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आपकी बात / रघुवीर सहाय की कुछ कविताएँ

हिंदू पुलिस

बूढ़े सुकुल का जब अंत समय आया
गिरते गिरते उसके शव ने मुँह बाया
सठिआया अपाहिज कुछ समझ नहीं पाया
सुना था जहाँ पर है कन्याकुमारी
दूर उसी दक्षिण से जब पहली बारी
गया आया हिन्दू तो गोली क्यों मारी
आँखें फाड़े सुकुल यह रहस्य देखता
उत्तर दक्षिण के ३६ भये देवता
केन्द्रीय रिज़र्व पुलिस भारत की एकता

राष्‍ट्रीय प्रतिज्ञा

हमने बहुत किया है
हम ही कर सकते हैं
हमने बहुत किया है
पर अभी और करना है
हमने बहुत किया है
पर उतना नहीं हुआ है
हमने बहुत किया है
जितना होगा कम होगा
हमने बहुत किया है
जनता ने नहीं किया है
हमने बहुत किया है
हम फिर से बहुत करेंगे
हमने बहुत किया है
पर अब हम नहीं कहेंगे
कि हम अब क्या और करेंगे
और हमसे लोग अगर कहेंगे कुछ करने को
तो वह तो कभी नहीं करेंगे

अंधी पिस्‍तौल

सुरक्षा अधिकारी सेनाधिपति के
पूर कर देखते हैं मेरा चेहरा
बहुत दिनों से उन्होंने नहीं देखा है मेरा चेहरा
धीरे-धीरे कम होती गई है मेरी और सेनाधिपति की
बातचीत
इसलिए मैं सिपाहियों की निगाह में अजनबी हो गया हूँ
ये सिपाही भी कोई दूसरे हैं
पहले जो थे कुछ अदब करते थे
मेरा भी और उनका भी
अब जो हैं इतने उजड्ड हैं कि मैं
सेनाधिपति के लिए चिन्तित हूँ
वे वरदी नहीं पहने हैं सिर्फ़ कमीज़ पतलून
उसके नीचे वे सौ फ़ीसदी हिन्दुस्तानी हैं
उन्हें वरदी पहनाई गई होती तो अच्छा रहता
अब जब वे पिस्तौल निकालेंगे कितना अचरज होगा
और किस पर दागेंगे यह देखकर तो
और भी ज़्यादा

आने वाला ख़तरा

इस लज्जित और पराजित युग में
कहीं से ले आओ वह दिमाग़
जो ख़ुशामद आदतन नहीं करता
कहीं से ले आओ निर्धनता
जो अपने बदले में कुछ नहीं माँगती
और उसे एक बार आँख से आँख मिलाने दो
जल्दी कर डालो कि फलने फूलने वाले हैं लोग
औरतें पिएँगी आदमी खाएँगे– रमेश
एक दिन इसी तरह आएगा– रमेश
कि किसी की कोई राय न रह जाएगी– रमेश
क्रोध होगा पर विरोध न होगा
अर्ज़ियों के सिवाय– रमेश
ख़तरा होगा ख़तरे की घंटी होगी
और उसे बादशाह बजाएगा– रमेश

हा हा हा

हा हा हा
तुमने मार डाले लोग
हा हा हा
क्योंकि वे हँसे थे
तुमने मार डाले लोग
तुमने मार डाले लोग
हा हा हा
क्योंकि वे सुस्त पड़े थे
तुमने मार डाले लोग
तुमने मार डाले लोग
हा हा हा
क्योंकि उनमें जीने की आस नहीं रही थी
तुमने मार डाले लोग
तुमने मार डाले लोग
हा हा हा
तुमने मार डाले लोग
क्योंकि वे बहुत सारे लोग थे
इसी तरह के बहुत सारे लोग

प्रश्‍न

आमने-सामने बैठे थे
रामदास मनुष्य और मानवेन्द्र मंत्री
रामदास बोले आप लोगों को मार क्यों रहे हैं ?
मानवेन्द्र भौंचक सुनते रहे
थोड़ी देर बाद रामदास को लगा
कि मंत्री कुछ समझ नहीं पा रहे हैं
और उसने निडर होकर कहा
आप जनता की जान नहीं ले सकते
सहसा बहुत से सिपाही वहाँ आ गए।

नई हंसी

महासंघ का मोटा अध्यक्ष
धरा हुआ गद्दी पर खुजलाता है उपस्थ
सर नहीं,
हर सवाल का उत्तर देने से पेश्तर
बीस बड़े अखबारों के प्रतिनिधि पूछें पचीस बार
क्या हुआ समाजवाद
कहें महासंघपति पचीस बार हम करेंगे विचार
आंख मारकर पचीस बार वह, हंसे वह, पचीस बार
हंसें बीच अखबार
एक नयी ही तरह की हंसी यह है
पहले भारत में सामूहिक हास परिहास तो नहीं ही था।
जो आंख से आंख मिला हंस लेते थे
इसमें सब लोग दायें-बायें झांकते हैं
और यह मुंह फाड़कर हंसी जाती है।
राष्ट्र को महासंघ का यह संदेश है
जब मिलो तिवारी से – हंसो – क्योंकि तुम भी तिवारी हो
जब मिलो शर्मा से – हंसो – क्योंकि वह भी तिवारी है
जब मिलो मुसद्दी से
खिसियाओ
जांतपांत से परे
रिश्ता अटूट है
राष्ट्रीय झेंप का।

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