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‘चार साल में सरकार ने ONGC को कर्ज़दार बना दिया’, कर्मचारी यूनियन ने PMO को चिट्ठी लिख धर्मेंद्र प्रधान पर लगाए गंभीर आरोप

सार्वजनिक क्षेत्र की सभी बड़ी कम्पनियों को एक एक कर ठिकाने लगाया जा रहा है, अब मोदी सरकार ONGC पर निगाहें गड़ा कर बैठी हुई है।

ONGC देश की सबसे बड़ी तेल और गैस उत्पादक कम्पनी है।

इसका नाम कुछ दिनों पहले चर्चा में तब आया, जब ओएनजीसी के गैस क्षेत्र से रिलायंस इंडस्ट्रीज द्वारा कथित तौर पर गैस किए जाने के मामले में सरकार द्वारा रिलायंस से 1.50 अरब डॉलर की मांग को कोर्ट ने खारिज कर दिया।

सरकार ने उस मामले में भी कोई इंटरेस्ट नहीं दिखाया लेकिन जिस तरह से अब सरकारी कंपनी से मोदी सरकार जिस तरह का सौतेला व्यवहार कर रही है वह देश की अर्थव्यवस्था के लिए ख़तरनाक है।

आज देश की गैस और तेल की जरूरत को पूरा करने में सर्वाधिक योगदान देने वाली कंपनी को अब ओवर ड्राट के माध्यम से अपने कर्मचारियों का वेतन देना पड़ रहा है।

दरअसल 2017 में मोदी सरकार ने कुछ ऐसे निर्णय लिए जिससे कि देश की सरकार को हजारों करोड़ का लाभ कमा कर देने वाला उपक्रम खुद कर्ज के जाल में फंसकर रह गया।

ओएनजीसी सरकार की सबसे अधिक कमाई करने वाली कंपनी है, इसके पास काफी अतिरिक्त पैसा भी था इसलिए 2017 में उसे सरकार की एक और कम्पनी HPCL को खरीदने के लिए बाध्य किया गया>

इस सौदे में उसने अपनी सारी जमा पूंजी लगा दी, उसके बावजूद कंपनी को तकरीबन 20,000 करोड़ रुपये कर्ज लेकर जुटाने पड़े।

जबकि कुछ समय पहले उसे, घाटे में चल रही गुजरात स्टेट पेट्रोलियम काॅरपोरेशन को भी 7,700 करोड़ रुपये में खरीदने का दबाव डाला गया था।

इन दोनों सौदों से ONGC की वित्तीय स्थिति लगातार खराब होती गयी।

अभी जो प्रधानमंत्री मोदी ने पेट्रोलियम कम्पनियों पर तेल की कीमत 1 रुपये कम करने का दबाव डाला उससे ONGC के शेयर की बहुत बुरी पिटाई हुई है।

सरकारी क्षेत्र की 41 कंपनियों के शेयर 52 हफ्ते के उच्चस्तर से आधे हो गए हैं।

ऐसे कड़े वक्त मे ONGC के कर्मचारियों के संघ की चिठ्ठी सामने आई है जो उन्होंने PMO को लिखी है।

ओएनजीसी कर्मचारी मजदूर सभा ने लिखा है, “केंद्र सरकार के दखल के कारण ओएनजीसी भयंकर आर्थिक संकट से जूझ रही है कंपनी की मर्जी के बिना, बीजेपी प्रवक्ता संबित पात्रा को उनकी पात्रता के बिना ही कंपनी का डायरेक्टर बना दिया गया है।

केंद्र सरकार की जिन योजनाओं में सरकार को पैसा लगाना चाहिए, उसमें दबाव बनाकर ओएनजीसी का पैसा लगवाया जा रहा है।

केंद्र सरकार के मंत्री लगातार दबाव बनाकर कंपनी से उल जलूल मदों में पैसा लेकर खर्च करा रहे हैं।

एलपीजी कनेक्शन वितरण हो, शौचालय बनाना हो, गांवों को गोद लेना हो या लड़कियों के लिए सैनिट्री नैपकिन वितरण हो, हर काम के लिए सरकारी योजनाओं के फंड के बजाए ओएनजीसी के सीएसआर का पैसा लगाने का लगातार दबाव बनाया जा रहा है।

मजदूर सभा के अध्यक्ष ताडवी ने लिखा है, “कर्मचारियों के लिए जरूरी सुरक्षा उपकरण ओएनजीसी पहले एक विदेशी कंपनी से खरीदता रहा है, लेकिन अब तेल मंत्री धर्मेंद्र प्रधान उसे किसी एक खास भारतीय कंपनी से खरीदने का दबाव बना रहे हैं।”

उनका दावा है कि, “जबकि इस भारतीय कंपनी के उपकरण हमारी जरूरत पूरी नहीं करते।”

ये घोटाला नहीं तो क्या है?

(गिरीश मालवीय)

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