असम के दीमा हसाओ जिले में पुलिस फायरिंग के दौरान जनवरी के अंतिम सप्ताह में दो युवाओं की मौत के बाद यहां लोगों ने गणतंत्र दिवस को काला दिवस के रूप में मनाया। एक दिन पहले 25 जनवरी को यहां कई संगठनों ने नगा समझौते के आरएसएस द्वारा तैयार किए गए मसौदे के खिलाफ 12 घंटे के बंद का आह्वान किया था। माइबांग रेलवे स्टेशन पर जब प्रदर्शनकारियों ने रेल पटरियों को बाधित करने की कोशिश की तो पुलिस ने उनके ऊपर गोली चला दी। गोली दो युवाओं को लगी।
मिथुन दिब्रागेड़ा (27) और प्रबान्त हकमाओसा (17) को गोली लगने के बाद गोहाटी मेडिकल कॉलेज अस्पताल ले जाया गया। मिथुन की रास्ते में मौत हो गई जबकि प्रबान्त की मौत 26 जनवरी की सुबह हुई। इसके विरोध में दीमा हसाओ के लोगों ने 26 जनवरी को काला दिवस मनाने का एलान किया था। जिला प्रशासन ने स्थिति को नियंत्रण में लाने के लिए कर्फ्यू लगा दिया।
दि सिटिज़न में इस संबंध में छपी एक रिपोर्ट में गायक और एक्टिविस्ट डेनियल लांग्थासा के हवाले से कहा गया है, ”कर्णी सेना, शिव सेना, बजरंग दल, आरएसएस देश भर में बॉलीवुड की फिल्मों, पाकिस्तान की क्रिकेट टीम, वैलेंटाइन डे, बीफ और ऐसे ही वाहियात कारणों से सावजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाते हैं। जब असम के माइबांग कस्बे के नागरिक सरकार से जवाब मांगने के लिए और नगालिम के दायरे से असम को हटवाने के लिए एकाध घंटे कोई ट्रेन रोक देते हैं, जो मसला आरएसएस के एक सदस्य के गैर-जिम्मेदार बयानों के कारण सांप्रदायिक तनाव पैदा कर रहा है, तो पुलिस गोली चला देती है और निर्दोष औरतों, बच्चों व पुरुषों को ज़ख्मी कर देती और जान ले लेती है। यह गणतंत्र दिवस मेरा नहीं है।”
आरएसएस के नेता जगदम्बा मल द्वारा तैयार किए गए नगा समझौते के मसौदे में असम के दीमा हसाओ इलाके को भी जोड़े जाने का प्रस्ताव है, जिसका विरोध यहां के लोग और संगठन कर रहे हैं। दूसरी ओर 3 अगस्त 2015 को भारत सरकार के गृह मंत्रालय और एनएससीएन(आइएम) के बीच हुए नगा समझौते के बारे में कुछ भी साफ़ नहीं हो पा रहा है कि उसकी स्थिति क्या है।
दीमा हसाओ की सड़कों पर गणतंत्र दिवस से पहले 21 जनवरी को ही ”आरएसएस गो बैक” यानी ”आरएसएस वापस जाओ” के नारे लग रहे थे, लेकिन ये तस्वीरें मुख्यधारा के मीडिया से पूरी तरह नदारद रहीं।
सारे मसले के केंद्र में नगा समझौता है जिसकी घोषणा दो साल पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दिल्ली में की थी और कहा था कि भारत सरकार ने नगा गुटों के साथ शांति का एक फॉर्मूला निकाल लिया है। वह फॉर्मूला क्या था, इस पर दो साल से अटकलें लग रही हैं लेकिन दीमा हसाओ सड़कों पर उतरे नगाओं की आवाज़ और बैनर-पोस्टर में झलक रहा एक शख्स का नाम यह बताने के लिए काफी है कि नगा समझौते के साथ आरएसएस का रिश्ता क्या है और आखिर इस मामले में भारत सरकार ने कैसे नगाओं के साथ धोखा किया है।
करीब ढाई साल पहले 3 अगस्त 2015 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्विटर पर अचानक एलान किया था कि उसने नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नगालैंड (इसाक-मुइवा) के साथ एक समझौता कर लिया है और यह संधि ”न केवल समस्या का अंत होगी बल्कि एक नए भविष्य का आरंभ भी होगी”। इस नगा संधि पर 3 अगस्त 2015 को दिल्ली में भारत सरकार के गृह मंत्रालय और एनएससीएन(आइएम) ने दस्तख़त किए थे, लेकिन इसके इर्द-गिर्द जिस किस्म की गोपनीयता बरती गई थी उसे लेकर नगालैंड और उत्तर-पूर्व के कई संगठनों के बीच आशंकाएं व्याप्त थीं कि कहीं केंद्र इन राज्यों की सरहद के साथ छेड़छाड़ कर के एनएससीएन(आइएम) की बहुत पुरानी नगालिम यानी ग्रेटर नगालैंड वाली मांग के आगे घुटने न टेक दे। नगालिम के तहत उन नगा बहुल इलाकों को जोड़ने की मांग की जाती रही है जो असम, अरुणाचल और मणिपुर में आते हैं। वैसे, पहले इन इलाकों में म्यांमा के कुछ इलाकों की भी चर्चा होती रही है। अब चुनाव आयोग ने पिछले दिनों जैसे ही नगालैंड, त्रिपुरा और मेघालय में विधानसभा चुनावों का एलान किया है, वैसे ही इस बात की चर्चा ने जोर पकड़ी कि आखिर उस बहुप्रतीक्षित नगा समझौते का क्या होगा। कुछ संगठनों ने दिल्ली को लिखकर भेजा कि जब तक समझौता लागू नहीं हो जाता, तब तक चुनाव टालें जाएं और राष्ट्रपति शासन लगा दिया जाए। इस बीच एक चौंकाने वाले घटनाक्रम में आरएसएस की ओर से नगा समझौते का एक मसौदा दस्तावेज़ सामने रखा गया जिसे उत्तर-पूर्व में चार दशक से कथित रूप से सक्रिय संघ के कार्यकर्ता जगदम्बा मल्ल ने तैयार किया है। असम की सड़कों पर इन्हीं सज्जन के खिलाफ पिछले दो दिनों से नारे लग रहे हैं और ”आरएसएस वापस जाओ” की मांग की जा रही है।
जगदम्बा मल्ल पिछले दिनों उत्तर-पूर्व में बीजेपी की चुनावी घुसपैठ में अहम व निर्णायक भूमिका निभाने वाले व्यक्ति हैं। उन्होंने दि वायर को बताया है कि नगा संधि का प्रस्तुत मसौदा दस्तावेज़ उनका ”निजी प्रयास” है जो ”45 साल से ज्यादा समय तक नगा मसले पर उनके अध्ययन” की उपज है।
प्रस्तावित मसौदे में केंद्र के साथ वार्ताकारों की सूची में न केवल एनएससीएन(आइएम) बल्कि खपलां गुट, एनएससीएन(पुनर्गठित) और नगा नेशनल काउंसिल के दो धड़ों समेत 12 अन्य नगा समूहों को भी जोड़ता है। मल्ल के मुताबिक प्रस्तावित मसौदे पर इन सभी के दस्तखत होने हैं। एनएससीएन (आइएम) के अध्यक्ष इसाक चिशी स्वू और खपलांग गुट के मुखिया खपलांग की पिछले दिनों मौत हो चुकी है।
मल्ल ने प्रस्ताव दिया है कि नगालैंड के पांच सीमावर्ती जिलों के कुछ क्षेत्रों को मिलाकर एक सीमांत नगालैंड नाम के केंद्र शासित प्रदेश का गठन किया जाए। यह नगालिम की मांग के एकदम खिलाफ है और इसके चलते सीमावर्ती राज्यों को भी दिक्कत होगी, हालांकि मल्ल का कहना है कि उन्होंने ऐसा कर के ग्रेटर नगालैंड यानी नगालिम के पुराने सवाल को ही संबोधित किया है। इसी बात ने मणिपुर के नगालैंड से लगे जिलों सेनापति, तामेंगलांग, उखरुल, चंदेल, नोनी, कामजांग और तेंगनोपाल के लोगों को चिंता में डाल दिया है।