पेट्रोल डीजल की क़ीमतें अपने उच्चतम स्तर को छू रही हैं। केंद्र सरकार उस पर कर लगा कर अपना खजाना बढ़ा रही है। तर्क यह दिया जाता है कि शिक्षा स्वास्थ्य ओर अन्य कल्याणकारी योजनाओं पर खर्च इसी रकम से पूरा किया जा रहा है, यानी देश के मध्यम वर्ग पर टैक्स का बोझ बढ़ा कर इन योजनाओं का खर्च पूरा किया जा रहा है लेकिन सारा बोझ मध्यवर्ग पर क्यो डाला जा रहा है, उच्च वर्ग और कारपोरेट की भागीदारी इसमें क्यो नही है, यह इसलिए तो नही है कि बड़े उद्योगपति राजनीतिक दलों को भारी चंदा देते हैं?
इस तथ्य को जानकर बहुत से लोगों को आश्चर्य होगा लेकिन सच यही है कि सरकार नोटबन्दी जैसे निर्णय कर हर व्यक्ति को आयकर के दायरे में खींच लेना चाहती है लेकिन बड़ी कम्पनियो को तरह तरह के टैक्स में छूट देती है। जानी-मानी अर्थशास्त्री जयंती घोष ने दिल्ली में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस कर बड़े उद्योगपतियों को दी जाने वाली कर माफ़ी पर सवाल उठाते हुये कहा था कि कर संग्रह और कर का दायरा बढ़ाने के लिए सरकार को नोटबंदी जैसे अर्थव्यवस्था को तबाह करने वाले कदम उठाने की जरूरत नहीं थी। उन्होंने कहा था कि देश में कर की उच्चतम दर 30 प्रतिशत है जबकि अडानी अंबानी जैसे उद्योगपति 20 प्रतिशत कर दे रहे हैं।
अंबानी जैसे बड़े उद्योगपतियों की कर माफी पर सवाल उठाते हुये उन्होंने कहा कि पिछले साल उद्योगों को दी गयी कर छूट, सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 6.7 प्रतिशत पर रही जबकि वित्तीय घाटा इससे काफी कम रहा था। यानी सिर्फ इसी रकम से पूरे वित्तीय घाटे की भरपाई हो सकती थी। आपको शायद जयती घोष की इन बातों पर यकीन नही होगा लेकिन यह सच है, इसकी पुष्टि अन्य स्रोतों से भी आप कर सकते है।
इंडियास्पेंड ने ये आंकड़े प्रकाशित किये हैं–
साल 2015-16 में मोदी सरकार ने कॉरपोरेट सेक्टर को लगभग 76 हजार 857 करोड़ 7 लाख रुपए की टैक्स छूट प्रदान की थी। वित्त मंत्री अरुण जेटली ने फरवरी 2015 में पेश बजट में कॉरपोरेट कर दर को चार साल में 30% से घटाकर 25% करने की घोषणा की थी जबकि राजस्व सचिव हसमुख अधिया ने एक बार कहा था कि कंपनी कर में 1% कटौती करने से राजस्व में 18,000 से 19,000 करोड़ रुपये की कमी आती है।
इंडियास्पेंड की रिपोर्ट नेशनल टैक्स डेटा के अनुसार, वित्त वर्ष 2015-16 में मोदी सरकार ने 15 हजार 80 मुनाफा कमाने वाली कंपनियों से किसी प्रकार का भी टैक्स नहीं लिया है। सरकार ने ऐसा कर चुकाने वालों को प्रोत्साहित करने के नाम पर किया. कुछ कंपनियों ने मुनाफा तो कमाया पर सरकार की ‘टैक्स इंसेंटिव पॉलिसी’ का फायदा उठा कर किसी प्रकार का टैक्स नहीं चुकाया। इतना ही नहीं सरकार ने निजी कंपनियों को 2 लाख 25 हजार 229 करोड़ रुपये का टैक्स छूट भी दिया। देश में 10 लाख ऐसी कंपनियां हैं जिन्होंने आज तक इनकम टैक्स रिटर्न नहीं भरा है।
केंद्र में मोदी सरकार को आए तीन साल से भी ज्यादा समय बीत गए हैं पर इनकम टैक्स डिपार्टमेंट ने इन विसंगतियों को अभी तक दूर नहीं किया है। साल 2014-15 में 52 हजार 911 कंपनियां मुनाफ़े में थी, लेकिन किसी ने भी टैक्स का भुगतान नहीं किया। इसके साथ साल 2015-16 में बड़ी कंपनियों ने छोटी कंपनियों से भी कम टैक्स चुकाया। अब यह बड़ी कम्पनियाँ किस उद्योगपति की होंगी, आसानी से अंदाजा लगाया जा सकता हैं।
सरकार के आंकड़े के मुताबिक 46 फीसदी भारतीय कंपनियों ने 2015-16 में कोई मुनाफा नहीं कमाया। साल 2015-16 में कम से कम 43 फीसदी भारतीय कंपनियां घाटे में रही हैं। 47.7 फीसदी कंपनियों ने 1 करोड़ रुपए तक का मुनाफा कमाया है। टैक्स डेटा के अनुसार, करीब 6 फीसदी भारतीय कंपनियों ने 1 करोड़ रुपए से अधिक मुनाफा दर्ज कराया है। पटना कॉलेज के पूर्व प्राचार्य और देश के जाने-माने अर्थशास्त्री प्रोफेसर नवल किशोर चौधरी कहते हैं, ‘देखिए इससे साफ हो रहा है कि सरकार पावरफुल लोगों को रहत दे रही है। जो पावरफुल लोग नहीं हैं, उन पर टैक्स का अतिरिक्त बोझ दे रही है।’
यानी बड़े कॉरपोरेट को मोदी सरकार कर माफी के नाम पर बेजा फायदा पहुंचा रही है, औश्र उस कर माफी का पूरा भुगतान पेट्रोल डीजल पर बढ़ते हुए कर द्वारा आम जनता से वसूला जा रहा है। इतना सब जान लेने के बाद भी आपके दिमाग की बंद खिड़की नहीं खुल रही है तो क्या कहा जा सकता है!