जन आन्दोलनों के राष्ट्रीय समन्वय की बिहार राज्य इकाई ने मोदी सरकार द्वारा बहुप्रचारित प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना का कच्चा-चिट्ठा खोलते हुए सरकार को आड़े हाथों लिया है. 2016 में किसानों को लाभ पहुँचाने के नाम बनाई गई इस योजना से किसानों को तो कोई फायदा नहीं हुआ पर बीमा कम्पनियां मालामाल ज़रूर हो गयी हैं. बिहार राज्य में इस योजना के जरिये किसानों को पिछले एक साल में एक कौड़ी भी नहीं मिली.
राज्यसभा में एक सवाल के दिए गये जवाब का हवाला देते हुए एनएपीएम के उज्ज्वल कुमार ने बताया कि रबी 2016-17 और खरीफ 2017 में बीमा की राशि का भुगतान आज तक नहीं हुआ है. बीते साल प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के आंकड़े चौंकाने वाले हैं. रबी 2016-17 के दौरान बिहार में 1,228,838 किसानों ने फसल बीमा कराया था, जिससे कुल 293 करोड़ का प्रीमियम बीमा कम्पनियों के खाते में जमा हुआ. पहले तो क्लेम की राशि कुल प्रीमियम का केवल 20% तय की गयी. उसमें भी किसानों को आज तक एक रुपया नही दिया गया है. इसी तरह खरीफ 2017 में भी 1,160,193 किसानों ने फसल बीमा कराया था जिस पर 671 करोड़ का प्रीमियम सरकार और किसानों से लिया गया. फसल नुकसान के आकलन के बाद 41 करोड़ का अनुमानित क्लेम किया गया पर आज तक किसानों को एक रूपये का भी भुगतान नहीं हुआ है.
इससे साफ़ जाहिर है यह योजना बीमा कम्पनियों की जेब भरने के लिए बनायी गयी है, जिसका किसानों को कोई फायदा होता नही दिख रहा है. प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना का कामकाज सरकार के किसान विरोधी चरित्र को उजागर करता है. जहाँ तक बिहार का सवाल है तो डबल इंजन की सरकार किसानों को डबल धोखा देने का काम कर रही है. फलस्वरूप सूबे के किसान नीति और नियति दोनों से मार खाने को मजबूर हैं.
इस योजना में इतने व्यापक पैमाने पर हो रही गड़बड़ी से साबित होता है कि अबतक सरकार फसल बीमा के नाम पर किसानों को गुमराह ही करती रही है. फसल बीमा योजना किसानों के साथ धोखा, झूठ और अन्याय का नमूना बन गया है. सरकार के दावे के उलट जहाँ एक तरफ इस योजना से लाभ पाने वाले किसानों की संख्या में भी काफी कमी आयी है. वहीं दूसरी तरफ किसानों और सरकारी पैसे से बीमा कम्पनियों की जेब भरी जा रही है. सवाल है कि क्या किसानों से लूट-खसोट और छल-कपट कर सरकार उनकी आय दुगुनी करेगी?
इस साल फिर बिहार में गंभीर सूखे की आशंका है. बारिश न होने के कारण अब तक केवल 19% भाग में ही धान की बुआई हुई है. खेती-किसानी में मुनाफा न होने से किसानों के पास पूंजी नही रह गयी है. बिहार में अधिकांश परिवार आज भी आजीविका के लिए खेती पर निर्भर हैं. ऐसे में अगर सरकार किसानों को उसका वाजिब बकाया नहीं देती है तो यह किसानों की हकमारी ही होगी.