नयी बात यह नहीं थी कि विजय माल्या के लिये जारी सी.बी.आई. के लुकआउट नोटिस में ऐसा बदलाव किया गया, जिसके बिना उसका देश से निकल पाना असंभव हो जाता। नयी बात यह भी नहीं कि बैंकों ने करीब 9,500 करोड रुपये के अपने बकायेदार को विदेश जाने से रोकने के लिये तुरंत अदालत में याचिका दायर करने की सलाह की अनदेखी की, जिसके बिना लुकआउट नोटिस में बदलाव के लिये पेश किया जा रहा ‘कोई अदालती आदेश नहीं होने’ का लंगडा तर्क भी ध्वस्त हो जाता। लंगडा तर्क इसलिये कि ऐसा कोई आदेश किसी अदालत ने तो ग्रीनपीस इंडिया की पर्यावरण एक्टिविस्ट प्रिया पिल्लई के खिलाफ भी नहीं जारी किया था, फिर माल्या के लिये ही ऐसे आदेश की दरकार क्यों थी?
और भरोसा कीजिये, नयी बात यह भी नहीं है कि स्टेट बैंक आॅफ इंडिया सहित 17 बैंकों को चूना लगाकर फरार होने से पहले अरूण जेटली ने माल्या से न सही, माल्या ने जरूर अरूण जेटली से मुलाकात की थी। ये सब पुरानी बाते हैं और कम-से-कम तीन साल से तो आम जानकारी में हैं ही। बल्कि कई बार तो संसद के दोनों सदनों में भी ये बातें उठती रही हैं। आगे बढने से पहले कुछ उदाहरण देख लें —
राज्यसभा/ 10 मार्च 2016: विजय माल्या को फरार हुये केवल एक सप्ताह बीता था। दो मार्च 2016 को माल्या के लंदन निकल लेने की जानकारी आम होने के बाद राज्यसभा में विपक्ष ने पूछा था कि बैंको को चूना लगानवाले माल्या को देश छोडने की इजाजत कैसे दी गयी?
सुबह 11 बजे सदन की कार्यवाही शुरू होते ही पहले नरेश अग्रवाल ने और फिर विपक्ष के नेता गुलाम नबी आजाद ने यह मामला उठाया था। नरेश अग्रवाल ने भगोड़े माल्या के राज्यसभा सदस्य बने रहने की वैधता का सवाल उठाया था, जबकि आजाद ने कहा कि ललित मोदी को वापस लाने में तो सरकार असफल रही ही, अब अटार्नी जनरल ने सुप्रीम कोर्ट को बताया है कि स्टेट बैंक सहित कई बैंकों के 9500 करोड रुपये के कर्जदार बिजनेसमैन विजय माल्या देश से भाग गये हैं। यह हालत तब है, जब देश के तमाम एयरपोर्ट्स पर उनको ढूंढने के लिये लुकआउट नोटिस दिया गया था। यह तब है, जब ‘29 जुलाई 2015 को सी.बी.आई. ने उनके खिलाफ फिनांशियल इररेगुलेरिटी, डाइवर्जन आॅफ फंड्स का क्रिमिनल केस बनाया था, चार डिफरेंट एजेन्सीज ने उनकी इंटेरोगेशन भी की, एनफोर्समेंट डायरेक्टोरेट ने की, सेबी ने की, सीरियस फ्राॅड इन्वेस्टिगेटिंग ऑफिस ने की और चौथी एजेंसी तो सी.बी.आई थी ही। उन्होंने साफ आरोप लगाया, ‘‘उनकेभागने में, उनके देश छोडने में यह सरकार पार्टी है … विदाउट द ऐक्टिव पार्टीसिपेशन ऐंड विदाउट द ऐक्टिव सपोर्ट ऑफ दिस गवर्नमेंट, ही कुड नॉट हैव लेफ्ट दिस कंट्री।‘’
आजाद, नियम 267 के तहत यह मामला उठाना चाहते थे, लेकिन उनका नोटिस नामंजूर होने के बाद उपाध्यक्ष ने पहले उन्हें विपक्ष के नेता की हैसियत से और फिर वित्त मंत्री अरूण जेटली को सदन के नेता के तौर पर बोलने की इजाजत दे दी। जेटली बोले भी और उन्हें याद भी सब था कि कैसे ‘माल्या को 2004 में बैंकिंग सुविधा दी गई, कैसे एकाउंट बिगड़ा होने पर भी 2008 में यह सुविधा रिन्यू की गई, कैसे 30 अप्रैल 2009 को पहली बार उनका एकाउंट एन.पी.ए. हुआ, कैसे उनके खिलाफ देश भर में 22 केसेज फाइल किये गये और कैसे उनका पासपोर्ट सीज करने और उन्हें बाहर जाने से रोकने के लिये सुप्रीम कोर्ट में बैंक्स की अपील दायर किये जाने से पहले ही वह जा चुके थे। बस उन्हे यह याद नहीं आया कि कैसे माल्या के खिलाफ जारी लुकआउट नोटिस में बदलाव किया गया, कैसे एक दिन पहले ही माल्या पीछा कर गैलरी में उनसे मिले थे और बकाये का मामला सेटल करने की इच्छा जताने के साथ यह भी कहा था कि वह लंदन जा रहे हैं। क्या यह ‘सेलेक्टिव एमनेशिया’ था?
राज्यसभा/11 मार्च 2016: गुलाम नबी ने शून्यकाल में फिर यह मामला उठाया। उन्होंने कहा कि 16 अक्टूबर 2015 को सी.बी.आई. ने इमीग्रेशन को भेजे लुकआउट नोटिस में कहा कि अगर माल्या देश छोडने की कोशिश करें तो उन्हें हिरासत में ले लिया जाये, लेकिन ठीक एक महीने बाद नोटिस बदल दिया गया और अबकी निर्देश हिरासत में लेने का नहीं,बल्कि उनके विदेश जाने की स्थिति में सरकार को इसकी सूचना भर देने का था। विपक्ष के नेता ने माल्या के खिलाफ कोई अदालती आदेश नहीं होने की सरकारी दलील पर पूछा कि ग्रीनपीस की ऐक्टिविस्ट प्रिया पिल्लई के खिलाफ भी कोई अदालती आदेश नहीं था, लेकिन 14 जनवरी 2015 को जब वह लंदन रवाना हो रही थीं तो वैध वीजा होने के बावजूद उन्हें इंदिरा गांधी एयरपोर्ट पर रोक लिया गया। उन्होंने पूछा कि सरकार के आदेश से पिल्लई को हिरासत में लिया जा सकता था, तो माल्या के लिये सरकारी आदेश क्यों अपर्याप्त था?
जवाब वित्त मंत्री ने नहीं, संसदीय कार्य राज्यमंत्री मुख्तार अब्बास नकवी ने दिया और जवाब यह कि ‘विजय माल्या के बारे में बहुत स्पष्ट तौर पर सरकार ने कहा है, देश का खाना-पानी देश को वापस लौटाया जायेगा…. हम उनको इस तरह की छूट देनेवाले नहीं हैं, जिस तरह की छूट कांग्रेस सरकार ने क्वात्रोची को दी थी’। क्वात्रोची को अरूण जेटली ने भी याद किया था, लेकिन माल्या-जेटली मुलाकात के बारे में नकवी कुछ नहीं बोले। हो सकता है, उन्हें पता ही न हो।
राज्यसभा/ 14 मार्च 2016: नकवी और सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी मंत्री रविशंकर प्रसाद ने गुलाम नबी आजाद के एक भाषण पर कड़ा एतराज करते हुये 14 मार्च 2016 को जब शून्यकाल में संघ-आई.एस.आई.एस. तुलना पर उनसे माफी मांगने को कहा, तब भी वित्त मंत्री ने हस्तक्षेप किया था, लेकिन तब तो प्रसंग ही दूसरा था। हां, शून्यकाल में कांग्रेस के प्रमोद तिवारी ने माल्या की फरारी का मुद्दा भी उठाया। उन्होंने लुकआउट नोटिस बदलकर माल्या देश छोडकर भागने की सहूलियत देने का तो आरोप दुहराया ही,शोरगुल के बीच यह भी आरोप लगाया कि देश से भागने से पहले माल्या वित्तमंत्री से मिला था। प्रमोद तिवारी ने प्रधानमंत्री से इस मुलाकात के बारे में अपनी सरकार का रूख स्पष्ट करने की मांग भी की थी । लेकिन तब वित्त मंत्री नहीं बोले। संभव है, उन्हें याद ही नहीं आया हो कि फरारी से एक दिन पहले माल्या सेंट्रल हॉल में न सही, गैलरी में ही ‘जबरन’ उन्हें मिला था और बैंकों के बकाये का मसला निबटाने की इच्छा जताने के साथ यह भी बताया था कि वह लंदन जा रहा है।
प्रसंगवश, कांग्रेस ने तभी एक बयान जारी कर सवाल उठाया था कि ‘क्या विजय माल्या ने 2 मार्च 2016 को अचानक देश छोडने से पहले वित्त मंत्री अरूण जेटली से मुलाकात और बातचीत की थी? क्या अरूण जेटली ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को इसकी जानकारी और बातचीत का ब्यौरा दिया है? क्या संसद और देश के लोगों को इस मुलाकात और बातचीत के बारे में अवगत कराया जायेगा?’
राज्यसभा/ 16 नवम्बर 2016ः बहस तो नोटबंदी पर थी, नियम 267 के तहत। मार्क्सवादी सीताराम येचुरी ने विजय माल्या ेका नामोल्लेख किये बिना उन पर बकाया राशि में से 7,000 करोड रुपये को एन.पी.ए. खाते में डाल दिये जाने के खबर का जिक्र किया तो मानव संसाधन मंत्री प्रकाश जावडकर ही नहीं, अरूण जेटली भी उन्हें प्रयत्नपूर्वक समझाते रहे कि एन.पी.ए. घोषित करने का मतलब ऋण-माफी नहीं होता, परफॉर्मिंग और नॉन- परफॉर्मिंग एसेट बस ‘बुक में इंट्री’ बदल देने का मामला है। कांग्रेस के आनंद शर्मा भी पहले ही इसका जिक्र कर चुके थे और इसके दुहराव पर जेटली बोले, ‘‘हमे तथ्यों को दुरूस्त कर लेना चाहिये। जब यह कर्ज दिया गया था, तब हमार सरकार नहीं थी। उस सरकार ने केवल इसी लोन को दो बार रीस्ट्रक्चर भी किया था। तो हमे यह भयावह विरासत मिली थी।‘’ लेकिन याद की, स्मृति की भी तो सीमा है, फरारी से पहले माल्या की वह जबरिया मुलाकात उन्हें नहीं ही याद आयी।
लोकसभा/ 17 मार्च 2017: प्रश्नकाल में एक अनुपूरक सवाल सिंहभूमि से भाजपा के ही सदस्य लक्ष्मण गिलुआ का था और सवाल यह कि ‘क्या आप जानबूझ कर ऋण नहीं चुकानेवाले उद्योगपति और अन्य के उपर एफ.आई.आर. दर्ज नहीं करना चाहते हैं? उद्योगपतियों की एक लिस्ट है, जो कई लाख करोड़ रुपये लेकर बैंकों को चुकाते नहीं हैं और देश से बाहर चले जाते हैं। जवाब श्रम एवं रोजगार मंत्री संतोषकुमार गंगवार ने दिया था और बताया था कि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में ऐसे 9,130 ऋण हैं, जिनमें 91,155 करोड रुपये फंसे हैं। लेकिन उनसे तो माल्या की फरारी और फरारी से पहले वित्त मंत्री से उनकी मुलाकात के खुलासे की उम्मीद भी नहीं थी, हुई भी नहीं।
राज्यसभा/ 4 जनवरी 2018: वित्त मंत्री अरूण जेटली ने ‘भारतीय अर्थव्यवस्था की हालत’ पर एक ‘शार्ट ड्यूरेशन डिस्कशन’ का उत्तर दिया। उत्तर लम्बा था, आधार से लेकर नोटबंदी, जी.एस.टी., बैंकरप्सी ऐंड इनसॅल्वेंसी कोड तक सब कुछ, बस एन.पी.ए. का जिक्र नहीं था, कर्जदारों की धारावाहिक फरारियों का जिक्र नहीं था।
लोकसभा/ 19 जुलाई 2018: बहस भगोड़े आर्थिक अपराधियों की सम्पत्ति की जब्ती के बारे में अध्यादेश खारिज करने के आर.एस.पी. सदस्य एन.के. प्रेमचन्द्रन के प्रस्ताव और इसके स्थान पर सरकार के विधेयक पर थी। अरूण जेटली किडनी ट्रांसप्लांट के बाद घर में स्वास्थ्य लाभ कर रहे थे और उनके मंत्रालय की कमान रेल तथा कोयला मंत्री पीयूष गोयल के हाथ में थी। 2017 के बजट भाषण में घोषित विधेयक साल भर बाद माल्या की फरारी के मामले पर लीपापोती के लिये आनन-फानन में लाने के विपक्ष के आरोपों के बीच भाजपा सांसद निशिकांत दुबे ने चर्चा में माल्या का जिक्र भी किया, उनके फरार होने का नहीं, केवल यू.पी.ए. सरकार के समय उन्हें लोन दिये जाने का। बहरहाल, चर्चा का उत्तर देते हुये गोयल ने इसपर जुबान नहीं खोली,इसके बावजूद कि कांग्रेस के शशि थरूर ने निचले सदन में ही एक प्रश्न पर विदेश मंत्रालय की इस स्वीकारोक्ति का हवाला दे चुके थे कि मार्च 2018 तक सरकारी बैंकों को 40,000 करोड रुपये का चूना लगाकर माल्या, नीरव मोदी, मेहुल भाई सहित 31 आर्थिक अपराधी देष से फरार हो चुके हैं।
संसद के दोनों सदनों में मंत्रियों के,और खुद अरूण जेटली के ऐसे बयानों-वक्तव्यों की सूची और भी लंबी हो सकती है, कम से कम 2017-18 और 2018-19 में बजट की बहसों पर उनके उत्तरों की खंगाल तो हो ही सकती है। लब्बोलुवाब यह कि नयी बात केवल चुनिंदा स्मृति-भंग का, सेलेक्टिव एमनेशिया का ध्वंस है। प्रत्यर्पण मामले की सुनवाई के बाद लंदन में वेस्टमिंस्टर मजिस्ट्रेट कोर्ट से बाहर निकलते हुये पिछले सप्ताह विजय माल्या ने जो दावा किया था, उसका फौरी हासिल यही है। वित्त मंत्री और उनकी सरकार ने जिस तथ्य को बडे जतन से छिपा रखा था, उसे बेपर्द कर माल्या मित्र-धर्म पर लौट गये हैं और उन्होंने जेटली की इस बात से सहमति जता दी है कि वह कोई औपचारिक मुलाकात नहीं थी। यद्यपि वह यह दोहराना नहीं भूले कि संसद में वह यों ही जेटली से मिले थे और उन्हें लंदन रवाना होने की योजना बता दी थी, बकाये कर्ज के निबटारे की अपनी मंशा तो वह कई बार उन्हें बता चुके थे। संभव है, देर-सबेर ऐसा ही कोई दखल हो और वित्त मंत्री को याद आ जाये कि माल्या की लंदन यात्रा की मंशा से उन्होंने तुरंत प्रवर्तन निदेशालय और ‘सीरियस फ्रॉड इन्वेस्टिगेशन डिपार्टमेंट’ को बताना जरूरी क्यों नहीं समझा और अगर बताया तो एजेंसियां हरकत में क्यों नहीं आयीं? आखिर ये दोंनों एजेंसियां उन्हीं के अधीन हैं और माल्या के फरार होने से पहले उससे कई दौर की पूछताछ भी कर चुकी थीं।