पाँच ट्रिलियन अर्थव्यवस्था के कानफाड़ू शोर के बीच असली सच्चाई यह है कि देश की अर्थव्यवस्था मन्दी की गहरी खाई में गिरती जा रही है। पूँजीपतियों के मुनाफ़े की गिरती दर को बनाये रखने के लिए जनता को तबाही-बर्बादी के नरककुण्ड में धकेलकर उसके ख़ून-पसीने की कमाई से अरबों रुपये के ‘बेल-आउट पैकेज’ पहले ही पूँजीपतियों को दिये जा चुके हैं, लेकिन फिर भी अर्थव्यवस्था को दिवालिया होने से बचाने के सारे नुस्खे नीमहकीमी साबित हो रहे हैं। मन्दी की सबसे बुरी मार ग़रीब मेहनतकश आबादी पर पड़ रही है। महँगाई, बेरोज़गारी, छँटनी, तालाबन्दी सुरसा की तरह मुँह खोले आम आबादी को निगलने पर अमादा है।
ग़ैर-वित्तीय बैंकिंग संस्थाओं के बर्बाद होने के साथ शुरू हुआ संकट रियल एस्टेट सेक्टर, ऑटोमोबाइल सेक्टर, लघु और मध्यम उद्योगों, आईटी सेक्टर से होते हुए कंज़्यूमर इलेक्ट्रॉनिक, कंज़्यू्मर गुड्स कम्पनियों तक को अपनी ज़द में ले चुका है।
मन्दी की सबसे भयंकर मार ऑटोमोबाइल सेक्टर पर पड़ी है जो भारत में कुल मैन्युफ़ैक्चरिंग सेक्टर के लगभग आधे के बराबर है। भारत का ऑटोमोबाइल उद्योग विश्व का सातवाँ सबसे बड़ा ऑटोमोबाइल उद्योग है। भारत एशिया का चौथा सबसे बड़ा निर्यातक देश भी है। लेकिन मौजूदा स्थिति यह है कि 2019 की पहली तिमाही में कार बिक्री में 18.4 फ़ीसदी की कमी दर्ज की गयी है। वहीं चालू वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में सभी श्रेणियों में वाहनों की बिक्री 12.35 प्रतिशत और घटकर 60,85,406 इकाई रह गयी। भारत की सबसे बड़ी पैसेंजर कार निर्माता कम्पनी मारुति सुज़ुकी इण्डिया की बिक्री जून के महीने में 17 फ़ीसदी गिरकर पिछले साल की तुलना में 1,34,036 यूनिट से घटकर 1,11,014 इकाई पर आ गयी। टाटा की सबसे छोटी और सस्ती कार नैनो के लिए अब तक साल 2019 श्राप साबित हुआ है, क्योंकि अब तक कम्पनी सिर्फ़ एक कार बेच पाने में सफल हो पायी है। वहीं दूसरी तरफ़ अगर मिनी सेगमेण्ट में आने वाली कारों जैसे आल्टो, वैगन आर आदि की बात करें तो पिछले साल के मुक़ाबले इस साल बिक्री में 36 फ़ीसदी की गिरावट आयी है। ऐसे ही कॉम्पैक्ट सेडान सेगमेण्ट की कार स्विफ़्ट, बलेनो, डिज़ायर आदि की बिक्री में पिछले साल की तुलना में इस साल 12 प्रतिशत की कमी आयी है। स्कूटरों की बिक्री में 26 फ़ीसदी की तो मोटरसाइकिल की बिक्री में 12 फ़ीसदी की कमी आयी है। इसके परिणामस्वरूप गाड़ियों की बिक्री पिछले 18 साल में सबसे निचले स्तर पर पहुँच गयी है। अगस्त के पहले पखवारे तक गिरावट की यह प्रवृत्ति और भी गम्भीर रूप में दिखायी दे रही है।
एक तरफ़ जहाँ हज़ारों करोड़ की लागत की लाखों गाड़ियाँ गोदामों और कारख़ानों में सड़ रही हैं, वहीं क़रीब 52 हज़ार करोड़ की 35 लाख गाड़ियाँ देश-भर के शोरूम में पड़े-पड़े सड़ रही हैं। औसतन दो शोरूम हर हफ़्ते बन्द हो रहे हैं।
पहले से ही सुस्त अर्थव्यवस्था के कारण भारत में कम्पनियाँ अपनी क्षमता के 70-80 प्रतिशत पर उत्पादन कर रही थीं, ऊपर से घरेलू बाज़ार में आयी माँग में कमी ने आग में घी डालने का काम किया है। ज़्यादातर ऑटोमोबाइल कम्पनियाँ अपने उत्पादन को कम कर रही हैं। मारुति सुज़ुकी ने फ़रवरी में ही उत्पादन में 8.3 फ़ीसदी की कटौती की थी। इसी तर्ज़ पर आल्टो, ब्रेज़ा, स्विफ़्ट डिजायर के उत्पादन में अब तक इस साल 8.4 फ़ीसदी की कटौती हो चुकी है। जिसकी वजह से उत्पादन औसतन क्षमता के 50 प्रतिशत पर आ गया है। मौजूदा हालात यह है कि माँग न होने की वजह से कई कम्पनियों ने अपनी फ़ैक्टरियों में उत्पादन बिल्कुल बन्द कर दिया है और अधिकतर कम्पनियाँ ब्लाॅक क्लोज़र, पार्शियल क्लोज़र से लेकर क्लोज़र तक पहुँचने की स्थिति में पहुँच चुकी है।
लम्बे समय से छाये ऑटो सेक्टर की मन्दी की वजह से ऑटो पार्ट्स उद्योग के 50 लाख श्रमिको में से लगभग 10 लाख मज़दूरों पर छँटनी की तलवार लटक रही है। छँटनी की गाज़ सबसे ज़्यादा अस्थायी मज़दूरों पर पड़ रही है, लेकिन स्थायी मज़दूरों को भी तरह-तरह से प्रताड़ित करके, ऊल-जलूल मुद्दों का हवाला देकर बाहर का रास्ता दिखाया जा रहा है। कैजुअल मज़दूरों का क्लीयरेंस समय से 2-3 महीने पहले ही कराया जा रहा है। और ‘रीज्वाइनिंग’ की प्रक्रिया के दौरान अधिकांश मज़दूरों को काम से बेदख़ल होना पड़ रहा है। कोई संगठित प्रतिरोध न खड़ा हो, इसलिए छँटनी किश्तों में की जा रही है और मज़दूरों के एक हिस्से को दूसरे हिस्से के ख़िलाफ़ इस्तेमाल किया जा रहा है। देश-भर में 15 हज़ार डीलरों द्वारा चलाये जा रहे 26 हज़ार शोरूमों में क़रीब 25 लाख लोगों को प्रत्यक्ष और लभग इतने ही लोगों को अप्रत्यक्ष रूप से रोज़गार मिला है। लेकिन पिछले 18 महीनों में 271 शहरों से 286 शोरूम बिक्री न होने की वजह से बन्द हो गये हैं। लगातार बन्द हो रहे शोरूमों की वजह से पिछले तीन महीनों में खुदरा मार्किट में काम कर रहे लगभग 2 लाख लोगों की छँटनी हो चुकी है और फ़ेडरेशन ऑफ़ ऑटोमोबाइल डीलर्स एसोसिएशन (फ़ाडा) के मुताबिक़ निकट भविष्य में सुधार की कोई गुंजाइश नहीं है। मतलब साफ़ है कि शोरूमों पर ताला लगने का सिलसिला बदस्तूर जारी रहेगा और मज़दूरों और उनके परिवारों को उनके भाग्य-भरोसे सड़कों पर धकेलने का सिलसिला भी आनेवाले दिनों में और बढ़ेगा। मोदी सरकार के कार्यकाल में तक़रीबन हर सेक्टर मन्दी के दौर से गुज़र रहा है। देश में मोबाइल हैण्डसेट सेक्टर की हालत ख़राब होती जा रही है। पिछले दो सालों में इस सेक्टर में काम करने वाले ढाई लाख से ज़्यादा लोगों को नौकरी से हाथ धोना पड़ा है। लूट पर टिकी इस व्यवस्था में बड़ी पूँजी लगातार छोटी पूँजी को निगलती जाती है। यही कारण है कि अमेज़न और फ्लिपकार्ट जैसी बड़ी कम्पनियों के रिटेल मार्किट में आने की वजह से इनशॉप मार्किट लगभग तबाही के कगार पर पहुँच चुकी है।
तमाम झाड़-फूँक के बावजूद साल की तीसरी तिमाही की शुरुआत में यह स्पष्ट हो गया कि संकट कम होने की जगह बढ़ने वाला है। क्योंकि जुलाई में निसान, बजाज, मारुती, हुण्डई, महिन्द्रा, टोयोटा, होण्डा, हीरो मोटोकोर्प, रॉयल एनफ़ील्ड सरीखी कम्पनियों की बिक्री में पिछले साल के मुक़ाबले 30-40 फ़ीसदी की कमी आयी है जो अब ख़तरे के निशान से ऊपर जा रही है। अगर यही स्थिति आगे भी जारी रही तो आने वाले दिनों में शटडाउन तक की नौबत भी आ सकती है। दरअसल कलपुर्जा उद्योग भी पूरी तरह वाहनों के उत्पादन पर निर्भर होता है, इसलिए जिस अति-उत्पादन के संकट से आज ऑटोमोबाइल सेक्टर गुज़र रहा है उसका सीधा असर कलपुर्जा उद्योगों में देखने को मिल रहा है। जीएसटी और नोटबन्दी की मार से यह सेक्टर अभी पूरी तरह से उभरा भी नहीं था कि मन्दी की दोहरी मार ने कलपुर्जा उद्योग की कमर तोड़कर रख दी है। अभी की स्थिति यह है कि यह उद्योग ज़्यादा दिनों तक मन्दी की मार भी नहीं झेल सकता है। छँटनी, तालाबन्दी तो पहले से चली आ रही थी, अगर स्थिति यही रही तो आने वाले दिनों में कारख़ानों पर ताला लटकने की भी शुरुआत हो सकती है। लगभग सभी ऑटोमोबाइल कम्पनियाँ पिछले कुछ महीनों में 3 दिन से लेकर 15 दिन तक उत्पादन बन्द कर चुकी हैं।
वैश्विक स्तर पर भी ऑटोमोबाइल सेक्टर औंधे मुँह गिरा है, पूरे विश्व में सबसे ज़्यादा उत्पादन और खपत करने वाले देश चीन में पिछले 12 महीनों से लगातार बिक्री में कमी होने की वजह से उत्पादन में कटौती की स्थिति बनी हुई है। चाइना एसोसिएशन ऑफ़ ऑटोमोबाइल मैन्युफ़ैक्चरर्स के आँकड़ों के मुताबिक़ अप्रैल में बिक्री में जहाँ 16.4 फ़ीसदी की कमी आयी थी, वही जून में 14.6 फ़ीसदी की गिरावट दर्ज हुई। चीनी बाज़ार में आयी माँग की कमी की वजह से पिछले 1 साल में 2 लाख 20 हज़ार लोग नौकरी से हाथ धो बैठे हैं, जो पूरे चीनी ऑटोमोबाइल सेक्टर में काम करने वाले मज़दूरों का पाँच फ़ीसदी है। पिछले छः महीनों से फ़ोर्ड कम्पनी अपनी क्षमता के दसवें हिस्से का ही उत्पादन कर रही है जिससे आने वाले दिनों में और तेज़ी से छँटनी की प्रक्रिया चलेगी। ऐसे में किसी भी सम्भावित प्रतिरोध को दबाने के लिए मज़दूर विरोधी क़ानूनों को और भी कड़ा कर चुकी है।
उत्तरी अमेरिकी देशों में ऑटोमोबाइल की बिक्री में 2022 तक 30 प्रतिशत की कमी होने की सम्भावना है। संयुक्त राज्य अमेरिका और मेक्सिको में, जहाँ एक तरफ़ साल की शुरुआत में ही निसान ने क़रीब 2,420 लोगों को बाहर का रास्ता दिखा दिया, वहीं दूसरी तरफ़ अमेरिका और कनाडा में, फ़ोर्ड कम्पनी पहले ही होने वाली सम्भावित छँटनी का फ़रमान समय-समय पर मज़दूरों दे रही है। इसी प्रकार विश्व के अन्य हिस्सों में भी ऑटोमोबाइल सेक्टर के मन्दी की मार पड़ रही है। छँटनी-तालाबन्दी की वजह से हर रोज़ दुनिया-भर से हज़ारों मज़दूर बेघर-बेरोज़गार होकर ग़रीबी, भुखमरी में ज़िन्दगी बिताने को मजबूर हो रहे है।
पूँजीवाद में बाज़ार पर अपना वर्चस्व क़ायम करने और ज़्यादा से ज़्यादा मुनाफ़ा कमाने की गलाकाटू प्रतिस्पर्धा में पूँजीपति वर्ग बाज़ार की आवश्यकताओं का कोई विस्तृत मूल्यांकन नहीं करता है। बीते वर्षों की माँग के आधार पर एक सतही मूल्यांकन से माँग तय कर लिया जाता है। लेकिन यह मूल्यांकन भी एक सेक्टर में उत्पादन करने वाले सभी पूँजीपति मिलकर नहीं करते हैं। नतीजतन अराजक उत्पादन अपनी स्वाभाविक गति से अति-उत्पादन का संकट पैदा करता रहता है। यह अति-उत्पादन निरपेक्ष रूप में अति-उत्पादन नहीं होता है, क्योंकि मन्दी के दौर में जब एक तरफ़ सामान से बाज़ार पटा रहता है, वहीं दूसरी तरफ़ भुखमरी, ग़रीबी, महँगाई, बेरोज़गारी सातवें आसमान पर होती है, ज़रूरतमन्द तो होते हैं लेकिन लोगों के पास क्रय-शक्ति नहीं होती है। अतः यह अति-उत्पादन क्रय-शक्ति के सापेक्ष होता है न कि ज़रूरतमन्दों के हिसाब से, और अराजक पूँजीवादी उत्पादन प्रणाली के विभिन्न सेक्टरों में मन्दी की स्थिति आती-जाती रहती है। बाज़ार में हर सेक्टर के आपस में गुत्थम-गुत्थी हो जाने की वजह से एक सेक्टर में हुआ अति-उत्पादन दूसरे सेक्टरों को भी अपनी जद में लेने लगता है और एक समय के बाद अति-उत्पादन एक आम संकट का रूप धारण कर लेता है, और पूरी की पूरी पूँजीवादी अर्थव्यवस्था मन्दी की चपेट में आ जाती है।
भारतीय ऑटोमोबाइल सेक्टर में छँटनी का सिलसिला शुरू हो चुका है। भारत में प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप में लगभग साढ़े तीन करोड़ लोग ऑटोमोबाइल सेक्टर से जुड़े हैं, जिनमें से लगभग 80-85 फ़ीसदी श्रमिक ठेका मज़दूर के तौर पर काम करते हैं। मारुति सुज़ुकी महीने की शुरुआत में 6 फ़ीसदी मज़दूरों की छँटनी कर चुकी है और माँग न बढ़ने की दशा में आने वाले दिनों में उत्पादन में कटौती के साथ ही नौकरियों में भी कटौती होगी।
ग़ैर-बैंकिंग वितीय संस्थाओं के दिवालिया होते जाने से आयी अार्थिक मन्दी ऑटोमोबाइल से होते हुए सभी औद्योगिक क्ष्रेत्रों में फैल चुकी है क्योंकि औद्योगिक क्षेत्र की अधिकांश कम्पनियाँ ऑटोमोबाइल सेक्टर पर निर्भर हैं और ऑटोमोबाइल सेक्टर में आयी मन्दी ने अकेले आदित्यपुर औद्योगिक क्षेत्र जमशेदपुर के सूक्ष्म, लघु व मध्यम उद्योगों की कमर तोड़ दी है। वर्तमान में क़रीब 700 छोटे व मँझोले उद्योगों में काम बन्द हो गये हैं या फिर बन्द होने की स्थिति में हैं। इससे 30,000 से अधिक कामगारों को तत्काल काम से बैठा दिया गया है। टिमकेन जैसी कम्पनियाँ भी साल में दो बार ब्लॉक क्लोज़र कर रही है, जबकि उसके उत्पाद रेलवे व अन्य बड़ी कम्पनियों में जाते हैं। कोल्हापुर प्रबन्धन की 25 इण्डक्शन फ़र्नेस कम्पनियों ने हप्ते-भर पहले सूचित कर चुकी हैं कि 1 अगस्त से काम-काज ठप्प रहेगा, जिससे सीधे तौर पर 30,000 कर्मचारी और उनके परिवार वालों के लिए मुश्किल पैदा होने वाली है। इसी तर्ज़ पर दर्जनों स्टील फ़ैक्टरियाँ एक अगस्त से अपना कामकाज रोक देंगी जिसकी वजह से 5 हज़ार लोग सीधे बेरोज़गारी की मार झेलने के लिए अभिशप्त होंगे। दशकों से काम कर रहे मज़दूरों के सामने व्यवस्था अपनी स्वाभाविक गति से रोटी-कपड़ा-छत का संकट पैदा कर रही है, परिणामस्वरूप मज़दूरों में आत्महत्या करने की प्रवृति में भयंकर तेज़ी देखने को मिली है।
चूँकि पूँजीवादी संकट सबसे पहले वित्तीय संस्थाओं की बर्बादी के रूप में सामने आता है और उसके बाद ही उद्योगों में अभिव्यक्त होता है, इससे यह धारणा बनती है कि परिचालन को ठीक कर लेने-भर से मन्दी के संकट से निजात पायी जा सकती है और यही वजह है कि पूँजीवाद के रक्षक मन्दी का इलाज बेलआउट पैकेज, परिचालन बढ़ाने, टैक्स दर को कम करने, बैंकों को लोन देने की क्षमता से लैस करके बाज़ार में माँग बढ़ाने जैसे तमाम टोना-टोटका से करते हुए मन्दी के कारण को बाज़ार में ढूँढ़ते हैं और हर बार मुँह-भर माटी ले लेते हैं। लेकिन सच्चाई यह है कि पूँजीवाद का ढाँचागत संकट बन चुकी मन्दी का असली कारण पूँजीवादी उत्पादन प्रणाली है, जिसमें उत्पादन के साधनों पर मुट्ठी-भर लुटेरों का क़ब्ज़ा होता है और उत्पादन मनुष्य के लिए नहीं मुनाफ़े के लिए होता है। इस तरह उत्पादन की पूँजीवादी प्रणाली समाज की तबाही-बर्बादी का कारण बन रही है।