देश के आम बजट 2018 में “50 करोड़ लोगों को स्वास्थ्य बीमा”को जिस प्रकार मीडिया बेहतरीन स्वास्थ्य बजट बताकर पेश कर रहा है, उससे खुश लोगों को मेरी यह रिपोर्ट थोड़ा निराश कर सकती है। अभी वित्त मंत्री ने अपने बजट भाषण में देश के 50 करोड़ गरीबों को स्वास्थ्य बीमा योजना के दायरे में लाने की घोषणा की है। मंत्री ने यह भी कहा है कि बाद में इस योजना का लाभ शेष बची आबादी को भी दिया जा सकता है। वित्त मंत्री के दावे के अनुसार इस योजना से गरीब लोगों के इलाज के लिए महंगे अस्पतालों के दरवाजे खुल जाएंगे और उन्हें निजी अस्पतालों में कोई फीस नहीं देनी होगी। वित्त मंत्री ने इसके लिए बजट में 2 हजार करो़ड रुपये का प्रावधान किया है।
टी.वी. मीडिया पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा की स्वास्थ्य योजना (ओबामा केयर) की तरह इसे उससे भी बड़ी योजना बता रहा है। यहाँ गौर करने की बात यह है कि सन 2008 में जब बराक ओबामा अमेरिका के राष्ट्रपति बने थे तब उन्होंने भी ”अमेरिकी नागरिकों के लिये स्वास्थ्य बीमा“ को अपने चुनाव का मुख्य मुद्दा बनाया था और वे चुनाव अच्छी तरह जीते भी थे लेकिन सन 2010 में ओबामा प्रशासन के ”एफोर्डेबल केयर एक्ट“ के बावजूद आम अमेरिकी नागरिकों को यह फायदा नहीं मिल पाया और ओबामा को सत्ता गंवानी पड़ी थी।
स्वास्थ बीमा की इस योजना को मीडिया जहाँ ”मोदी केयर“ नाम दे रहा है, वहीं बीजेपी अध्यक्ष इसे ”नमोकेयर“ बुला रहे हैं लेकिन विपक्ष और मौजूदा सरकार के कामकाज का आकलन करने वाले बुद्धिजीवी इसे महज एक ”चुनावी जुमला“ मान रहे हैं। गौर करने लायक बात यह भी है कि विगत वर्ष 2017 के बजट में घोषित ”स्वास्थ्य सुरक्षा योजना“ का अभी तक कहीं कोई अता-पता तक नहीं है और न ही इस वर्ष के बजट भाषण में उसका जिक्र है। उल्लेखनीय है कि 15 अगस्त 2016 को लालकिले से प्रधानमंत्री मोदी ने बीपीएल परिवारों के इलाज पर होने वाले खर्च की एक लाख रुपये तक की राशि देने का वायदा किया था। आम बजट 2016-17 में इस योजना की घोषणा भी की गई जिसे 1 अप्रैल 2017 से लागू करना था लेकिन अब इस सरकार को याद नहीं है।
भारत में स्वास्थ्य की स्थिति पर नज़र डालें तो सूरत-ए-हाल बेहाल और चिन्ताजनक है। स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति भी खस्ता है। अन्य देशों की तुलना में भारत में कुल राष्ट्रीय आय का लगभग 4 प्रतिशत ही स्वास्थ्य सेवाओं पर खर्च होता है जबकि चीन 8.3 प्रतिशत, रूस 7.5 प्रतिशत तथा अमेरिका 17.5 प्रतिशत खर्च करता है। विदेश में स्वास्थ्य की बात करें तो फ्रांस में सरकार और निजी सेक्टर मिलकर फंड देते हैं जबकि जापान में हेल्थकेयर के लिए कम्पनियों और सरकार के बीच समझौता है। आस्ट्रिया में नागरिकों को मुफ्त स्वास्थ्य सेवा के लिए ”ई-कार्ड” मिला हुआ है। हमारे देश में फिलहाल स्वास्थ्य बीमा की स्थिति बेहद निराशाजनक है। अभी यहां महज 28.80 करोड लोगों ने ही स्वास्थ्य बीमा करा रखा है, इनमें 18.1 प्रतिशत शहरी और 14.1 प्रतिशत ग्रामीण लोगों के पास स्वास्थ्य बीमा है।
इसमें शक नहीं है कि देश में महज इलाज की वजह से गरीब होते लोगों की एक बड़ी संख्या है। अखिल भारतीय आर्युविज्ञान संस्थान (एम्स) के एक शोध में यह बात सामने आई है कि हर साल देश में कोई 8 करोड़ लोग महज इलाज की वजह से गरीब हो जाते हैं। यहां की स्वास्थ्य सेवा व्यवस्था ऐसी है कि लगभग 40 प्रतिशत मरीजों को इलाज की वजह से खेत-घर आदि बेचने या गिरवी रखने पड़ जाते हैं। एम्स का यही अध्ययन बताता है कि बीमारी की वजह से 53.3 प्रतिशत नौकरी वाले लोगों मे से आधे से ज्यादा को नौकरी छोड़नी पड़ जाती है।
वित्तमंत्री ने अपने बजट भाषण में ”आयुष्मान भारत” का जिक्र कर जिन दो योजनाओं की बातें की हैं उसमें एक तो ऊपर चर्चित ”राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना तथा दूसरी ”हेल्थ एवं वेलनेस योजना” है। सरकार का दावा है कि वह देश भर में डेढ़ लाख से ज्यादा हेल्थ और वेलनेस सेंटर खोलेगी जो रोगियों को जरूरी दवाएँ और जाँच सेवाएं फ्री मुहैया कराएंगे। यह योजना दिल्ली की केजरीवाल सरकार की ”मोहल्ला क्लीनिक” योजना से प्रभावित लगती है। वित्त मंत्री के अनुसार टी.बी. के मरीजों को हर महीने 500 रुपये देने की बात है ताकि वे पोषक भोजन कर सकें।
स्वास्थ्य बजट में आयुष पद्धति के होमियोपैथी, आयुर्वेद व योग आदि के लिए अलग से कोई विशेष प्रावधान नहीं है। स्वदेशी का नारा लगाने वाली मौजूदा सरकार से आयुर्वेद व होमियोपैथी के चिकित्सालयों को बड़ी आशा थी। स्वयं मोदीजी ने होमियोपैथी, आयुर्वेद व योग की दुहाई देकर वाहवाही लूटी है और उन्होंने वादा भी किया था कि देश में आयुष पद्धतियों का जाल बिछाकर मेडिकल टूरिज्म को प्रोत्साहित किया जाएगा। इसकी सम्भावना भी है और देश के लोगों को आयुष उपचार की जरूरत भी, लेकिन बजट में इसके लिए अलग से कोई प्रावधान नहीं किया गया है।
बजट में स्वास्थ्य प्रावधानों पर बारीकी से नज़र डालें तो ”स्वास्थ्य बीमा” मोदीजी का एक नया जुमला प्रतीत होता है। अव्वल तो यह बीमा है जिसका सीधा लाभ बीमा कम्पनियों को मिलेगा हालाँकि सरकार ने अभी तक स्पष्ट नहीं किया है कि 50 करोड़ लोगों के इस स्वास्थ्य बीमा का प्रीमियम कौन भरेगा। एक मोटा अनुमान लगाएँ तो प्रति परिवार 5 लाख रूपये के बीमा का यदि सम्बन्धित परिवार 10वां हिस्सा यानि 50 हजार रुपये की सुविधा लेता है तो सालाना यह राशि 5 लाख करोड़ रुपये होगी। यदि यह राशि बीमा कंपनियां वहन करेंगी तो इसका सालाना प्रीमियम 5 हजार से 15 हजार रुपये प्रति परिवार होगा यानि 50 हजार से 1.50 लाख करोड रुपया सालाना। यह राशि कहाँ से आएगी?
बहरहाल, शुरू से ही जुमलेबाजी कर रही इस सरकार के पास सम्भवतः यही तरीका और इन्तजाम है जनता को बहलाने के लिए। विगत 2013 से अब तक सरकार की लोकलुभावन घोषणाओं का लाभ जनता को तो मिला नहीं। हो सकता है चुनावी वर्ष में की गई इस घोषणा पर शायद सरकार गम्भीर हो, लेकिन अब तक लगातार झटके पर झटका झेलती जनता इसे हकीकत मानेगी या जुमला कुछ कहा नहीं जा सकता। इन्तजार करना ही बेहतर है, लेकिन इन्तजार करते वक़्त सतर्क भी रहिये।
(लेखक जन स्वास्थ्य विशेषज्ञ हैं और युवा संवाद पत्रिका के संपादक हैं)