राजस्थान की राजधानी जयपुर के मालपाणी अस्पताल से ड्रग ट्रायल का एक सनसनीखेज मामला सामने आया है जहां कुछ गरीब युवकों को काम का झांसा देकर उन पर विदेशी दवाओं का अवैध तरीके से परीक्षण किया गया है।
दैनिक भास्कर के मुताबिक चुरू जिले के डिगारिया गांव से लाए गए 21 लोगों में से 12 लोग अपने गांव लौट चुके हैं। चुरू से लाए गए ग्रामीणों ने बताया कि पलास गांव के शेरसिंह ने उनसे संपर्क किया था और कहा था कि अस्पताल में एक कैंप लगाया जाना है। उसके काम के लिए चलना है। एक दिन के 500 रुपये, खाने-पीने और रहने का बंदोबस्त भी होगा।
गांववालों ने आगे बताया, ‘केवल कैंप का काम और अन्य सुविधाओं को देखते हुए गांव से हम 21 लोग आ गए। हमें एक वार्ड में रोका गया। 19 अप्रैल को सुबह करीब 10 बजे चाय-नाश्ता दिया गया और करीब 11:30 बजे एक-एक टैबलेट यह कहते हुए दी गई कि इस दवा से थकान दूर होगी और खाना आराम से पच जाएगा।’
पत्रिका की रिपोर्ट के अनुसार, मालपाणी अस्पताल में बहुराष्ट्रीय दवा कंपनियों द्वारा विकसित दवा का रोगियों पर ड्रग ट्रायल करने के लिए अस्पताल प्रबंधन ने 28 ग्रामीणों को 500 से 1000 रुपये तक की दिहाड़ी तक का झांसा देकर भर्ती किया और अनजान टैबलेट दी।
दैनिक भास्कर की रिपोर्ट के अनुसार, जिन लोगों ने दवा ली, उन्हें चक्कर, उल्टी, नींद, बेहोशी और पेशाब नहीं आने की शिकायत हो गई। डॉक्टरों को कहा गया तो उन्होंने कहा कि थोड़ी देर में सब ठीक हो जाएगा। बाद में अन्य लोगों पर भी दवा लेने के लिए दबाव बनाया गया, लेकिन वे किसी बहाने से अस्पताल से निकल गए।
इसके बाद ग्रामीणों ने ही अस्पताल की इस करतूत का खुलासा किया। ग्रामीणों ने इसकी सूचना सुजानगढ़ में हेल्पलाइन चलाने वाले विमल तोषलीवाल को दी। इसके बाद ग्रामीण एकजुट होकर मीडिया के सामने आए और आप बीती सुनाई।
हालांकि पत्रिका से बातचीत में अस्पताल के निदेशक एनके मालपाणी आरोपों को निराधार बताते हुए कहते हैं, ‘हमने रोगियों से सहमति ली है. हम तो मानव सेवा का काम कर रहे हैं। किसी दवा का ट्रायल ही नहीं होगा तो वह बाजार में आएगी कैसे?’
वे आगे कहते हैं, ‘हमारा अधिकृत ट्रायल सेंटर है। कहीं कोई फर्जीवाड़ा नहीं है। ट्रायल में अक्सर कंपनी पैसे देती ही है। पैसा हम नहीं रखते हैं, इसलिए ग्रामीणों को दिए।’
अस्पताल के संचालक अंशुल मालपाणी ने दैनिक भास्कर को बताया कि डॉ. राहुल सैनी अस्पताल में क्लीनिकल ट्रायल के इंचार्ज हैं। वे ही ड्रग ट्रायल कर रहे थे। तो वहीं डॉ. सैनी का कहना है, ‘हमारे यहां क्लीनिकल ट्रायल की जाती है, इसीलिए लोग यहां आए। वे किसके जरिए लाए गए, इसकी हमें जानकारी नहीं है।’
वे आगे बताते हैं, ‘ग्लेक्सो कंपनी की दवा का ऑस्टियो आर्थराइटिस का ट्रायल होना था, लेकिन वह शुरू नहीं हुआ था। हमने कोई दवा नहीं दी। ये लोग झूठ बोल रहे हैं। हम दवा देने से पहले स्क्रीनिंग करते हैं और पता करते हैं कि मरीज को दवा दी जा सकती है या नहीं। इसके बाद ट्रायल करते हैं। तबीयत बिगड़ने की स्थिति नहीं आती।’
वहीं भरतपुर शहर से लाए गए चार लोगों में से फतेह और भागीरथ ने बताया कि भरतपुर का ही महावीर उन्हें काम दिलाने के लिए लेकर आया था। उसने एक दिन का 1000 रुपये दिलाने का आश्वासन दिया था।
भास्कर से बातचीत में महावीर ने कहा, ‘मैं उनको आईपीएल मैच दिखाने के लिए लाया था। उसका एक दोस्त विष्णु अस्पताल में ही काम करता है, इस कारण सबको अस्पताल में रोका गया।
हालांकि महावीर को मैच कब होगा इसकी भी जानकारी नहीं थी। पूछे जाने पर कि मैच कब होगा, उसने जबाव दिया, ‘जब भी होगा, तब देख आएंगे। इसलिए तब तक यहां आ गए।’
गौरतलब है कि ड्रग ट्रायल एक व्यक्ति पर दवा के प्रभावों को जानने का एक तरीका होता है। इसके लिए अस्पताल को सबसे पहले क्लीनिकल एथिकल कमेटी की अनुमति की जरूरत होती है। कमेटी में डॉक्टर, वकील और समाजसेवी शामिल होते हैं।
वहीं, जिस व्यक्ति पर जिस दवा का ट्रायल होना है, वह व्यक्ति उस दवा से संबंधित बीमारी का मरीज होना आवश्यक है। ट्रायल से पहले डॉक्टर और दवा कंपनी के अधिकारी को उस दवा के बारे में मरीज को सारी जानकारी देनी होती है। मरीज की अनुमति के बाद ही ट्रायल किया जा सकता है।