पेसा कानून और जन सहभागिता : कार्यकर्त्ता प्रशिक्षण मैनुअल
जनसंगठनों तथा आदिवासी जनता के तमाम संघर्षों की बदौलत पंचायत उपबंध विस्तार अधिनियम (पेसा) 1996 में बन तो गया लेकिन आज 23 साल बाद भी यह कानून धरातल पर लागू नहीं हो पाया है। इसके लागू न हो पाने की प्रमुख वजहों में से एक प्राकृतिक संसाधनों पर कॉर्पोरेट लूट को सुगम बनाने के लिए सरकारों द्वारा इस कानून को लागू करने में दिखाई गई अनिच्छा है तो वहीं दूसरी वजह आम आदिवासी समाज तक इस कानून की पहुंच का अभाव भी रहा है।
भारत के आदिवासी बहुल राज्यों में कानून बनने और उसके क्रियान्वयन के बीच के इस अंतर को विभिन्न सामाजिक संस्थाओं तथा सामुदायिक संगठनों द्वारा पाटने की कोशिश की जा रही है। इसी प्रक्रिया में एक पहल राजस्थान के डुंगरपुर जिले के दो प्रखण्डों-दोवड़ा और बिछिवाड़ा में, 62 पंचायतों के 195 गांवों में की गई। तीन सामाजिक संस्थाओं आस्था, पीस और श्रुति तथा एक जनसंगठन वागड़ मजदूर किसान संगठन के संयुक्त प्रयासों के तहत इस क्षेत्र में रह रहे आदिवासी समाज को पेसा कानून और उसके तहत अधिकारों से न केवल परिचित करवाया गया बल्कि पेसा कानून के तहत मिले, गांव विकास नियोजन के प्रस्ताव तैयार करने के अधिकार के लिए उनकी क्षमता का सवर्धन भी किया गया। इसके लिए 195 गांवों से आये सहभागियों के साथ कार्यशालायें की गईं। दो फेज में चली इस कार्यशाला में इस बात का खास ध्यान रखा गया है कि समुदाय की अपने प्राकृतिक संसाधनों तथा उनके इस्तेमाल पर एक साझा समझ का विकास किया जा सके, जिससे कि समुदाय का अपने प्राकृतिक संसाधनों पर दखल बना रहे।
हम यहां डुंगरपुर में चली इन कार्यशालाओं में इस्तेमाल किए गए प्रशिक्षण मैनुअल को इस उम्मीद के साथ साझा कर रहे हैं कि इसका अन्य स्थानों पर भी पेसा कानून को लेकर चल रहे संघर्षों तथा समुदाय के शिक्षण-प्रशिक्षण में इस्तेमाल किया जा सके। मैनुअल में इस्तेमाल किए अभ्यासों के पीछे के उद्देश्यों से लेकर पठन सामग्री तक, हर भाग को शामिल करने का प्रयास किया गया है। तथापि यह मैनुअल एक निश्चित क्षेत्र को ध्यान में रखकर बनाया गया है अतः इसके इस्तेमाल के दौरान अपने क्षेत्र की परिस्थितियों एवं विशेषताओं को ध्यान में रखते हुए इसका अनुकूलन किया जाना उचित रहेगा।
मैनुअल के बारे में…….
यह मैनुअल ‘पढ़ो और करो’ की तर्ज पर तैयार किया गया है। मैनुअल में कुल मिलाकर चौदह अभ्यास शामिल हैं। प्रत्येक अभ्यास के साथ एक ‘फेसिलिटेटर के लिए नोट’ भी दिया गया है। किसी भी अभ्यास को चलाने से पूर्व यह आवश्यक है कि ‘फेसिलिटेटर के लिए नोट’ पर नजर डाल लें। इस नोट में अभ्यास से संबंधित प्रक्रिया और विषय-वस्तु के बारे में लिखा गया है। जिन अभ्यासों में वैचारिक फोकस ज्यादा है, उनमें ‘फेसिलिटेटर के लिए नोट’ के अतिरिक्त ‘पठन सामग्री’ भी दी गई है।
इस कार्यशाला मैनुअल का इस्तेमाल करते समय अगर आप “डूंगरपुर, राजस्थान में गाँव विकास नियोजन कार्यशालाओं की रिपोर्ट” पर एक नजर डाल लेते है तो आपके लिए कार्यशाला का संचालन करना ओर भी आसान हो जायेगा ।
इस मैनुअल की सामग्री के किसी भी हिस्से की आवश्यकतानुसार प्रतियाँ बनायी व वितरित की जा सकती है।