18 अप्रैल के बिटिया के गवना के दिन धइलें बाटीं, खेतवा में तीन एकड़ गन्ना के फसल खड़ी बा। फसल बढ़िया भईल तब सोचलीं भगवानों दुखिया के दर्द समझत बाटें, केहू से कर्जा नाहीं लेवेके पड़ी। सोचलीं कि बिटिया के गवनवा के खर्चा फसलिया बेच के निपटाई देब। 2014-15 के अबहीं 22 हजार रूपिया मिलवा से नाहीं मिलल। घर में बिटिया और खेतवा में फसलिया देख के रतिया के नींद नाहीं आवत बा…।
वे अपनी बात पूरी करते, इससे पहले ही 58 वर्षीय रामबृक्ष यादव की आंखें अलाव की रोशनी में चमकने लगीं। मेरी नजर भांप कर अपना चेहरा घुटनों के बीच कर के जल्दी से उन्होंनें आंखें पोछ लीं। अचानक छायी निस्तब्धता को शिवपूजन चौधरी ने अवसर समझा और तपाक से बोल पड़े–
2014-15 में 20,000 और 2017-18 में 25,000 रुपइया के 2 पर्ची के पइसा आज तक नाहीं मिलल। मार्च में बिटिया के शादी हवे, 1.75 एकड़ खेत में गन्ना के फसल अब सूखे लागल, खेतवा बंधक रखले के अलावा कउनो चारा नाहीं लउकत बा…।
शिवपूजन की बात पूरी भी नहीं हुई थी कि कई लोग एक साथ बोल पड़े– ‘के तोहर खेतवा बंधक रखी, जब सबकर इहे हाल बा…?’ इस सवाल ने शिवपूजन को निरुत्तर कर दिया। तभी एक बुजुर्ग ने कहा– ‘’बाबू, पइसवा भले ने मिले लेकिन खेतवा से गन्नवा के फसलिया हट जात, तब हमने, दूसरे फसल के तैयारी करतीं।‘’ सभी ने इस पर सहमति जाहिर की।
गांव में पत्रकारों के आने सूचना जैसे लोगों को मिलती, लोग अपना नाम और फसल का विवरण दर्ज करवाने चले आते, इस उम्मीद में कि जिम्मेदारों तक उनकी व्यथा पहुंचे। अगले दिन सुबह हमारे गांव छोड़ने तक यही सिलसिला जारी रहा।
जिला महाराजगंज, निचलौल तहसील के किशुनपुर सहित सैकड़ों गांवों के किसानों ने गन्ने के फसल से संभावित आय की उम्मीद में कई योजनाएं तैयार कर ली थीं। किसी ने बिटिया की शादी तय कर दी तो किसी ने किराये पर खेत और कर्ज लेकर गन्ना बो दिया। अब जबकि जेएचवी शुगर लिमिटेड, गड़ौरा के चलने की उम्मीद खत्म हो चुकी है, उनकी आंखों की नींद गायब है। किसानों के मुताबिक केवल किशुनपुर में ही 750 एकड़ रकबे में से 500 एकड़ गन्ने की फसल है। गड़ौरा, शुक्रहर, मैरी, शितलापुर, धमौरा, मठरा, इंडहिया, रंगहिया, लक्ष्मीपुर, कड़जा, छितौना, शरकलिया, परागपुर, हरगांवा, करमहियां सहित 99 गांवों के गन्ने की फसल सीधे मिल पर गिरती है। 33 जगहों पर हर साल मिल की ओर से सेंटर लगाया जाता है, प्रत्येक सेंटर 10 गांव के बीच लगाया जाता है।
जेएचवी मिल से 48,000 कास्तकार जुड़े हैं, जो ज्यादातर सीमांत व लघु किसान हैं। किसानों का मिल पर 2014-15 का 22.92 करोड़ और 2017-18 23 करोड़ सहित कुल 45.92 करोड़ रुपया बकाया है। फिर भी किसानों की प्राथमिकता में खेत में खड़े गन्ने को मिल तक पहुंचाना है, बकाया पैसों के लिए वे सालों इंतजार करने को तैयार हैं। फसल कटने में हुई देरी के कारण गन्ने की गुणवत्ता में 40 प्रतिशत गिरावट आ चुकी है। दलालों का सक्रिय गिरोह 150 रुपया कुंतल तक गन्ना खरीद कर मुनाफा कूट रहा है, जबकि गन्ने का न्यूनतम समर्थन मूल्य 310 से 325 रुपया प्रति कुंतल है।
किसानों के आंदोलन की सूचना पर हम जब किशुनपुर गांव पहुँचे तो करीब दो दर्जन लोगों ने घेर लिया। मैंने जानना चाहा कि महीने से चल रहा किसानों का आंदोलन क्यों खत्म हो गया, क्या सरकार व मिल प्रबंधन ने मांगे मान ली थीं? भीड़ में आवाज दबने की डर से खड़े होकर युवा किसान बैजु मद्देशिया ने बताया– ’रविवार 20 जनवरी को निचलौल तहसील पर भाजपा सांसद पंकज चौधरी, सिसवां विधायक प्रेमसागर पटेल, गन्ना कमिश्नर, डीएम, एसडीएम, एसएसपी सहित सभी अधिकारियों ने मीटिंग की थी। शाम से शुरू हुई मीटिंग रात 10 बजे तक भी नहीं खत्म हुई तो बढ़ती ठंड के बचने को हम घर लौट आए।’
मीटिंग के अगले दिन किसानों को पता चला कि 22 जनवरी को मिल में आग पड़ जाएगी और मिल चालू हो जाएगा, ऐसा हुआ नहीं। नवम्बर–दिसम्बर 2017 में गन्ने की फसल लगाने के लिए जेएचवी शुगर मिल लिमिटेड, गड़ौरा ने किसानों को बीज दिया, एक एकड़ खेती पर एक बोरा यूरिया, एक ट्राली फास्फेट दिया था। बीज का पैसा फसल के भुगतान के समय मिल प्रबंधन काट लेता, बाकी सब कुछ फ्री था। अक्टूबर 2018 से मिल में रिपेयरिंग का काम भी शुरू कर दिया गया था। सारी तैयारियां पूरी हो गई तो 2 दिसंबर 2018 को जिला गन्ना अधिकारी की मौजूदगी में मशीनों का पेराई से पहले पारम्परिक पूजन किया गया। 7 दिसंबर से मिल में नियमित पेराई शुरू होनी थी, नहीं होने पर प्रदर्शन की योजना बनाई और 17 दिसंबर को पहला प्रदर्शन किया। हजारों किसान व मिल मजदूरों ने मिल गेट पर इक्ट्ठा होकर सरकार व मिल प्रबंधन के खिलाफ नारे लगाए। मिल के जीएम रणबीर सिंह ने प्रशासन से वार्ता के आधार पर 28 दिसंबर से मिल चलाने और 60 प्रतिशत वर्तमान व 40 प्रतिशत पिछले भुगतान का आश्वासन दिया।
कोई सुगबुगाहट नहीं देख 29 दिसंबर को किसानों ने गड़ौरा चीनी मिल से निचलौल तहसील तक पैदल मार्च किया। करीब 5 हजार किसानों ने मार्च के दौरान स्थानीय विधायक, सांसद, मिल प्रबंधन, मुख्यमंत्री व प्रधानमंत्री के खिलाफ नारे लगाए। एडीएम ने एक सप्ताह का समय मांगा, भुतपूर्व सैनिक मनोज कुमार राना ने मांगें पूरी नहीं होने पर भूख हड़ताल की चेतावनी दी। समयावधि बीतने के बाद 8 जनवरी से राना दो समर्थकों सहित भूख हड़ताल पर बैठ गए। नौवें दिन 17 दिसंबर को एडीएम ने जूस पिलाकर भूख हड़ताल समाप्त करवायी और आश्वासन दिया कि 22 जनवरी को ट्रायल कर 26 जनवरी से पेराई शुरू करवा दी जाएगी, यह वादा भी खोखला साबित हुआ।
17 दिसंबर को किसानों के पहले संगठित प्रदर्शन के बाद अलग–अलग गांवों में दर्जन बार स्वतंत्र रूप से किसानों के समूहों ने प्रदर्शन कर गन्ना और मुख्यमंत्री के पुतले का भी दहन किया। लाखों लोगों के प्रभावित होने के बाद भी किसानों के पास किसी पार्टी, संगठन का नेतृत्व नहीं था। प्रदर्शन व मीटिंगों में समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी व भाजपा सभी के नेता आते और राजनीतिक बयानबाजी कर चले जाते। नतीजा, महीनों चले आंदोलन में किसानों के हाथ अब भी खाली हैं।
27 वर्षीय रामविजय यादव हैदराबाद में बढ़ईगीरी का काम करते हैं, यह सोचकर घर आए थे कि गन्ना मिल में पहुंचाने के बाद वापस लौट जाएंगे। कहते हैं– ‘’किशुनपुर और आसपास के सैकड़ों गांवों के युवा बाहर रहकर रोजगार करते हैं और खेती के समय घर आ जाते हैं, मेरी तरह उन सभी को दोहरा नुकसान हो रहा है। फसल खेत में खड़ी है और वहां मजदूरी का नुकसान हो रहा है।‘’
स्थानीय मीडिया के प्रति भी किसानों में नाराजगी दिखी। मीडिया में हजारों किसानों, मजदूरों के प्रदर्शनों को पर्याप्त जगह नहीं दी गई। जो खबरें अखबारों में जगह पा सकीं उनमें भी मिल प्रबंधन और सरकार का पक्ष प्रमुखता से छपता था।
मीडिया बकाये के भुगतान पर ज्यादा जोर देता था जबकि हम साफ कहते थे कि पहले मिल को चालू कराया जाए।
यूं तो किसी भी पार्टी ने किसानों के हित की लड़ाई नहीं लड़ी, लेकिन किसानों की सर्वाधिक नाराजगी भाजपा से है। कारण सिर्फ यह नहीं कि स्थानीय विधायक, सांसद सहित राज्य व केन्द्र में भी भाजपा की सरकार है। 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने लोक कल्याण संकल्प पत्र में वादा किया था, ‘गन्ना किसानों को फसल बेचने के 14 दिनों के भीतर पूरा भुगतान सुनिश्चित करने की व्यवस्था सरकार द्वारा लागू की जाएगी’ व ‘सरकार बनने के 120 दिनों के भीतर बैंकों और चीनी मिलों के समन्वय से गन्ना किसानों की बकाया राशि का पूर्ण भुगतान कराया जाएगा’। सरकार बने दो साल पूरे होने को हैं। सरकार के वादे अब भी कागजों से बाहर नहीं निकल सके हैं।
मिल मजदूर भी बरबादी के कगार पर
जेएचवी शुगर मिल लिमिटेड, गड़ौरा 1998-99 से नियमित प्रत्येक सत्र में पेराई करती है। मिल के लिए 200 किसानों की जमीनों का अधिग्रहण किया गया था, 40,000 प्रति एकड़ की दर से किसानों को भुगतान करने के अलावा उन्हें मिल में स्थायी नौकरी का आश्वासन दिया गया था। जिन किसानों से जमीन अधिग्रहित की गई थी उनमें से केवल एक चौथाई को नौकरी दी गई। मिल बंद होने से अब उन पर भी संकट के बादल छाने लगे हैं। मिल में 45 स्थायी और 565 अस्थायी मजदूर काम करते हैं। प्रदर्शन की शुरुआत मजदूरों ने की थी, बाद में किसान भी शामिल हो गए।
पूर्वांचल चीनी मिल मजदूर यूनियन, गोरखपुर, शाखा जेएचवी शुगर लिमिटेड के अध्यक्ष नवल किशोर मिश्रा बताते हैं:
मिल मजदूरों को भुगतान नहीं मिलने के कारण मजदूरों का 17.80 करोड़ रुपया प्रबंधन पर बकाया है।
वह बताते हैं मिल प्रबंधन ने हमेशा श्रम कानूनों का उल्लंघन किया है। मजदूरों को पीने के पानी, शौचालय, सुरक्षा उपकरण व आवश्यक भत्ते नहीं दिये जाते थे। ओवरटाइम का भी सिंगल रेट से भुगतान किया जाता था। इतना ही नहीं प्रबंधन की मनमानी के खिलाफ प्रदर्शन करने वाले 11 मजदूरों को बाहर कर दिया गया।’ किसानों का कोई संगठन नहीं होने के कारण आंदोलन का नेतृत्व पूर्वांचल चीनी मिल मजदूर यूनियन ने ही किया था।
किसानों की स्थिति पर वह कहते हैं कि जेएचवी शुगर लिमिटेड, गड़ौरा को प्रशासन ने 59.25 कुंतल गन्ना आवंटित किया था जिसे रद्द कर आसपास की 6 चीनी मिलों को आवंटित कर दिया गया है। जिन मिलों को आवंटित किया गया है, उन पर पहले से ही क्षमता से दो गुना अधिक भार है। दूसरे एरिया का गन्ना वह पेर नहीं पाएंगी, नतीजतन ‘किसानों के पास खेत में गन्ना फूंकने के अलावा कोई और चारा नहीं।’
मिल का अधिग्रहण करेगी सरकार
सरकार जेएचवी शुगर लिमिटेड, गड़ौरा को अधिग्रहित करने की तैयारी कर रही है। मिल को नीलाम करने की कागजी प्रक्रिया को अंतिम रूप दिया जा चुका है। जल्द ही तारीख की घोषणा कर नीलामी की कार्रवाई की जाएगी। मिल प्रबंधन का कहना है लगातार तीन साल इस तरह की सफल कोशिशें की जा चुकी हैं। किसान जब मिल चलाने की मांग को लेकर सड़क पर प्रदर्शन कर रहे थे उसी समय 21 दिसंबर 2018 को गन्ना विकास मंत्री सुरेश राणा, सांसद पंकज चौधरी, विधायक सिसवां, फरेंदा, पनियरा तथा गन्ना समितियों के सचिव व जिला गन्ना अधिकारियों के साथ मीटिंग ले रहे थे जिसमें तय किया गया कि एक महीने के अंदर गड़ौरा चीनी मिल में रिसीवर नियुक्त कर दिया जाएगा। जरूरत पड़ने पर जब्ती व अधिग्रहण करने पर भी सहमति बन गई थी। इसी बैठक में गड़ौरा मिल को आवंटित 59.25 कुंतल गन्ना को निरस्त कर उसे 6 मिलों को आवंटित कर दिया गया था। दूसरी तरफ अधिकारियों द्वारा किसानों को गुमराह कर मिल चलाने का आश्वासन दिया जा रहा था।
किसानों 45.92 करोड़ भुगतान नहीं करने और सरकार को गुमराह करने के आरोप में मिल मालिक व पूर्व सपा सांसद जवाहर जायसवाल के खिलाफ गन्ना सचिव प्रेमचंद की तहरीर पर पुलिस धारा 408, 409, 417, 418, 420, 427, 465, 468 व 120बी के तहत केस दर्ज कर लिया है। साथ में यूपी गन्ना पूर्ति खरीद एक्ट और 37 ईसीए जैसी गंभीर धाराएं भी लगाई गई हैं। सिसवां विधायक प्रेमसागर पटेल ने बताया, ‘’मिल पर किसानों का 46 करोड़ रुपया बकाया था, सरकार ने प्रबंधन से कहा था कि बकाया का भुगतान कराओ और मिल चलाओ। 7 मिलों को गन्ने का आवंटन कर दिया गया है, सेंटर लग गए हैं और गन्ना उठ रहा है। किसानों को कोई समस्या नहीं है। सात दिनों में किसानों को भुगतान किया जाएगा जिससे उनमें खुशहाली है। सरकार मिल के अधिग्रहण की कार्रवाई कर रही है, मिल को बेचकर किसानों के बकाए का भुगतान किया जाएगा।’
विधायक प्रेम सागर पटेल के दावे संदिग्ध हैं क्योंकि जिन 6 मिलों को गड़ौरा चीनी मिल का गन्ना आवंटित किया गया है, उन्हें क्षमता से दो गुना आवंटन हो चुका है। आईपीएल चीनी मिल सिसवां की पेराई क्षमता सत्र में अधिकतम 33.90 लाख कुंतल है, मिल को 70.22 लाख, आईपीएल चीनी मिल खड्डा की क्षमता 27.89 के सापेक्ष 63.35 लाख कुंतल, 66.69 लाख कुंतल की क्षमता वाले द कनोड़िया कप्तानगंज, कुशीनगर मिल को 106.69 लाख, बिरला शुगर मिल ढाढ़ा को 105.60 के सापेक्ष 216.18 लाख और 58.17 लाख कुंतल की क्षमता वाले त्रिवेणी इंजीनियरिंग रामकोला, कुशीनगर मिल को 205.65 लाख कुंतल गन्ना आवंटित किया गया है। उक्त चीनी मिलों को ही गड़ौरा चीनी मिल का 59.12 लाख कुंतल गन्ना आवंटित कर दिया गया है। इनमें से घोसी मिल ने गन्ना लेने से मना कर दिया है। अन्य मिलों ने शासन के दबाव में गन्ना लेना तो स्वीकार कर लिया लेकिन गड़ौरा चीनी मिल के क्षेत्र में कोई सेंटर नहीं लगाया है, जबकि गड़ौरा मिल का गन्ना पेरने के लिए 54,000 कुंतल गन्ना प्रतिदिन चीनी मिलों को उठाना पड़ेगा। हालांकि मिल के अंदर एक सेंटर लगा दिया गया है लेकिन प्रतिदिन वह केवल 400 कुंतल गन्ना ही उठा रहा है।
मिलों के लिए पहले से आवंटित गन्ना पेरना मुश्किल है तो गड़ौरा चीनी मिल के हिस्से की पेराई कैसे करेंगी? दूसरा, यदि सरकार गन्ना मिल का अधिग्रहण की करना चाहती थी, पेराई सत्र में करने की बजाए अब क्यों किया जा रहा है? केन यूनियन अध्यक्ष सिसवां बाजार राजेश्वर तिवारी कहते हैं– ‘मिल को बंद करने के चाहे जो कारण हों 46 करोड़ बकाए का तर्क हजम नहीं हो रहा, क्षेत्र की अधिकतम मिलों पर लगभग इतना ही बकाया है। फिर भी सरकार यदि मिल का अधिग्रहण करना चाहती तो करे, पर मिल चलाया जाए। मिल बंद हुआ तो किसान व मजदूर संकट में आ जाएंगे।’
गड़ौरा चीनी मिल के मुख्य प्रबंधक राकेश शर्मा सरकार की कार्रवाई पर असंतोष जाहिर करते हुए कहते हैं:
48,000 कास्तकार, 600 मजदूर और अप्रत्यक्ष रूप से 50,000 लोगों की आजीविका मिल से जुड़ी हुई है। पिछला व वर्तमान भुगतान में हम करेंगे। मिल चलाने को हम पूरी तरह से तैयार हैं सरकार से अनुमति मिलते ही आठवें दिन मिल चालू हो जाएगी। मिल अगर चालू नहीं हुआ तो लाखों लोगों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।
प्रदेश की मिलों पर किसानों का 9,453.65 करोड़ बकाया
फसल खराब होने पर तो किसान बर्बाद होते ही हैं, अच्छी फसल किसानों को लाभ ही पहुंचाएगी, यह दावा करना भी गलत होगा। गन्ने की फसल का मिलों पर बकाया साल दर साल चलता रहता है, भुगतान नहीं होता। गन्ना किसानों के मिलों पर करोड़ों बकाया और अच्छी फसल होने के बाद भी बदहाली के दलदल में धंसे रहना केवल महाराजगंज तक सीमित नहीं, पूरे प्रदेश के गन्ना किसानों का यही हाल है। उत्तर प्रदेश में 2017-18 में गन्ने की फसल 22.99 लाख हेक्टेयर थी जो 2018 में बढ़कर 27.94 लाख हेक्टेयर हो गई है। पिछले साल की तुलना में पौधा 19.57 प्रतिशत, पेडी 23.93 सहित गन्ने की फसल में 21.53 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हुई है। फसल की मात्रा बढ़ने से चीनी का उत्पादन तो बढ़ेगा पर इसका लाभ किसानों व चीनी उपभोक्ताओं को मिले, इसकी संभावना कम है।
उत्तर प्रदेश के गन्ना किसानों का मिलों पर बकाया 9,453.65 करोड़ रुपए तक पहुंच चुका है। इसमें वर्तमान पेराई सत्र 2018-19 का 6621.42 करोड़, 2017-18 का 2832.23 करोड़ शामिल है। किसानों को इस बकाये का भुगतान मिलेगा या साल दर साल यह आगे ही बढ़ता जाएगा? यह सवाल हमेशा की तरह बना हुआ है।