कोई अखबार, कोई न्यूज़ चैनल आपको इस ‘घोटाले’ के बारे में नहीं बताएगा।
आपने ‘पवनहंस’ हेलीकॉप्टर का नाम सुना होगा। जिस तरह से भारत में सार्वजनिक क्षेत्र में एयर इंडिया हवाई जहाज का संचालन करती थी उसी प्रकार सार्वजनिक क्षेत्र में हेलीकॉप्टर का सबसे बड़ा बेड़ा सरकारी कम्पनी पवनहंस के पास है। पवनहंस एशिया में भी पहले नंबर पर है। ख़ास बात है कि जहाँ एयर इंडिया लगातार घाटे में जा रही है, वही पवनहंस 1992 से लाभ अर्जित कर रही है। 2014-15 के आँकड़ों के लिहाज से कंपनी ने 223.69 करोड़ रुपए का लाभांश भी सरकार को चुकाया है।
दरअसल विनिवेश एवं सार्वजनिक परिसंपत्ति प्रबंधन विभाग (दीपम), पिछले 10 महीने में दो बार ‘पवन हंस’ में सरकार की 51% हिस्सेदारी को बिक्री का प्रस्ताव रख चुका है लेकिन किसी निवेशक ने इसमे रुचि नही ली। बहरहाल, कल परिस्थितिया बदल गयी जब ओएनजीसी के निदेशक मंडल ने ‘पवन हंस’ में अपनी 49% की बची हुई पूरी हिस्सेदारी बेचने के फैसले को मंजूरी दे दी।
यानी पवनहंस पूरा का पूरा बिकेगा। सौ फ़ीसदी। मोदी जी की यही इच्छा है।
लेकिन इस खेल में संबित पात्रा अकेले नहीं हैं। संबित पात्रा से पहले मोदी सरकार द्वारा ONGC के अध्यक्ष और प्रबंध निदेशक (सीएमडी) पद पर शशि शंकर को बैठाया गया था जबकि उन पर भ्रष्टाचार के गम्भीरआरोप लग चुके हैं। इस सम्बंध में सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दाखिल की गई है। इस याचिका के मुताबिक यह मामला सार्वजनिक उपक्रम के एक कॉन्ट्रेक्ट से जुड़ा है। इसकी जांच के दौरान शशि शंकर को फरवरी 2015 में छह महीने के लिए निलंबित कर दिया गया था।
लेकिन सबसे बड़ा प्रश्न तो यह है कि हर साल अरबों रुपये मुनाफ़ा कमाने वाली कंपनी ‘पवन हंस’ से हिस्सेदारी आखिर बेची क्यों जा रही है? 2017 में संसद की परिवहन, पर्यटन और संस्कृति क्षेत्र की स्थायी समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि समिति यह समझने में असफल है कि मुनाफा कमाने वाली कंपनी पवन हंस का रणनीतिक तौर पर विनिवेश क्यों किया जा रहा है। जब पवनहंस के कर्मचारियों को इस सौदे के बारे में मालूम पड़ा तो पवन हंस के कर्मचारी संघ ने सरकार से 51% हिस्सेदारी खरीदने का प्रस्ताव भी तैयार किया, लेकिन उस प्रस्ताव को सरकार ने रद्दी की टोकरी में फेंक दिया।
सच यह है कि ‘पवन हंस’ के सरकारी सेवा होने की वजह से सरकार को अपने चहेते उद्योगपतियों को उपकृत करने का मौक़ा नही मिल पा रहा था। ‘पवनहंस’ कम कीमत में ऊंचे पहाड़ों में बसे दुर्गम स्थानों पर जाने में सहायक सिद्ध हो रहा था जबकि इसी काम के प्राइवेट कम्पनियां बहुत ज्यादा पैसे मांग रही थी।
उदाहरण देखिए। हिमाचल के चंबा के दुर्गम इलाके में बसे जनजातीय क्षेत्र में लोगों के पास राशन पुहचाने के लिए सरकार ने ‘पवन हंस’ के साथ करार किया जो लगभग 35 लाख रुपए में वहां तक राशन पुहचाने के लिए मान गया, वहीं निजी हेलीकॉप्टर कम्पनी इसी काम के सरकार से एक करोड़ रुपए मांग रही थी
अब इस फैसले की टाइमिंग पर आप ग़ौर कीजिए। आपको याद होगा कुछ महीनों पहले मोदी जी ने आम आदमी तक हवाई सेवा का फायदा पहुंचाने के लिए उड़ान स्कीम लॉन्च की थी (हवाई चप्पल पहनने वाला हवाई जहाज में उड़ेगा)। इस योजना के तहत कई छोटे शहरों में हवाई सेवा शुरू की जानी है। इसको लेकर दो राउंड की बिडिंग हो चुकी है। इसके माध्यम से सरकार ऐसे शहरों में हेलिकॉप्टर सेवा शुरू करने जा रही है, जहां हवाई सेवा संभव नहीं है। इसमें उत्तराखंड और हिमाचल के कई छोटे शहर इसमे शामिल हैं। इन शहरों में ‘हेलीपोर्ट’ बनाए जा रहे हैं। इन सारे शहरों में हेलीकॉप्टर सर्विस देने के लिए पवनहंस को लाइसेंस प्रदान किया गया है। और पीठ पीछे पवनहंस को मित्र पूंजीपतियों को बेचने की तैयारी की जा रही है, जिससे इन शहरों में उड़ान के जो लाइसेंस बांटे गए हैं, वह सीधे सीधे उस कम्पनी को मिल जाएँ जो पवनहंस खरीदने वाला है। दरअसल पवनहंस को 7 लाख घंटे की उड़ान का अनुभव प्राप्त है, जिसका मुकाबला अन्य कोई नयी कम्पनी नहीं कर सकती।
पवनहंस ही तीर्थस्थान वैष्णो देवी के लिये कटरा से ऊपर तक की सेवा भी देता है। हर वर्ष मई से जून और सितम्बर से अक्तूबर के दौरान फाटा से केदारनाथ तक हेलीकॉप्टर सेवाओं का संचालन करता है। इसके अलावा पवन हंस जम्मू-कश्मीर स्थित अमरनाथ गुफा जैसे दुर्गम स्थानों पर भी जाता है।अब पवनहंस के बेच दिए जाने से निजी कम्पनियों को इन तीर्थ स्थानों में मनमानी लूट करने का खुला लाइसेंस मिल जाएगा।
दिन रात हिंदुत्व हिंदुत्व चिल्लाने वालों को क्या मोदी सरकार द्वारा हिन्दू तीर्थस्थलों पर मचाई जाने वाली यह संभावित लूट दिखाई देगी?