लखनऊ में सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक संगठनों के कार्यकर्ताओं ने 10 जुलाई को बैठक करके एक स्वर में भोपाल से अमिता और मनीष श्रीवास्तव की गिरफ्तारी को अवैध बताते हुए रिहाई की मांग की। बैठक में इलाहाबाद से आईं सीमा आज़ाद और विश्वविजय ने लोगों को पिछले तीन दिनों से चल रहे घटनाक्रम से लोगों को अवगत कराया। गत 8 जुलाई 2019 की सुबह उत्तर प्रदेश के देवरिया जिले से कथित तौर पर नक्सलवादियों से संबंध रखने के मामले में उत्तर प्रदेश एटीएस (एन्टी टेररिस्ट स्क्वाड) द्वारा उठाये गए 4 लोगों में से एक कृपाशंकर ने पूरे घटनाक्रम पर मीडिया को एक संक्षिप्त बयान जारी किया है।
कृपाशंकर ने 8 जुलाई को हुई गिरफ्तारियों के बारे में निम्न वक्तव्य जारी किया है:
यूपी एटीएस द्वारा हमलोगों को उठाये जाने के संबंध में दी जा रही जानकारी से अलग सच्चाई कुछ और ही है। गत 5-6-7 जुलाई को ऑल इंडिया फोरम अगेंस्ट हिंदुत्व फासिस्ट ऑफनसिव की कंन्वेनिंग कमेटी व आल इंडिया कॉउंसिल,जिसका मैं सदस्य भी हूँ की बैठक में हिस्सा लेने के लिए मैं पटना गया था। 7 जुलाई की शाम मीटिंग खत्म होने के बाद मैं वापस पटना से देवरिया के लिए निकला और करीब रात 10 बजे अपने कमरे पर पहुंच गया। देवरिया में ही हमलोगों ने एक रूम,लैट्रिन,बाथरूम और किचेन किराये पर ले रखा है। मेरी जीवनसाथी बिंदा जो कि एक प्राइवेट स्कूल में अध्यापक हैं। मेरे आने में लेट लतीफ होने की आशंका की वजह से उसने मकान मालिक से गेट का चाभी ले लिया था।ताकि गेट खोलने में किसी को परेशानी न हो।
भोर में करीब 4 बजे जब हमलोग सोये हुए थे तभी जोर से गेट खटखटाने की आवाज़ आयी। चूंकि चाभी हमलोग के पास थी इसलिए यह सोचकर कि मकान मालिक का कोई संबंधी आया होगा हमलोग ही गेट खोलने के लिए गए। गेट खोलते ही करीब 30 की संख्या एटीएस,एपीएसाईबी और यूपी पुलिस के जवान जिसमें कुछ ही लोग वर्दी में थे तेजी से मकान के अंदर घुसने लगे।पूछने पर पता चला कि ये लखनऊ एटीएस की टीम है। हमारे अपहरण में यूपी एटीएस के अलावा आंध्र प्रदेश एसआईबी की महत्वपूर्ण भूमिका थी।एपीएसआईबी के लोग भी एटीएस के साथ मौजूद थे।
एटीएस के एडिशनल एसपी ने कहा कि हमे सूचना मिली है कि आपका संबंध नक्सलवादियों से है।इसलिए हम आपके कमरे की तलाशी ले रहे हैं। उन्होंने हमारे कमरे के कोने कोने की तलाशी ली।हमारा मोबाइल,लैपटॉप,कार्ड रीडर,पेन ड्राइव ,डोंगल,कुछ किताबें और ढेर सारे कागजात जब्त कर लिए।
भोर में 4 बजे मेरे और बिंदा के साथ यूपी एटीएस ने जो किया उसे हम अपहरण ही कहेंगे।बिना किसी वारंट के हमारे कमरे की तलाशी ली गयी।संविधान द्वारा प्रदत्त हमारे निजता के मौलिक अधिकारों का हनन किया गया।
हमारा अपहरण करके हमे पुलिस लाइन देवरिया ले आया गया।कुछ ही देर में मजदूर किसान एकता मंच,देवरिया के बृजेश और उनकी जीवन साथी सावित्रीबाई फुले संघर्ष समिति से जुड़ीं प्रभा को भी अपहरण कर पुलिस लाइन ले आया गया। उनके साथ भी वही सब हुआ जो हमारे साथ हुआ था। सुबह से लेकर शाम तक हमलोगों से अनर्गल पूछताछ की गई। पुलिस लाइन में ही टेकनिकल टीम हम चारों लोगों के डिजिटल उपकरणों मोबाइल,लैपटॉप,पेन ड्राइव वगैरह की जांच में जुटी थी।
पूछताछ में वो हमसे एक दिन पहले भोपाल से अरेस्ट हुए लोगों के बारे में पूछ रहे थे की मनीष और अमिता के साथ आपका क्या संबंध है? मैंने बताया कि मनीष जब गोरखपुर में पढ़ते थे तभी से उनसे हमारा परिचय है। वो एक अच्छे इंसान और सामाजिक कार्यकर्ता हैं।अमिता उनकी पत्नी हैं।
पूछताछ के बाद 8 जुलाई की ही रात में 10.30 बजे हमें यह कह कर छोड़ दिया गया कि आप लोगों के पास से अभी तक कोई एविडेन्स नहीं मिला है।इसलिए अभी आपको छोड़ा जा रहा है।12 जुलाई को एटीएस के लखनऊ हेड क्वार्टर में सुबह 10 बजे तक आप लोगों को रिपोर्ट करना होगा। कानपुर से भी दो लोगों को उठाये जाने के बारे में हमे बताया गया। जिनमें से एक का नाम दिनेश है और एक अज्ञात हैं।
एटीएस ने जिस तरह से इतनी भारी संख्या में वर्दी और बिना वर्दी के हथियारबंद तरीके से भोर के समय में हमारा अपहरण किया, वो ये दिखाता है कि देश में न तो कोई लोकतंत्र है और न ही कानून का शासन।ये अपहरण संविधान द्वारा प्रदत्त हमारे मौलिक अधिकारों का खुलेआम धज्जियां उड़ाना है। जिस तरह से एटीएस द्वारा हमारा अपहरण किया गया वो हमारे निजता के अधिकारों का हनन करने वाली एक आपराधिक कार्यवाई है।
इस कार्यवाई की वजह से हमलोग समाज मे संदेह के दायरे में आ गए।मकान मालिक ने सामाजिक दबावों के चलते हमें कमरा छोड़ने को बोल दिया। हमे मानसिक यंत्रणा झेलनी पड़ रही है।मोहल्ले और रिश्तेदारियों में तरह- तरह के चर्चे हो रहे हैं।
यूपी एटीएस,एपीएसाईबी व पुलिस प्रशासन की इस कायराना कार्यवाई के खिलाफ हमने एक याचिका प्रदेश के डीजीपी सहित राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग,पिछड़ा वर्ग आयोग,अनुसूचित जाति आयोग,महिला आयोग,सुप्रीम कोर्ट और इलाहाबाद हाई कोर्ट को भेजा है तथा अपने संवैधानिक अधिकारों की सुरक्षा, दोषियों पर कार्यवाई व अपने लिए न्याय की मांग की है। साथ ही साथ हम देश के तमाम बुद्धिजीवियों,छात्रों और नागरिकों से भी देश भर में आम जनता सहित सामाजिक- राजनीतिक कार्यकर्ताओं के ऊपर बढ़ते हमलों के खिलाफ मजबूती से खड़े होने की अपील करते हैं।
लखनऊ में इन गिरफ्तारियों के विरोध में हुई बैठक में वक्ताओं ने कहा कि हाल के दिनों में ‘शहरी नक्सली’ बताकर जो तमाम गिरफ्तारियां की जा रही हैं जिसमें महाराष्ट्र, आन्ध्र प्रदेश और दिल्ली से कई गिरफ्तारियां हुईं, वह जनता के असली मुद्दों से तथा संघ परिवार से जुड़े कार्यकर्ताओं द्वारा कहीं गाय के नाम पर तो कहीं ‘जय श्री राम’ के नाम पर की जा रही हिंसक घटनाओं से लोगों का ध्यान हटाने के लिए है। निर्दोष लोगों को बिना किसी सुबूत के गिरफ्तार किया जाना इस देश के संविधान में मौलिक अधिकारों का सरासर उल्लंघन है। उदाहरण के लिए अमिता ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से प्रोफेसर लाल बहादुर वर्मा के दिशा निर्देश में ‘मौखिक इतिहास’ में पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। अमिता कहानीकार, गायिका, कवियित्री और अनुवादक भी हैं। वहीं मनीष इलाहाबाद एवं गोरखपुर विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर उपाधि प्राप्त कर लेखन व अनुवाद का काम करते हैं। ऐसे विद्वान साहित्यकर्मियों के खिलाफ मनगढ़ंत आरोप लगाना हास्यास्पद है।
हाल के चुनाव में भाजपा की अप्रत्याशित और आश्चर्यजनक सफलता जिसको लेकर स्वंय भाजपा में कोई उत्साह नहीं दिखाई पड़ता अब चुपचाप समाज में उसके विरोध में जो भी बची खुची आवाजें हैं उनको दबाने की साजिश की जा रही है। सरकारी तंत्र का दुरुपयोग किया जा रहा है, नहीं तो यह कैसे संभव है कि आतंकवाद की आरोपी साध्वी प्रज्ञा ठाकुर सांसद बन जाती हैं, भाजपा का विधायक सरेआम सरकारी अधिकारी को पीटता है और निर्दोष लोग फर्जी आरोपों में गिरफ्तार किए जा रहे हैं।
मनीष और अमिता के पहले चार अन्य लोगों को भी गिरफ्तार किया गया था, जिन्हें पूछताछ व विरोध के बाद छोड़ दिया गया। बृजेश मजदूर किसान एकता मंच के सदस्य हैं, प्रभा सावित्री बाई फुले संघर्ष समिति नाम के संगठन में काम करती हैं। कृपाशंकर फासीवाद विरोधी मोर्चा कार्यकारिणी सदस्य, एनसीएचआरओ के पूर्वी उत्तर प्रदेश कमेटी के सदस्य हैं और उनकी पत्नी वृंदा प्राईवेट स्कूल में अध्यापिका हैं, इस घटना के बाद जिन्हें आगे नौकरी मिलना मुश्किल होगा। इन सभी लोगों को बिना किसी आधार के गैरकानूनी हिरासत में लिये जाने की सभी लोगों ने कड़े शब्दों में निंदा की। सभी ने मनीष और अमिता श्रीवास्तव की गिरफ्तारी की कड़े शब्दों में निंदा करते हुए उन्हें तुरन्त रिहा करने व उन पर से सभी आरोप वापस लिये जाने की मांग की।
बैठक में लेखक अजय एवं पत्रकार अजय सिंह, मैग्सेसे पुरस्कार से सम्मानित प्रो. संदीप पाण्डेय, इप्टा महासचिव राकेश, जन संस्कृति मंच के कौशल किशोर, भगवान स्वरूप कटियार, नागरिक परिषद के रामकृष्ण, वर्कर्स काउसिंल के ओपी सिन्हा, सृजनयोगी आदियोगी, जागरूक नागरिक मंच के सत्यम वर्मा, कवियित्री और राहुल फाउंडेशन की कात्यायनी, एडवोकेट अमित अम्बेडकर, एड. रफीउद्दीन, लखनऊ विवि छात्र नेता ज्योति राय, नौजवान भारत सभा के आनन्द सिंह, जमीयतुल कुरैशी उत्तर प्रदेश के शकील कुरैशी, रिहाई मंच के मुहम्मद शुऐब, गुफरान सिद्दिकी, राजीव यादव, राबिन वर्मा मौजूद रहे।