सब सॉलिड वोट हैं। सो उसका ध्यान रखना पड़ता है। यों दुनिया जानती है, हम जातिवाद के ख़िलाफ़ हैं। जब तक हम रहे हमेशा मंत्रिमंडल में राजपूत और हरिजनों की संख्या नहीं बढ़ने दी। हम जातिवाद से संघर्ष करते रहे और इसी कारण अपनी जाति की हमेशा मेजॉरिटी रही।’

लड़का भैंस दुह चुका था और अंदर जा रहा था। भूतपूर्व मंत्री महोदय ने उसके हाथ से दूध की बाल्टी ले ली।

‘अभी दो किलो दूध और होगा जनाब। पूरी दुही नहीं है तुमने। लाओ हम दुहें।’ – फिर मेरी ओर देखकर बोले, एक तरफ़ तो देश के बच्चों को दूध नहीं मिल रहा, दूसरी ओर भैंसें पूरी दुही नहीं जा रहीं। और जब तक आप अपने स्रोतों का पूरी तरह दोहन नहीं करते, देश का विकास असंभव हैं।’
वे अपने स्रोत का दोहन करने लगे। लड़का अंदर जाकर रिकार्ड बजाने लगा और ‘चा चा चा’ का संगीत इस आदर्शवादी वातावरण में गूँजने लगा।

मैंने नमस्कार किया और चला आया।

Print Friendly, PDF & Email
Back To Top