उसका नाम ममता था, उसने एक दलित युवक से प्रेम किया और फिर शादी भी कर ली। नतीजा जातिघृणा में डूबी हुई गोलियों ने उसका सीना छलनी कर दिया। घर वालों ने लाश से भी रिश्ता नहींं रखा। दो दिन तक शव मुर्दाघर में पड़ा रहा, फिर सामने आईं वे महिलाएँ जिन्होंने जाति और धर्म की बेड़ियों को तोड़ने का संकल्प लिया है। उन्होंने ममता की अर्थी को कंधा दिया और अंतिम संस्कार के वक़्त नारा लगाया- शहीद ममता अमर रहे!
जाट घर में पैदा हुई ममता ने अगस्त 2017 में एक दलित युवक से विवाह कर लिया था। घर वाले इससे बहुत नराज़ हुए और उन्होंने लड़के और घर वालों के ख़िलाफ़ अपहरण का मुकदमा दर्ज करा दिया। घरवालों ने ममता के नाबालिग होने का दावा भी किया। पुलिस ने लड़के और उसके पिता को गिरफ्तार कर लिया लेकिन जब ममता अदालत में मर्जी से शादी करने की बात पर डटी रही तो उसे करनाल के शेल्टर होम भेज दिया गया। 8 अगस्त को वह दारोगा नरेंद्र कुमार की सुरक्षा में अदालत से वापस आ रही थी जब हमलावरों ने गोली चलाई जिसमें ममता के साथ-साथ दारोगा की भी मौत हो गई।
हत्या का आरोप उसी पिता पर है जिसने ममता को गोद लिया था। लेकिन न इस परिवार ने और न ममता के जैविक परिवार ने ममता का शव स्वीकार किया। दो दिन मुर्दाघर में पड़े रहने के बाद शव एडीएम ने ‘रिसीव’ किया।
ममता की सम्मानजनक विदाई का बीड़ी हरियाणा के महिला संगठनों ने उठाया। जनवादी महिला समिति की तमाम कार्यकर्ताओं ने ममता के अंतिम संस्कार में शामिल होकर उसे सामाजिक क्रांति के मोर्चे पर हुई शहीद बताया। समिति की राष्ट्रीय सचिव जगमति सांगवान ने कहा कि बेटियों की हत्या को ‘ऑनर किलिंग’ कहना बंद किया जाए, यह सीधे तौर पर हत्या है जिसकी सज़ा मिलनी चाहिए।
वहीँ महिला आयोग की अध्यक्ष प्रतिभा सुमन ने कहा कि इस तरह की हत्या में सीधे फाँसी का प्रावधान होना चाहिए।
अंतिम संस्कार के वक्त ‘शहीद ममता अमर रहे’ के नारे भी लगे। लाल रंग के कपड़े में लिपटे ममता के शव पर संगठनों की ओर से पुष्प चक्र भी चढ़ाया गया।
प्रशासन ने अंतिम संस्कार की रस्में पूरी कराने के लिए ममता के चचेरे भाई को बुलाया था जबकि ससुराल पक्ष के कुछ लोग भी मौजूद थे। रजिस्टर में भी ममता के पति का नहीं, पिता का नाम लिखा गया। आरोप है कि जेल में बंद ममता के पति ने अंतिम संस्कार करने की इजाज़त माँगी थी लेकिन प्रशासन तैयार नहीं हुआ।