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चंपारण: कभी निलहों ने लूटा, अब सरकारी उदासीनता निगल रही है  गन्‍ना किसानों की जिंदगी

गन्ना उत्पादन में देश के सबसे अग्रणी क्षेत्रों में से एक चंपारण। चंपारण की धरती जो कभी निलहों यानी अंग्रेजों का आतंक झेलती थी वो आज सरकार का आतंक झेल रही है। सरकारी उदासीनता ने गन्ना किसानों को इस मोड़…

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योगीराज में 50 हजार गन्‍ना किसानों की त्रासदी

18 अप्रैल के बिटिया के गवना के दिन धइलें बाटीं, खेतवा में तीन एकड़ गन्ना के फसल खड़ी बा। फसल बढ़िया भईल तब सोचलीं भगवानों दुखिया के दर्द समझत बाटें, केहू से कर्जा नाहीं लेवेके पड़ी। सोचलीं कि बिटिया के…

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समाजवादी पार्टी और मुस्लिम हित: मिथ या हक़ीक़त

यह बात सबको मालूम है कि उत्तर प्रदेश में समाजवाद का मतलब समाजवादी पार्टी. अगर मैं यह सवाल करूँ कि क्या समाजवादी पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह यादव मुस्लिमों के मसीहा हैं? तो शायद आप लोग चुप हो जायें. लेकिन…

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मेरा दोस्‍त आनंद, जिसे सरकार जेल में डालना चाहती है

प्रोफेसर आनन्द तेलतुम्बडे, जो आई.आई.एम अहमदाबाद के छात्र रह चुके हैं, आई.आई.टी में प्रोफेसर, भारत पेट्रोलियम कॉरपोरेशन लिमिटेड के कार्यकारी निदेशक और पेटोनेट इंडिया के सीईओ जैसे अहम पदों पर रहे चुके हैं और फिलवक़्त गोवा इन्स्टिट्यूट आफ मैनेजमेण्ट में…

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मेरी उम्‍मीदें बिखर चुकी हैं, मुझे आपका सहयोग चाहिए: प्रो. आनंद तेलतुम्‍बडे

वैज्ञानिक और बुद्धिजीवी प्रो. आनद तेलतुम्‍बडे को 2 फरवरी को तड़के साढ़े तीन बजे मुंबई एयरपोर्ट से गिरफ्तार कर लिया गया जब वे कोच्चि से मुंबई लौट रहे थे। बाद में दिन में उन्‍हें पुणे की अदालत में पेश किया…

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सवा अरब जनता, 300 आतंकी और एक कौवा: जादुई यथार्थवाद के आर-पार

हमारा समाज आज जितना सत्‍यशोधक कभी नहीं रहा। एक नीतिवाक्‍य जैसा दिखने वाला यह ओपनिंग वाक्‍य थोड़ी अकादमिक व्‍याख्‍या की मांग करता है। क्‍लासिकीय मार्क्‍सवाद कहता है कि सभ्‍यता और चेतना के बीच परस्‍पर कुंडलाकार गति होती है। सभ्‍यता ज्‍यों-ज्‍यो…

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युद्ध के खिलाफ़ तीन कविताएं

युद्ध एक : – राजेन्द्र राजन हम चाहते हैं कि युद्ध न हों मगर फौजें रहें ताकि वे एक दूसरे से ज्यादा बर्बर और सक्षम होती जायें कहर बरपाने में हम चाहते हैं कि युद्ध न हों मगर दुनिया हुकूमतों…

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आलोचना की संस्‍कृति और संस्‍कृति की आलोचना

यदि ''प्रच्‍छन्‍नता का उद्घाटन,'' जैसा कि आचार्य शुक्‍ल ने कहा है: ''कवि-कर्म का प्रमुख अंग है'' तो आलोचना-कर्म का वह अभिन्‍न अंग है। यह प्रच्‍छन्‍नता सभ्‍यता के आवरण निर्मित करते हैं। इसलिए ''ज्‍यों-ज्‍यों हमारी वृत्तियों पर सभ्‍यता के नए-नए आवरण…

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सिक्‍का बदल गया

खद्दर की चादर ओढ़े, हाथ में माला लिए शाहनी जब दरिया के किनारे पहुंची तो पौ फट रही थी। दूर-दूर आसमान के परदे पर लालिमा फैलती जा रही थी। शाहनी ने कपड़े उतारकर एक ओर रक्खे और ‘श्रीराम, श्रीराम’ करती…

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हिंदी के सिर से उठा दो बुजुर्गों का साया

नया साल आते ही हिंदी जगत के लिए त्रसद साबित हुआ। पहले जनवरी के अंत में हिंदी के यशस्‍वी बुजुर्ग लेचिाका कृष्‍णा सोबी गुज़र गईं। फिर फरवरी में हिंदी के शीर्ष आलोचक प्रो. नामवर सिंह का लंबी बीमारी के बाद…

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