देश में पत्रकारों पर हो रहे हमलों के विषय पर पहली बार दो दिन का एक राष्ट्रीय सम्मेलन दिल्ली के कांस्टिट्यूशन क्लब में 22 और 23 सितंबर, 2018 को आयोजित किया गया जिसमें करीब दस राज्यों के पत्रकारों ने शिरकत की और अपनी आपबीती रखी। इस कार्यक्रम का स्वरूप एक सुनवाई (ट्रिब्यूनल) की तरह था जहां विभिन्न किस्म के हमलों के शिकार पत्रकार और मारे गए पत्रकारों के परिजनों की गवाहियां रखी गई थीं।
पत्रकारों पर हमले के खिलाफ़ दो दिन के इस राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन किया था पत्रकारों पर हमले के खिलाफ समिति (सीएएजे) ने, जिसे प्रेस क्लब ऑफ इंडिया से सक्रिय सहयोग मिला था और सम्मेलन पत्रकार सुरक्षा से जुड़ी अंतरराष्ट्रीय संस्था कमिटी टु प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट्स (सीपीजे) द्वारा समर्थित था। सीएएजे कुल 34 घटकों का एक समूह है जिसमें स्वतंत्र मीडिया और नागरिक समाज के संगठनों की भागीदारी है। सम्मेलन की मूल अवधारणा ही यह थी कि लोकतंत्र में सिकुड़ती हुई असहमति और अभिव्यक्ति की स्पेस को संबोधित करने के लिए पत्रकारों और नागरिक समाज के पैरोकारों को साथ आना होगा। चूंकि अभिव्यक्ति और असहमति पर बंदिशों का सीधा प्रभाव पत्रकारों और सामाजिक कार्यकर्ताओं पर समान रूप से पड़ रहा है, लिहाजा यह वक्त की मांग है कि समाज के सभी प्रभावित तबके एक साथ आकर एक मंच पर एक-दूसरे के हितों की पैरवी करें।
कश्मीर में पत्रकार शुजात बुखारी की हत्या के वक्त इस राष्ट्रीय सम्मेलन की अवधारणा तैयार हुई थी जब पत्रकारों पर हमले के खिलाफ एक समिति के गठन के लिए कई सामाजिक संगठनों और स्वतंत्र मीडिया संस्थानों को वेबसाइट मीडियाविजिल डॉट कॉम की ओर से आमंत्रण भेजा गया था।सम्मेलन की तैयारी के लिए दो महीने तक चली प्रक्रिया में दोतरफा काम हुआ- पहला, समिति का औपचारिक गठन और दूसरा, पिछले आठ वर्ष के दौरान भारत में पत्रकारों पर हमले के मामलों का संकलन। संकलन तैयार होने पर पीडि़त पत्रकारों और मारे गए पत्रकारों के परिजनों से संपर्क साधने की कोशिश की गई, जिसके बाद धीरे-धीरे एक खाका तैयार हुआ।
चूंकि आयोजन पत्रकारों के ऊपर हमले पर ही केंद्रित था और पत्रकारों से संपर्क की प्रक्रिया में हमलों की विविधता का भी अहसास हुआ, लिहाजा सम्मेलन का खाका तैयार करते वक्त इस बात का विशेष खयाल रखा गया कि किसी किस्म का हमला नज़र से छूटने न पाए। इसके लिए कमेटी ने सलाह मशविरे के बाद हमलों की चार श्रेणियों को अंतिम रूप दिया: 1) हत्या और शारीरिक हमला, 2) ट्रोल और धमकियां, 3) सरकारी कानूनों का दुरुपयोग, फर्जी मुकदमे और मानहानि, 4) सर्वेलांस (निगरानी) और सेंसरशिप (बंदिशें)। इन्हीं श्रेणियों के हिसाब से चार सत्र तय किए गए। दो अतिरिक्त सत्र थे उद्घाटन और समापन सत्र।
सम्मेलन का उद्घाटन 22 सितंबर को अभिनेता प्रकाश राज और वरिष्ठ संपादक ललित सुरजन के बीज वक्तव्यों से हुआ, जिसकी अध्यक्षता वरिष्ठ पत्रकार आनंद स्वरूप वर्मा ने की। अभिनेता प्रकाश राज को बुलाने की खास वजह यह रही कि पत्रकार गौरी लंकेश की हत्या के बाद उन्होंने इस घटना की तमाम मंचों पर खुलकर आलोचना की थी और अभिव्यक्ति की आज़ादी के हक में अपनी आवाज उठायी थी। लंकेश पत्रिका की संपादक गौरी लंकेश उनकी खास मित्र थीं। ललित सुरजन संपादक परंपरा में बचे हुए इक्का-दुक्का संपादकों में से एक हैं जो लगातार छत्तीसगढ़ में अभिव्यक्ति की आज़ादी पर बंदिशों के खिलाफ खुलकर लिखते रहे हैं। वे देशबंधु अख़बार के स्वामी और संपादक हैं। दोनों वक्ताओं ने बहुत विस्तार से आज के हालात पर अपनी बात रखी, जिसके बाद सत्र की अध्यक्षता कर रहे आनंद स्वरूप वर्मा ने सम्मेलन को संबोधित किया।
इस उद्घाटन सत्र में ही सीपीजे के इंडिया करेस्पॉन्डेंट कुणाल मजूमदार ने सीपीजे की ओर से सम्मेलन के समर्थन में जारी एक वक्तव्य पढ़ा। उद्घाटन सत्र में सम्मेलन में चार सौ से ज्यादा पत्रकारों व गैर-पत्रकारों ने पंजीकरण करवा लिया था। सभागार पूरा भरा हुआ था और डिजिटल व सोशल मीडिया में सम्मेलन के उद्घाटन सत्र की कवरेज बहुत व्यापक व कामयाब रही।
उद्घाटन के बाद हमलों पर पहला औपचारिक सत्र भावनात्मक रहा। इसमें पत्रकारों की हत्या के कुछ मामले आए थे जिसमें मारे गए पत्रकारों के परिजनों ने मज़बूती से अपनी बात रखी। उत्तराखण्ड के पत्रकार देवेंदर पटवाल की मां गंगा देवी, बिहार के पत्रकार राजदेव रंजन की पत्नी आशा रंजन, उत्तर प्रदेश के पत्रकार नवीन गुप्ता के भाई नितिन गुप्ता और उनकी मां की गवाहियां हृदयविदारक थीं। इन तीनों पत्रकारों की काम के दौरान हत्या हुई थी। किसी भी मामले में पीडि़त परिवार को अब तक इंसाफ नहीं मिला है। मध्यप्रदेश के भिंड में मारे गए पत्रकार संदीप शर्मा का केस मीडियाविजिल डॉट कॉम के कार्यकारी संपादक अभिषेक श्रीवास्तव ने विस्तार से रखा, जो इंदौर में मृतक के परिवार से मिलकर लौटे थे। शर्मा का केस रखने भोपाल से उनके पत्रकार मित्र विकास पुरोहित को आना था जो आखिरी वक्त में नहीं आ सके। उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद से आए इंडियन फेडरेशन ऑफ वर्किंग जर्नलिस्ट्स के वरिष्ठ पत्रकार डॉ. संतोष गुप्ता ने उत्तर प्रदेश में हत्या के पांच मामले गिनवाए और सभी का विवरण प्रस्तुत किया। इस सत्र की अध्यक्षता सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता संजय पारिख ने की।
पहला सत्र दोपहर के भोजन के बाद जारी रहा, जिसमें कश्मीर से आए गल्फ़ न्यूज़ के पत्रकार जलील राठौर और मेघालय से आई शिलांग टाइम्स की संपादक पैट्रीशिया मुखिम ने अपने-अपने इलाकों में पत्रकारिता के खतरों पर बात की। पैट्रीशिया के घर पर इस साल पेट्रोल बम से हमला हुआ था। उन्होंने मेघालय में गैर-कानूनी खनन पर स्टोरी की थी जिसके चलते वे खनन माफिया के निशाने पर आ गई थीं। हाल ही में कश्मीर से लौटकर आए सीपीजे की टीम की एक रिपोर्ट इस सत्र में कुणाल मजूदार ने प्रस्तुत की।
दूसरा सत्र ट्रोल और धमकियों पर था, जिसे रवीश कुमार, नेहा दीक्षित और निखिल वागले ने संबोधित किया और अपने-अपने मामले विस्तार से बताए। सत्र की अध्यक्षता निखिल वागले ने की।
दूसरे दिन की कार्रवाई बारिश के चलते नियत समय से आधा घंटा देरी से शुरू हुई। पहला सत्र जो फर्जी मुकदमों और मानहानि पर केंद्रित था, उसमें दर्जन भर से ज्यादा पत्रकारों ने अपने केस रखे। सबसे बड़ी भागीदारी छत्तीसगढ़ से थी जहां से पत्रकार कमल शुक्ला, आवेश तिवारी, प्रभात सिंह और संतोष यादव आए थे। पंजाब से रचना खैरा, यूपी से सलीम बेग और शिव दास, बिहार से पुष्यमित्र, झारखण्ड से विनोद कुमार, केरल से शाहीना के के ने अपने-अपने केस विस्तार से बताए। दिलचस्प बात रही कि इस सत्र में भागीदारी कर रहे तकरीबन सभी पत्रकारों पर एक न एक मुकदम कायम था और अधिकतर ज़मानत पर थे। विनोद कुमार के ऊपर तो फेसबुक पोस्ट लिखने के चलते राजद्रोह का मुकदमा लगा हुआ है। इन सभी पत्रकारों ने छोटे शहरों कस्बों में पत्रकारिता करने के खतरे गिनाए और दिल्ली की पत्रकारिता के साथ कस्बाई पत्रकारिता के फ़र्क को बखूबी रेखांकित किया। इसी सत्र में इंडियन फेडरेशन ऑफ वर्किंग जर्नलिस्ट्स के राष्ट्रीय सचिव सिद्धार्थ कलहंस ने पत्रकारों की सुरक्षा को लेकर अपनी यूनियन की ओर से किए जाने वाले प्रयासों की जानकारी दी। इस सत्र में वेबसाइट दि वायर के संपादक सिद्धार्थ वरदराजन को भी बतौर वक्ता मौजूद होना था लेकिन किसी कारणवश वे नहीं आ सके। उनका शुभकामना संदेश मंच से पढ़ा गया। सत्र की अध्यक्षता मेनस्ट्रीम के संपादक सुमित चक्रवर्ती ने की।
दूसरे दिन के दूसरे सत्र का विषय सर्वेलांस और सेंसरशिप था। इसमें भागीदारी करने वाले वक्ता थे पत्रकार पुण्य प्रसून वाजपेयी, जिन्हें कुछ ही दिन पहले एबीपी न्यूज़ से इस्तीफा देना पड़ा है। उनके अलावा राजस्थान पत्रिका के सलाहकार संपादक ओम थानवी, नेशनल हेरल्ड के विश्वदीपक, दि हिंदू में वरिष्ठ खोजी पत्रकार रहे जोसी जोसेफ, कनाडा के रेडियो के लिए पंजाब से काम करने वाले सुही सवेर के संपादक शिव इंदर सिंह, गोरखपुर न्यूज़लाइन के संपादक मनोज कुमार सिंह और इलाहाबाद से आईं दस्तक पत्रिका की संपादक सीमा आज़ाद ने अपनी बात रखी, जो यूएपीए कानून के तहत जेल की सजा काट चुकी हैं। सत्र की अध्यक्षता कारवां पत्रिका के राजनीतिक संपादक हरतोश सिंह बल ने की।
सम्मेलन का समापन सत्र चार कार्यकारी सत्रों के संक्षेपण के लिए तय था। उद्घाटन सहित कुल पांच सत्रों में क्रमश: मॉडरेटर की भूमिका निभाने वाले पामेला फिलिपोस, अटल तिवारी, नित्यानंद गायेन, अनुषा पॉल और ऋचा पांडे ने अपने-अपने सत्र की कार्रवाइयों का सार रखा। उसके बाद वरिष्ठ पत्रकार आनंद स्वरूप वर्मा ने सम्मेलन में लिए जाने वाले संकल्प का मजमून पढ़ा। संकल्प में कहा गया कि यह सदन सम्मेलन के आयोजकों को आयोजन समिति सीएएजे के विस्तार और भावी कार्यक्रमों की जिम्मेदारी सौंपता है। सदन ने एक स्वर में संकल्प को पारित किया। इस सत्र की अध्यक्षता अनिल चौधरी ने की।
सम्मेलन के सारे वीडियो यहां उपलब्ध हैं:
https://www.youtube.com/channel/UCsJ1SnFJbPqaaEvoLxNTgrw/videos
सम्मेलन की आयोजन समिति की वेबसाइट:
www.caajindia.org